Thursday, September 18, 2008

जोर-जुल्म से और बढ़ेगा आतंकवाद

फ़िर फटा मुसलमानी बम (भाग-2)
नदीम अख्तर
अब यदि गिरफ्तारियों के बरअक्स देखा जाये तो जिस तरह से सिमी के पूर्व कार्यकर्ताओं को पुलिस उठा रही है उससे तो यही जाहिर होता है कि संगठन दहशतगर्दी में लगा हुआ है। लेकिन ठोस तौर पर देखें तो अबतक देश भर में हुई सिमी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियों में किसी पर पुलिस द्वारा लगाये गये संगीन जुर्म साबित नहीं हुए हैं। जयपुर धमाकों के ठीक बाद यह कहा जाने लगा कि इसके तार उत्तरप्रदेश की अदालतों में हुए सीरियल बम धमाकों से जुड़े हुए हैं। अक्टूबर 2007 में प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तथा शहर वाराणसी व फैजाबाद में विस्फोट हुए थे। विस्फोट में चार वकीलों समेत एक मुवक्किल की मौत हो गयी थी। यहां एसटीएफ ने अबतक इस मामले में चार अभियुक्तों को गिरफ्‌तार किया है। गिरफ्तारों में उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के रानी की सराय कस्बे से डाक्टर हकीम मौलाना मोहम्मद तारीक कुरैशी को, जौनपुर के मड़िहाऊं से मोहम्मद खालिद को तथा कश्मीर से सज्जादुर रहमान बानी और मोहम्मद अख्तर को गिरफ्तार किया है।
आतंकवादी होने के आरोप में उत्तरप्रदेश से जिन गिरफ्तारियों को अंजाम देने के बाद एसटीएफ मीडिया माइलेज लेता रहा उन पर सवाल उठने शुरू हो गये। जिसकी शुरूआत रानी की सराय थाने से हुई है जहां मोहम्मद तारीक के परिजनों और ग्रामीणों ने गुमशुदगी का आवेदन दे रखा है। बाराबंकी जेल में बंद कुरैशी को पुलिस ने इतना प्रताड़ित किया कि उसने वह सबकुछ स्वीकार कर लिया जो पुलिस ने चाहा। कुरैशी के दादा का कहना था कि "हमने ही राय दी कि जान रहेगी तो सच झूठ का फैसला हो जायेगा पर अगर पुलिस ने इनकाउंटर में मार डाला तो क्या बच जायेगा।' उत्तरप्रदेश धमाकों के आराेपी के तौर पर पुलिस ने कोलकाता के आफताब अंसारी को भी गिरफ्तार किया लेकिन पन्द्रह दिन बाद उसे एसटीएफ ने छोड़ दिया। इस गिरफ्तारी के चलते बदनामी हुई और एनटीपीसी की नौकरी से आफताब को हाथ धोना पड़ा। गिरफ्तारियों का यह फर्जीवाड़ा यहीं नहीं थमता, बल्कि जौनपुर के मड़िहाऊं से सीरियल बम धमाकों में गिरफ्तार मोहम्मद खालिद के साथ भी एसटीएफ ने यही किया। खालिद के रिश्तेदार मोहम्मद जहीर आलम कहते हैं "पुलिस की इन गिरफ्तारियों से हमें न्याय मिलने की उम्मीद खत्म नहीं हुई थी, लेकिन पिछले दिनों अदालतों में वकीलों ने जो व्यवहार किया उससे जरूर हमारा मन हारने लगा है।' बाराबंकी, फैजाबाद और लखनऊ कोर्ट में पेशी के दौरान वकीलों ने आरोपियों पर तो हमला किया ही, वकील सोएब को भी नहीं बक्शा। जबकि बाराबंकी कोर्ट में सुनवाई ही नहीं होने दी और लखनऊ में पुलिस की मौजूदगी में उन्मादी नारे लगाये। सांप्रदायिकता और पुलिस की भूमिका पर समझ रखने वाले कुछ गैर मुसलिम पुलिस अधिकारी यह स्वीकार करते हैं - "इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि कई बार खुफिया और पुलिस भी इन प्रवृितयों को बढ़ावा देती हैं।' खैर, वकीलों ने जो रवैया अख़्तियार किया वह एक समुदाय को संकेत देता है कि तुम्हारे लिये क़ानूनी संविदाएं मृत हैं। सामाजिक फासिवाद का यह प्रारंभिक चरण है। पुलिस की ़ज़्यादतियों का क्या आलम है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिन लोगों पर संगीन आरोप लगाये जाते हैं, वे कोर्ट से बाइ़ज़्जत बरी हो जाते हैं। उदाहरण के लिए गुलजार अहमद वानी, जिन्हें छः अभियोगों से बरीकिया गया। इन पर ज्यादातर मामले दिल्ली में दर्ज थे। गुलाम मोहिउद्दीन भी छः अभियोगों से बरी हुए, जिसमें ज्यादातर दिल्ली में दर्ज थे। मोहम्मद अक्वयला (एफआईआर नं.45/2000 यू/एस 4 एईएस एक्ट, 120बी आईपीसी पीएस. कोतवाली नई दिल्ली) अदालत से बरी किये गये। अब्दुल मोबीन आगरा बम धमाकों से बरी हुए। इन्हीं की तरह मारूफ अहमद आगरा बम धमाकों से बरी हुए। इसके अलावा अनगिनत मामले ऐसे हैं, जो यह बताते हैं कि पुलिस की एकतरफा और ज्यादती से भरी कार्रवाई के कारण मुसलिम युवकों की जिंदगी पूरी तरह से बदल गयी। जो युवक जेल में रहेगा, बेकसूर, उसके बाहर आने पर समाज उसे कैसे स्वीकार करेगा। सभी को मालूम है कि एक बार जेल यात्रा कर चुके किसी व्यक्ति को कोई अपने यहां काम तक नहीं देता। ऐसे ही लोग संपर्क में आते हैं, सियासी मौकापरस्त लोगों के और पैसों के लिए वह करते हैं, जिसके फटने पर कहा जाता है कि लो फिर फूटा मुसलमानी बम। इसके अलावा आज का मुसलिम समाज अनुसूचित जनजाति से भी बदतर स्थिति में है। लंबे समय तक इस मतावलंबियों के साथ जैसा सामाजिक सौतेलापन किया गया, उसने आज इस समाज को हाशिये पर ढकेल दिया है। नाम मात्र के लोगों को भी नौकरी नहीं है। रोजगार के लिए बैंक लोन नहीं देते। व्यवसाय के लिए जगह नहीं मिलती। मुसलमान के खेत को पानी भी देने मेंे सरकारी महकमे की दो नज़र हो जाती है। मतलब जहां मुसलमान, वहां तकलीफ-मुसीबत अपने आप खड़ी हो जाती है। नतीजा क्या होता है...आर्थिक रूप से पूरी तरह टूट चुके इस धर्म के लोगों को जब, जहां, जैसे रोटी के इंतजाम का अवसर दिखाई देता है, वह उसी ओर भागते हैं। जब तक देश में ड्राइव चला कर मुसलमानों का जीवन स्तर ऊपर नहीं उठाया जायेगा, तब तक हर एक मुसलमान नामक वस्तु से समग्र रूप से मुख्य धारा में प्रवाहित होने की बेवकूफी भरी अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए। (समाप्त

