Wednesday, August 20, 2008

इस मौकापरस्ती को सलाम !

नदीम अख़्तर


क्या आप इस बात से इत्तेफ़ाक रखते हैं कि आज का युग मौकेबाज़ों, धोखाबाज़ों, दग़ाबाज़ों, अटकलबाज़ों, अड़ंगेबाज़ों, पैंतरेबाज़ों, सौदेबाज़ों, माफ़ियाबाज़ों, दलालीबाज़ों और भ्रष्टबाज़ों को सलाम करता है। अगर नहीं रखते, तो झारखंड चले आइये। गुरुघंटाल की कसम आपको हर हैरतअंगेज़ लगनेवाली बात पर यकीन होने लगेगा। झारखंड को देखकर अच्छे से अच्छा और बड़े से बड़ा नास्तिक भी ईश्र्वर की सत्ता पर भरोसा करने लगेगा। गुरुजी (शिबू सोरेन) को देखकर पांच टाइम का नमाज़ पढ़ने लगेगा, मधु कोड़ा को देखकर सुबह-शाम पूजा पाठ करने लगेगा और निर्दलीयों को देखकर चर्च जाने लगेगा। अभी कुछ दिनों पहले की ही बात है, मधु कोड़ा को शिबू सोरेन भर-भर मुंह आशीर्वाद दिया करते थे। कोड़ा भी दिन में तीन बार डॉक्टरी सलाह मानने टाइप शिबू सोरेन के पैर छूते रहते थे। अचानक दोनों को छुआछूत का रोग धर लिया। गुरुजी अपना पुराना रंग में उतरेऔर सिंगल प्वाइंट प्रोग्राम कुर्सी पर आके चिपक गये। असल में गुरुजी को जानने वाले इस बात से तो कतई इंकार नहीं कर सकते कि उनकी पहली और आखिरी इच्छा अगर कुछ है, तो वह है सीएम बनना और वह भी झारखंड का ही। उनके सीने में मुख्यमंत्रिया आग बरसों से धधक रही थी लेकिन अवसर ही नहीं मिल पा रहा था। इस बात में कोई दो राय नहीं कि अगर शिबू सोरेन का बस चलता, तो वह जब नरसिम्हा राव की सरकार को बचाने के एवज में पैसे ले रहे थे, उस समय वे खुद के लिए झारखंड का मुख्यमंत्री पद ही मांगते। लेकिन, शिबू सोरेन का दुर्भाग्य कहिए कि उस समय झारखंड ही नहीं बना था और नोटों की हरियाली तो गुरुजी को कहीं भी उठा/बैठा/सुता देती है, यह सभी जानते हैं इसलिए उस समय उनके दिमाग़ में कुछ सूझा ही नहीं होगा। खैर मौका था माल टान लेने का, तो गुरुजी ने टान लिया था। फिर झारखंड बना तो अपने और अपने परिवार के लिए गुरुजी ने जो हसीन सपने देखे थे, उन्हें पूरा करने में जुट गये। लेकिन, हाय रे किस्मत एक बार शिबू सोरेन को बीजेपी वालों ने दग़ा दे दिया। कांग्रेस वालों की तो औकात ही नहीं रही कभी उन्हें सीएम बनाने की। और आज है, तो कांग्रेस भी टुकुर-टुकुर ताक रही है और कांग्रेसी नेता यही सोच रहे हैं कि कैसे ई बुढ़उ निर्दलीय बम का पलीता में आग लगाये और इससे होनेवाली आतिशबाज़ी का हम लोग खूब आनंद उठायें। खैर मौका एक बार फिर गुरुजी के दरवाजे पर दस्तक दे चुका है, लेकिन कुर्सी में खाली एक ठो पौवा है। तीन पौवा अभी भी छितराया हुआ है। 25 तारीख को सबसे बड़ा मौकेबाज का चुनाव मौका भवन में होनेवाला है। गुरुजी का चरित्र देखकर एक सीख मिलती है कि मौकापरस्ती में कभी कोई किसी का दोस्त या दुश्मन नहीं हो सकता। कल तक जिसे अपना बेटा मान रहे थे, उसे आज गंदी-गंदी गालियां दे रहे हैं। दूसरी ओर मधु कोड़ अपने पिता समान गुरुजी के सामने कल तक साक्षात दंडवत थे, आज कहते फिर रहे हैं कि बुढ़ुवा सठिया गया है। खैर, मधु कोड़ा हों या शिबू सोरेन इतना तय है कि झारखंड की राजनीति फिलहाल इन्हीं के इर्द-गिर्द रेंगती नज़र आयेगी। झारखंड के लोग भी मानसिक रूप से इतने सशक्त नहीं हैं कि वे इन जैसे नेताओं से बाहर आकर कुछ सोच पायें या किसी और अच्छे आदमी को चुन पायें। इन्हीं बंधु तिर्की बहुत अच्छा नेता लगता है। झारखंडियों को शिबू सोरेन का वीजन (???) बहुत अच्छा लगता है। गड्ढा-ढिप्पा, पानी का न आना, लाजवंती बिजली का पर्दा में रहना और चारों तरफ शिष्टाचार का रूप धारण कर चुके भ्रष्टाचार को यहां के लोगों ने विकास मान लिया है। और अगर इन तत्वों पर कोड़ा जी या फिर किसी भी पिछली सरकार को कसौटी पर कसेंगे, तो पायेंगे कि कोड़ा सरकार नम्बर वन है। इस सरकार ने जैसे क्रांतिकारी कार्य किये हैं, वैसी पिछली कोई सरकार करने में कामयाब नहीं हो पायी। इनकी ही सरकार के मंत्री के यहां इसी सरकार के कार्यकाल में नोट गिनने की मशीन खरीदा गयी। इन्हीं के कार्यकाल में डीटीओ का पद दो करोड़ में बिका और रांची के निबंधक की कुर्सी के लिए प्रति माह डेढ़ करोड़ में डील हुआ है। एक मोबाइल इंसपेक्टर की पोस्टिंग (मनचाही) की कीमत 25 लाख तक हो गयी है। ज़मीन जिसे, जितना चाहिए पहले माल डाउन कीजिए और आदिवासी लैंड को रैयती दिखा कर किन लीजिए। अद्‌भुत उपलब्धि है भइ। किसी राज्य में ऐसा देखा-सुना है आपने। साफ-साफ तो संकेत देते हैं ये नेता - आज हमको मौका मिला, तो दूह लिये..कल तुमको मिलेगा तुम भी दूहना। फिलहाल नम्बर में गुरुजी हैं-चलिये दूहने दीजिए उनको, हटिये क्योंकि इस मौकापरस्ती को ही झारखंडी सलाम करते हैं!!! बुझे कुछो कि नहीं?
(रांचीहल्ला सर्वेक्षण में 76 फीसदी लोगों ने शिबू सोरेन को मौकापरस्त बताया है।)

1 comment:

मोनिका गुप्ता said...

बहुत अच्छे नदीम जी आपने झारखण्ड की राजनीति की बिल्कुल सही तस्वीर उकेरी है