बधाई हो नदीम भाई. आखिर आपका ब्लॉग ढूंढ ही लिया. जब रांची में था तब भी महसूस करता था और अब तो और भी शिद्धत से सोचता हूं---.बात कुछ यूं है कि- मेरठ के प्रगतिनगर के मकान की एक छत पर पूरे चांद की रात क्या है इस पूरे चांद के उजाले में कि याद आ रही है बरसों पहले की रांची की एक रात पूछो झारखंड निर्माताओं से कि क्या वे रांची को फिर से बना सकते हैं? एक धनबाद, जो धीरे धीरे जलने लगा धू धूकर एक सारंडा, जिसे कब्जाने की जुगत में हैं धन्ना सेठ क्या वे बना सकते हैं एक नेतरहाट, जहां अब भी दिखाई देता है सूरज अपनी भरपूर शक्ल में एक हुंडरू फाल, जहां पानी भिगो देता है मन को पूरे वेग से कहां है वह हरियाली से सजा शहर रांची वह फिरायालाल, वह रातु रोड, वह सैक्टर टू
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बधाई हो नदीम भाई. आखिर आपका ब्लॉग ढूंढ ही लिया. जब रांची में था तब भी महसूस करता था और अब तो और भी शिद्धत से सोचता हूं---.बात कुछ यूं है कि-
मेरठ के प्रगतिनगर के मकान की एक छत पर पूरे चांद की रात
क्या है इस पूरे चांद के उजाले में
कि याद आ रही है बरसों पहले की रांची की एक रात
पूछो झारखंड निर्माताओं से
कि क्या वे रांची को फिर से बना सकते हैं?
एक धनबाद, जो धीरे धीरे जलने लगा धू धूकर
एक सारंडा, जिसे कब्जाने की जुगत में हैं धन्ना सेठ
क्या वे बना सकते हैं एक नेतरहाट, जहां अब भी दिखाई देता है सूरज अपनी भरपूर शक्ल में
एक हुंडरू फाल, जहां पानी भिगो देता है मन को पूरे वेग से
कहां है वह हरियाली से सजा शहर रांची
वह फिरायालाल, वह रातु रोड, वह सैक्टर टू
Bahut bdhayi naye blog ke liye.main bhi jharkhand se hun..kabhi mere blog par bhi aayen.
LOVELY
sanchika.blogspot.com
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