15 comments:

संजय बेंगाणी said...

आतंकी घटना के बाद पुलिस किसे उठाए इस पर आरक्षण होना चाहिए.


इतने प्रतिशत हिन्दू, इतने मुस्लिम, इतने सिख...

Anonymous said...

आतंकी घटनाओं पर पुलिस का शक मुसलमानों पर ही जाता है. विहिप या बजरंग दल पर नहीं, जिन्होंने देश का वातावरण दूषित कर रखा है. कौन नहीं जानता मोदी ने गुजरात में किस तरह सामूहिक नरसंहार कराया. उसके विरुद्ध कोई कारवाही नही हुयी. बीजेपी पोटा लगाने की बात करती है. क्या अडवानी और मोदी पर भी पोटा लगेगा. या पोटा केवल मुसलमानों पर अत्याचार करने के लिए ही है.

Anonymous said...

आतंकी घटनाओं पर पुलिस का शक मुसलमानों पर ही जाता है. विहिप या बजरंग दल पर नहीं, जिन्होंने देश का वातावरण दूषित कर रखा है. कौन नहीं जानता मोदी ने गुजरात में किस तरह सामूहिक नरसंहार कराया. उसके विरुद्ध कोई कारवाही नही हुयी. बीजेपी पोटा लगाने की बात करती है. क्या अडवानी और मोदी पर भी पोटा लगेगा. या पोटा केवल मुसलमानों पर अत्याचार करने के लिए ही है.

Anonymous said...

