tag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post1710329273466320593..comments2023-11-02T13:25:07.215+05:30Comments on रांचीहल्ला: नक्सलियों को नहीं, निरीह ग्रामीणों को मार डालानदीम अख़्तरhttp://www.blogger.com/profile/17057642640754937106noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-90250778270667604452009-04-20T15:55:00.000+05:302009-04-20T15:55:00.000+05:30सर आपने जो भी सवाल उठाये हैं उनका जवाब शायद सरकार ...सर आपने जो भी सवाल उठाये हैं उनका जवाब शायद सरकार के पास नहीं है आैर है भी तो देने से परहेज करेगी। क्योंकि प्रशासन के लए यह कोई नई बात नहीं है कि गुनाहगारों को न पकडपाने की अवस्था में वे बेगुनाहों को ही अपना िशकार बनाते हैं। किसी बडी घटना के बाद पुलिस मुजरिम को कई दिनों तक पकड नहीं पाती, लेकिन जब पार्टी का अल्टीमेटम जाता है कि 24 या 48 घंटे के अंदर गुनाहगार नहीं पकडाया तो थाना का घेराव या बंद। तब तो घंटों में गुनाहगार सलाखों के पीछे नजर आता है आैर पुलिस इसे बडी सफलता मानती है। आिखर कैसे? इसलिए यह तो पुलिस प्रशासन की पुरानी नीति है। जब गुनाहबार पहुंच से दूर हो तो बेगुनाह आैर निरिह ही मुजरिम होते हैं।जितेंद्र रामhttps://www.blogger.com/profile/15423376455854426197noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-63352511853469120402009-04-20T11:08:00.000+05:302009-04-20T11:08:00.000+05:30सच लिखने के लिए विष्णु जी को बधाई। लगातार इस किस्...सच लिखने के लिए विष्णु जी को बधाई। लगातार इस किस्म की घटनाएं घटित हो रही हैं। फिर भी सरकार और उसके करीबी लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आज गांवों-जंगलों में जो नक्सली दबाव है, वह निहत्थे और निर्दोष ग्रामीणों की हत्या के बाद महानगरों और ए सी कमरों तक आ धमकेगा।रजत कुमार गुप्ताnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-64896435221748123772009-04-19T14:55:00.000+05:302009-04-19T14:55:00.000+05:30इस बात पर विश्वास किया जा सकता है कि मुठभेड़ फर्जी...इस बात पर विश्वास किया जा सकता है कि मुठभेड़ फर्जी थी.लेकिन यह कुछ अजीब लगता है कि निर्दोष ग्रामीणों को घर से उठा कर गोलियों से भून दिया गया.निश्चित रूप से ग्रामीणों पर नक्सलियों को मदद देने का <br />शक होगा.हालांकि शक के आधार पर ह्त्या करना जायज नहीं ठहराया जा सकता.hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-37162590192818597822009-04-18T22:20:00.000+05:302009-04-18T22:20:00.000+05:30अगर सचमुच ऐसा ही है......तो सचमुच बड़ा ही भयावह है...अगर सचमुच ऐसा ही है......तो सचमुच बड़ा ही भयावह है.....अगर इस बर्बरता की कोई हद नहीं है....तो फिर इसका कोई इलाज भी नहीं है... आप बंदूकें चलाते रहो....और नक्सली बढ़ते ही जायेंगे.....क्योंकि दरअसल गोलियों में कोई हल नहीं छिपा होता....बन्दूक और गोलियाँ हल नहीं बल्कि खुद ही इक समस्या है....नक्सलियों के लिए भी और पुलिस के लिए भी.....हल तो संवाद ही है.....संवाद की अक्ल किसमें कितनी है...दरअसल यह भी तो इक सवाल ही है.....!!राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ )https://www.blogger.com/profile/07142399482899589367noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-90795229852468571312009-04-18T19:49:00.000+05:302009-04-18T19:49:00.000+05:30hiiiiiiiiii fully agree with u my friend nakalim e...hiiiiiiiiii fully agree with u my friend nakalim ek bahut hi khatarnak hai hamare desh ke liye ,,,,,,<br />aor inka jyada badna desh ki ekta ko khatara paida karta haikabad khanahttps://www.blogger.com/profile/16738614699864113759noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-462767834085940252009-04-18T18:50:00.000+05:302009-04-18T18:50:00.000+05:30भाई आपने जो जूता मारने के विकल्प दिये हैं उनमें आप...भाई आपने जो जूता मारने के विकल्प दिये हैं उनमें आप विनोद दुआ, बरखा दत्त, प्रनव राय, रवीश कुमार वगैरह पत्रकारों का नाम भी शामिल कर लो और पता करो कि जनता किन किन में और जूता मारना चाहती है?<br /><br />सिर्फ सोनियां गांधी, मायावती, अमरसिंह का नाम क्यों लिख रखा है?<br /><br />हम तो तुम सब पत्रकारों में जूते मारना चाहते हैं, पूछो तो?Anonymousnoreply@blogger.com