नदीम अख्तर
नाम खूब सुना होगा आपने भी - सूचना आयोग। इस आयोग का काम है लोगों को सूचना उपलब्ध होने में हो रही देरी का समाधान करना और सूचना के अधिकार का दुरूपयोग करने वालों को रास्ते पर लाना। लेकिन क्या आपको मालूम है कि झारखंड में जो सूचना आयोग है, उसमे ऐसे-ऐसे पैरवी-पुत्र घुस गए हैं कि उन्हें मर्यादा तक का ख़याल नहीं है? आपको बता दूँ कि झारखण्ड राज्य सूचना आयोग में कुछ सूचना आयुक्तों ने कुछ दिनों पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त के ही ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया था। उनके बारे में खूब कीचड़ उछाले गए। अनाप-शनाप जो मन में आया सब बात मीडिया के सामने सूचना आयुक्तों ने उगले। इतने भद्दे और इतने अशालीन तरीके से सूचना आयोग को अपने अहम को तुष्ट करने का जरिया बनाया गया कि उस पूरे प्रकरण कि अगर विडियो फ़िल्म बना दी जाए तो यकीन मानिये कि वह फ़िल्म सेंसर बोर्ड तो कभी पास नहीं करेगा। और गलती से पास कर भी देगा तो उस पर टैग लगा देगा केवल वयस्कों के लिए। खैर सूचना आयुक्तों को इससे क्या फर्क पड़ता है। ज्यादातर सूचना आयुक्त किसी न किसी तरह से राजनीतिक पहुँच वाले हैं। एक-दो लोगों को छोड़ दिया जाए तो किसी में इस पद की गरिमा को बचाए रखने की कोई चिंता इसलिए नहीं है, क्योंकि इनका संस्कार ही कहीं से भी गरिमामयी नहीं है। सब के सब सुविधा भोगी और सरकारी धन खाने की नियत से यहाँ तक पैरवी कर के पहुंचे हैं। भला बताइए कि अगर समाज सेवा के लिए ही ये लोग यहाँ तक आते तो क्या एक-दूसरे के साथ अहम की लड़ाई होती। और अगर हो भी जाती तो क्या ये तथाकथित बुद्धिजीवी अपनी लड़ाई को सड़क पर ले आते। असल में इन लोगों में से एक ऐसे भी हैं, जो अपने आप को सुप्रीम समझते हैं। उनका ऐसा सोचना है कि समाज के पहले और आखिरी अक्लमंद सिर्फ़ वो ही हैं। बाकी सब कीडे-मकौडे।इसी घमंड के कारण वो समझ लेते हैं कि ये वही जगह (सूचना आयोग) है, जहाँ ये पहले अपने आप को समाज का सबसे बड़ा बुद्धिजीवी कह कर अपने साथियों को हड़काया करते थे। असल में उनकी वो गन्दी और सामंती आदत तो नहीं जा सकी है, इसलिए उनके मन में ये ख़याल रह रह कर आता होगा कि यहाँ मेरी धाक क्यूँ नहीं चलेगी। मैं चला कर रहूँगा, इन साहब के लिए दो पंक्ति...
हवा हुए वो दिन
जब पसीना गुलाब था
अब ऐसे सामंती प्रवृति वाले आदमी को निश्चित रूप से ज़मीन देखनी होगी।और सबसे बड़ी बात तो यह है कि पैरवी के बल पर सूचना आयोग में आ जाना अलग बात है और कार्यकाल समाप्त होने के बाद एक अदद अच्छी नौकरी खोजना अलग है। लाखों का सवाल तो यह है कि क्या ये सूचना आयुक्त अपने कार्यकाल के दौरान इतनी दौलत बटोर लेंगे कि इन्हें आगे कोई काम ना करना पड़े। और अगर नहीं तो ये तैयार रहें अपने पुराने हाउस से ही शर्मिंदा हो कर निकलने के लिए। तब तक के लिए - जय हिंद, इनका ड्रामा चालू है...देखते रहिये...
2 comments:
अंधों की निगरानी मे लंगडे दौड़ रहे है रेस. बहरा बैठा न्याय की कुर्सी पर गूंगा बांच रहा उपदेश
यह झारखण्ड है भाई
जय हिंद-देख रहे हैं..
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