दर्पण से सहमत हूँ.
आतंकी घटनाओं पर पुलिस का शक मुसलमानों पर ही जाता है. विहिप या बजरंग दल पर नहीं, जिन्होंने देश का वातावरण दूषित कर रखा है. कौन नहीं जानता मोदी ने गुजरात में किस तरह सामूहिक नरसंहार कराया. उसके विरुद्ध कोई कारवाही नही हुयी. बीजेपी पोटा लगाने की बात करती है. क्या अडवानी और मोदी पर भी पोटा लगेगा. या पोटा केवल मुसलमानों पर अत्याचार करने के लिए ही है.

संजय बेंगाणी को तो भोंकने की बीमारी है.

फ़िरदौस ख़ान said...

सही कहा आपने...

dahleez said...

िकस सौतेलेपन की बात कर रहे हैं नदीम जी। मैंने तो रांची में िहंदपीढी़ में रहकर काफी करीब से देखा है। मुसिलम बहुल मुहल्लों की एक-एक गली पक्की है और नािलयां बनी हुई हैं। भले ही वोट के िलए िवधायक कोटे से ही बनाई गई हों। रहा सवाल नौकरी का तो शायद अापको यह पता नहीं िक देश में अब उच्च वगॆ के िलए ही सरकारी नौकिरयां कम हो गई हैं। नौकरी के िलए िशक्षा की जरूरत होती ै। मैं अापसे पूछता हूं जो मुसलमान पढ़ जाता है क्या उसे नौकरी नहीं िमलती। शीन अक्तर, नदीम ्ख्तर को क्या नौकरी नहीं िमली। मेरा तो यह मानना है िक मुसलमान भी इस देश की अथॆव्यवस्था के बहुत बड़े िहस्सेदार हैं। कानपुर औऱ यूपी के अन्य शहरों में अाकर देखें तो पता चलेगा िक मुसलमानों का क्या रुतबा है। रहा सवाल अातंकवाद का तो यह देश का मुद्दा है िकसी कौम का नहीं। और इससे हम सब िमलकर लडें़गे।

नदीम अख़्तर said...

सौरव जी, लगता है कि आप हिंदपीढी को भारत और गिने चुने अख्तारों को पूरा मुस्लमान कौम मान बैठे हैं. ज़रा रांची रूपी कुएं से बहार निकालिए, समुन्दर के जानवरों की दशा पता चल जायेगी और जिस हिंदपीढी की आप बात कर रहे हैं, अगर विकास उसको कहते हैं, तो मैं यही प्रार्थना करूंगा ऊपर वाले से कि ऐसा विकास पूरे देश का न हो. कीडे मकौडों की तरह ज़िन्दगी गुजार रहे हैं लोग. पानी आता है तो नाला रोड एक सीवर में बदल जाता है और आप हिंदपीढी का उद्धारण दे रहे हैं. कृपया अपनी मनोस्थिति में परिवर्तन लायें, क्योंकि अगर आप आँख में हरा चश्मा पहन लीजियेगा, तो बहार का दुनिया गुलाबी थोड़े ही दिखेगा, सब हर्रे-हर्रा दिखेगा. धन्यवाद. और हाँ सिर्फ़ मेल बाजी से काम नहीं चलेगा. बहुत दिन हो गया है मिले हुए, कभी घर आइये महाराज बैठ के हुज्जत करेंगे.

प्रमोद said...

धार्मिक उन्माद और आतंकवाद में गहन अन्तर है. बिना किसी प्रयोजन के नृशंश हत्याएं करने वाले न तो ह्रदय से किसी धर्म का पालन कर सकते हैं और न ही स्वयम को भारतीय कह सकते हैं. यह समस्या हिंदू या मुस्लमान की समस्या नही है वरन भारत की समस्या है. इसके प्रति हमें एक भारतीय के रूप में विचार करना चाहिए.

dahleez said...

नदीम जी शायद अापने मेरी िटप्पणी गौर से नहीं पढ़ी। मैंने उसमें यूपी का भी िजकऱ िकया है औऱ मुझे लगता है यूपी में मुसिलम अच्छी खासी तादाद में हैं। जहां तक सवाल है रांची रूपी कुएं में रहने का तो मैं तो उस कुएं से िनकल कर समुंदर में अा गया हूं, अाप कब अा रहे हैं। कीड़े मकौड़े की तरह िजंदगी गुजारने के पीछे कौन लोग हैं इसके बारे मे अापने नहीं सोचा इस बात का अफसोस है। िहंदपीढ़ी एक अादशॆ हो सकता था िकसी भी मुहल्ले के िलए लेिकन उसे बरबाद करनेवालों में कौन लोग शािमल हैं इसकी अापने कभी पड़ताल की है। िदंहपीढ़ी मेरा मुहल्ला था, मैंने वहां की गिलयों में अमन, शांित और खुशहाली देखी है इस कारण ही वह मुहल्ला मेरे जेहन मे िबल्कुल ताजा है। पतऱकािरता में अाए हैं तो चश्मा लगना स्वाभािवक है। अाठ घंटे कंप्यूटर पर अांख भोड़ने से भला अांखें कैसी बची रहेंगी। वैसें अल्लाह ने चाहा तो दीवाली साथ मनाएंगे।

रियाज़ हाशमी said...

