Tuesday, September 16, 2008

आतंकवाद

आतंक फैलाने वालों का,
नहीं होता कोई धर्म,
नृशंश हत्याएं- फैलाना भय,
होता बस तुम्हारा कर्म।
होते हो तुमलोग स्वयं,
पर इस भय से ग्रस्त,
टूट न जाए भय-जाल,
इस शंशय से त्रस्त।
शोले कितने भी भड़काओ,
चाहे जितना जोर लगाओ,
क्रूरता से नही डरेंगे,
चाहे जितना डर फैलाओ।
ऐ भय के व्यापारी सुन,
कितने भी तुम बम चलालो,
नही झुकेंगे नही डिगेंगे,
कितना भी तुम जोर लगालो।
अट्टहास करते हो देखकर,
रक्त का तुम रंग सुर्ख,
अपने ही भाई के हत्यारे,
तुमसे बड़ा न कोई मूर्ख।
जीवटता कूट-कूट है भरी,
नही मानते हैं हम हार,
आतंक से लड़ना ही है,
भारतवासियों का संस्कार।
सिकंदर के समक्ष भी हमने,
वीरता का किया सिंह-नाद,
नही सकेगा तोड़ हमें,
यह तुम्हारा आतंकवाद।

5 comments:

Udan Tashtari said...

हौसले और आशा से ओतप्रोत रचना...बधाई.

दिनेशराय द्विवेदी said...

जियो प्यारे! ऐसी ही हिम्मत की जरूरत है।

Sachin Jain said...

मजहबी दुश्मनी ने देखो कैसी आग लगाई है, दिलो मैं दूरियां तो पहले से थी, अब चिंगारियां लगाई हैं...........

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

प्रमोद भाई,आतंकवाद के प्रति सब लोगों को दिफेंसीव रूप से मजबूत किला तैयार करने की बात करते ही पाता हूँ,जबकि इसके ख़िलाफ़ भयंकर आक्रामकता भरा आक्रमण चाहिए,कि कोई भी व्यक्ति या समूह अपने सनक भरे कृत्यों से मनुष्यता का कत्ल ना कर सके,बल्कि भय या प्रेम के द्वारा उसमें मानवीयता के प्रति सम्मान तथा अपनी बात मुंह के माध्यम से कहने की प्रवृति विकसित करनी ही होगी!!बाकि आपकी कविता अच्छी बन पड़ी है !!

नदीम अख़्तर said...

भूतनाथ जी, आप आक्रामक हो कर कभी आतंकवाद को समाप्त कर ही नहीं सकते, क्योंकि ये सिर्फ़ अपने देश पंजाब टाइप का मामला नहीं है, जो ड्राइव चलाया और एक समुदाय विशेष की रीढ़ तोड़ कर आतंकवाद को समाप्त कर दिया. ये मामला बहुत ही गंभीर है. शाषण से अतीत में हुई गलतियों को सुधारने की दिशा में आगे बढ़ना होगा. जो लोग आतंकवाद के नाम पर बेवजह जेलों में ठूंस दिए गए हैं, उन्हें रिहा करना होगा. नौकरी वगैरह देनी होगी. सरकारी योजनाओं का लाभ बिना किसी भेदभाव के समान रूप से देना होगा और आतंकवाद मिटाने के लिए रोजगार तथा शिक्षा की सर्वव्यापी व्यवस्था करनी होगी. आप आक्रामक होकर क्या कर सकते हैं. 2000-5000 लोगों को पकडेंगे किसी को एनकाउंटर में मार के गिरा देंगे, किसी को जेल में डाल देंगे. फ़िर क्या होगा. जिन लोगों के साथ ऐसा आपने किया, उनके परिवार खानदान के लोग आतंकवादी हो जायेंगे. भाई आप किसी को कितनी बड़ी सजा दे सकते हैं. मौत की न? ज्यादतियों से उपजा असंतोष और बदले की भावना मौत का खौफ पहले ही दिल से निकाल देती है. आपके मारने से पहले ही कोई मरने को तैयार है, तो आप क्या मारिएगा. कुछ कर लीजिये आतंकवाद कभी भी लाठी-गोली की ताकत से नहीं मिटेगा. इसके लिए दीर्घकालिक योजना चाहिए और लोगों का विश्वास. आप दूर की बात क्यों करते हैं, कभी झारखंड के बारे में आपने जानने की कोशिश की है कि यहाँ क्या हाल है. यहाँ का आतंकवाद तो आप लाठी गोली से मिटा ही नहीं सके, तो ग्लोबल आतंकवाद कैसे मिटाने की बात सोच रहे हैं. आज जरूरत है जज़्बात से ऊपर उठ कर विवेक से सोचने की. जज्बाती होइएगा, तो हमेशा अनाप शनाप बात दिमाग में आयेगी और विवेक से संयम से काम लीजियेगा, तो समाज को किसी समस्या के लिए एक अच्छा समाधान बता पाइयेगा. खैर, आप वैसे भी काफ़ी विवेकशील प्राणी हैं, इसलिए मैं आपसे क्या कहूं. शेष मिलने पर बात होगी...