tag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post5268117031554762199..comments2023-11-02T13:25:07.215+05:30Comments on रांचीहल्ला: अनपढ़ अम्मा का खत, अफसर बिटिया के नामनदीम अख़्तरhttp://www.blogger.com/profile/17057642640754937106noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-245984733634835622009-07-20T18:22:56.771+05:302009-07-20T18:22:56.771+05:30agar aap wahi nirala ji hain jo ek akhbar ke first...agar aap wahi nirala ji hain jo ek akhbar ke first page ke bottom par hamesh chapte hain to main galat nhi hun. aapke ish lekh ne mere ankhon me aansu la diye. ab kya likhu. bhagwan aapki kalam me aur jaan dale. dhero sari subhkamnaiye.dharmendrahttps://www.blogger.com/profile/08077796632213666183noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-73474992124928008312009-07-19T21:44:37.265+05:302009-07-19T21:44:37.265+05:30बहुत बहुत अच्छा लिखा है, एक विद्रूप सच्चाई से दो-च...बहुत बहुत अच्छा लिखा है, एक विद्रूप सच्चाई से दो-चार करवाया है, मेरा व्यक्तिगत नजरिया यह है की गीता संतान के नाम पर बद-नुमा दाग़ है, एक बात और इतिहास स्वयं को अक्सर दोहराता है, गीता का यह व्यवहार गीता के मुँह पर तमाचे की तरह ही पड़ेगा उसके अपने बच्चों के हाथों, हम अपनी वास्तविकता से दूर भाग सकते हैं मिटा नहीं सकते हैं, जिसने अपने माता-पिता का साथ छोडा वह व्यक्ति विश्वास के योग्य नहीं...किसी भी रिश्ते में नहीं....स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-35080855101830032902009-07-19T14:46:16.169+05:302009-07-19T14:46:16.169+05:30बहुत ही भावुक कर देने वाली...आज की तल्ख़ सच्चाई......बहुत ही भावुक कर देने वाली...आज की तल्ख़ सच्चाई...प्रभावित किया आपकी लेखनी ने...अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-971090773022737936.post-29139355292462094782009-07-19T13:01:45.550+05:302009-07-19T13:01:45.550+05:30बहुत ही मार्मिक और ह्रदय स्पर्शी चिट्ठी है। काश कि...बहुत ही मार्मिक और ह्रदय स्पर्शी चिट्ठी है। काश कि गीता (पेचवा) अपनी मां की ममता को समझ पाती, तो आज उसे इस तरह अपनी ही बेटी को यह बताने की जरूरत न पड़ती कि उसकी सबीना नाम की मां है जो, उसे देखने और उससे मिलने के लिए तड़पती है। साधारणतः बेटियो को कठोर ह्रदय वाली नहीं समझा जाता। बेटे द्वारा वृद्धावस्था में अपने माता पिता को उपेक्षित करने के कई उदाहरण तो हमारे समाज में रोज दिख ही जाते है। लेकिन बेटियों से ऐसी उम्मीद नहीं की जाती। माता पिता के स्वाभिमान की प्रतीक बेटियों से ऐसी अपेक्षा कभी नहीं की जा सकती कि वह सुपुत्री के बदले कुपुत्री का आचरण करें। यदि ऐसी मानसिकता बलवती हो रही है बेटियों में तो, यह बेटी होने पर कलंक है। निंदनीय है। जरा सोचे, समझे क्योकि हर बेटी जीवनक्रम को पूरा करते हुए मां बनती है। ऐसा न हो कि आपको वही सब देखना, सुनना और सहना पड़े जो आज आपके माता पिता सह रहे है। फिर से किसी सबीना की करुण चिट्ठी किसी ब्लॉग में प्रकाशित करने की जरूरत न पड़े, इसके लिए जरूरत है कि हम अपने रिश्तों की गरिमा का महत्व समझे और उसी के अनुसार आचरण करें।मोनिका गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/10069296901095370760noreply@blogger.com