tag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post4621997457608776050..comments2023-11-02T13:25:07.215+05:30Comments on रांचीहल्ला: ओलंपिक और हमनदीम अख़्तरhttp://www.blogger.com/profile/17057642640754937106noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-58277197522781294302008-08-23T15:12:00.000+05:302008-08-23T15:12:00.000+05:30असल में ओलम्पिक से पहले कोई प्रोत्साहन या प्रशिक्ष...असल में ओलम्पिक से पहले कोई प्रोत्साहन या प्रशिक्षण की व्यवस्था से प्राधिकारियों को इसलिए गुरेज़ है क्योंकि यहाँ का तंत्र युगद्रष्टा नहीं है. भाग्य जैसे छद्म शब्दों को बैसाखी बना के अपनी झोली में निःशब्द सफलता झटक लेने की रूढ़ भारतीय प्रवृत्ति शासकों से भविष्य निर्माण के सारे अवसर चीन लेती है. और मैं ये दावे के साथ कह सकता हूँ की अगर आज भारत के सपूत मैडल ला रहे हैं, तो इसमें उनकी अपनी म्हणत और लगन है, ना कि भाग्य या फिर कोई गौडफादर. वैसे आपने जो लिखा है प्रमोद जी, उससे मैं इत्तेफाक तो रखता हूँ, लेकिन साथ साथ ये भी कहना चाहता हूँ कि खेलों में भारत कि दुर्गति के लिए हम लोग भी कम जिम्मेवार नहीं हैं. अगर एक तरार क्रिकेट का मैच चलता रहे और दूसरे चैनल में भारतीय मुक्केबाज़ किसी से जूझता हुआ दिखाया जा रहा हो, तो 90 फीसदी भारतीय भी क्रिकेट देखना पसंद करेंगे. मैं ये नहीं कहता कि क्रिकेट देखना छोड़ दो, लेकिन साथ ही साथ एनी खेलों को भी देखो और उसकी चर्चा करो, ताकि खिलाड़ी कम से कम सीन में बना रहे.. कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई है मेरे दोस्त, फ़िल्म अभी बाकि है.... <BR/>नदीम अख्तरनदीम अख़्तरhttps://www.blogger.com/profile/17057642640754937106noreply@blogger.com