tag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post1524888388901521452..comments2023-11-02T13:25:07.215+05:30Comments on रांचीहल्ला: रांची विवि = देख तमाशा देखनदीम अख़्तरhttp://www.blogger.com/profile/17057642640754937106noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-1402002347108522462009-06-21T18:45:36.390+05:302009-06-21T18:45:36.390+05:30रांची विश्वविद्य़ालय की साइट मैंने दो-तीन बार जाति...रांची विश्वविद्य़ालय की साइट मैंने दो-तीन बार जाति के हिसाब से टीचर और प्रोफेसरों की गनती मिलाने के लिए खोली थी। मैंने पाया कि लगभग पूरे विभाग में एससी,एसटी और ओबीसी लगभग नदारद है। नियुक्तियों को लेकर भारी गड़बड़ी है शायद। जेनरल की सीटों पर तो लोग विराजमान है लेकिन आनुपातिक तौर पर बाकी लोग नहीं है। आप इसे सरसरी नजर से देखें तो आपको अंदाजा मिल जाएगा।<br /><br />..अभी दस दिन पहले रांची से लौटा हूं। बहुत जुगाड़ करके आपका नंबर लिया और कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहा।..चलिए कभी बातें होंगी। http://taanabaana.blogspot.com<br />09811853307विनीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-19668912143344297752009-06-21T17:13:08.476+05:302009-06-21T17:13:08.476+05:30नदीम,
बहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने, मोनिका जी क...नदीम, <br />बहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने, मोनिका जी की बातों से मैं शत-प्रतिशत सहमत हूँ<br />रांची विश्वविद्यालय की वेब-साईट के मेंटेनेंस करने वाली कम्पनी से ये भी पूछना चाहिए की इस साईट की मेंटेनेंस के लिए उन्हें कितना रुपैया दिया जा रहा है, और उस रुपैये की निकासी के लिए वो विश्वविद्यालय के साथ जबरदस्ती करते हैं या नहीं, <br />पता नहीं आज तक रांची विश्वविद्यालय चल कैसे रहा है, आज तक एक भी सत्र की परीक्षा समय पर नहीं हुई है, कुछ काम नहीं होता है, नदीम, आप लोग ही इसे सुधर सकते हैं , कुछ कीजियेस्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-13727206914576746122009-06-21T12:10:11.482+05:302009-06-21T12:10:11.482+05:30सरकारी संस्थानों की बेफेक्री की बिल्कुल सही तस्वीर...सरकारी संस्थानों की बेफेक्री की बिल्कुल सही तस्वीर पेश की है आपने। वैसे भी काम हो चाहे न हो पैसा तो साइट के नाम पर हमेशा मिलता ही रहता है। विश्वविद्यालय द्वारा इस तरह की लापरवाही कोई नयी बात नहीं। सरकारी माल को अपना कहने वाले लोगों की कमी नहीं जिसका खर्च बिल्कुल उसी तरह किया जाता है जिस तरह राम नाम जपना पराया माल अपना वाले करते है। अब साइट पर लेटेस्ट जानकारी दी जा रही हो या नहीं लेकिन साइट मेंटेनेंस के नाम पर विश्वविद्यालय कोष से महीना हजारों रुपये की निकासी तो जरूर होती होगी। इसलिए आज लुटो खसोटो की मानसिकता में इमानदारी की उम्मीद करना बेवकूफी है। खासकर सरकारी संस्थान में काम करने वाले की भी कमी नहीं जो विश्वविद्यालय, कॉलेज और कार्यालय का दोहन करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।मोनिका गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/10069296901095370760noreply@blogger.com