शाबाश नदीम भाई
आपने बेहद तार्किक और बेजोड़ तरीके से बात पेश की है। आप बधाई के पात्र हैं, लेकिन मेरे पास तारीफ करने को शब्द नहीं हैं। मैं तो सिर्फ इतना ही कह सकता हूं-
हम पे ये इल्ज़ाम है कि वफ़ादार नहीं
हम वफ़ादार नहीं, तू भी तो दिलदार नहीं
हमने हक़ मांग लिया अपना तो मशकूक हुए
मुल्क भी बेच के तुम लोग तो ग़द्दार नहीं।
रियाज़

Sachin Jain said...

main aapki baaton se biklul sahmat nahi hoon, yahi mansikta iss desh ko dooba kar rahegi,

Yahan par main ye nahi kah raha ki sabhi muslmaan iss ke lie jimmedaar hain, par ek baat to sach hain ki jiska bhi aatankwadi gatividhi me naam aaya wo musalmaan tha, to ek baat to jaahir hai ki jisse bhi poochtaach hogi wo bhi musalmaan hoga, to isme haay toba karne ki jaaroorat kya hai,
Mere ko ek baat bataie ki agar kisi aatankwadi se poochnege ki tu aatankwadi hai to kyya wo kahega ki haan main hoon, mere ko pakad lo, Bhai poochtaach to karni hi padengi.............mere ko samajh nahi aata ki yahan par kya log pade-likhe hai ya bus kitab pad kar dogli soch le kar aa gae hai,

Sachin Jain said...

I might be a bit rough in my language, but guys I did not like the saying u people have done.
You people might have heard that Police is having pressure from Govt not to arrest muslims, thats why this Delhi blast happened and again you all people are saying that go ahead and not to arrest and investigate by making such usless talks and also saying that if the investigation continues they all will be in roads and make worst of the situation.........

Sachin Jain said...

मज़हबी दुश्‍मनी ने देखो कैसी आग लगाई है,
दिलों में दूरियां तो पहले ही थीं, अब चिंगारियां भी लगाई हैं,
इबादत का मतलब भी मालूम नहीं जिन्हें शायद,
धमाको को वो खुदा की इबादत कहते हैं,
मानवता की मौत जब होती है, जीत का अहसास किसी को होता होगा,
इंसानियत की ताकत का अंदाजा नहीं दशातगर्दो को,
इसको आसानी से दहलाया नहीं जा सकता........................

Anonymous said...

मैं संजय बेंगानी जी की बात से सहमत हूँ . रहा सवाल सोतेलेपन का तो सायद आप यह भूल गए . की हमारे पूर्व प्रेसिडेंट भी मुस्लिम हैं .और हमें उन पर गर्व भी हैं. मगर हम यह भी जानते है धुंवा वहीँ उठता है जन्हा आग लगी होती है! .मैं आप की एक बात से अब सहमत हूँ की आतंकवाद को सिर्फ़ प्यार सहायता से सुधार जा सकता है .मगर इसके बाद भी ना सुधरे तो ? श्रीमान हम जानते हैं की जितनी इज्जत मुस्लमान की इस देश में है जितनी सुविधा इस देश में हैं उतनी कहीं नही . खैर जाने दीजिये आप ने जो लिखा है सही ही लिखा होगा .

mediamatra said...

jara iss maansikta se bahar aao, muslim hone ki bajay bhartiy ki nazar se dekho. tum patrakar ho, meri salah hai kuch logo ki wajah se pure samudaay ko ye sandesh mat do ki ye desh paraya hai.ugrawad aur aatankwad me antar hota hai. naxalist bhi maare jate hai tab hindu-muslim kyu nahi dhundte.ye samajh lo ki abdul hameed jase saache logo ka samman bhi is desh ka har banda karta hai. kahan aur kab galat hua ye likhne aur saabit karne me anter hai.yah jaroor hai ki kai baar kusurwaar bach jate hain janne wale pakde jate hai.baat desh ki hai, desh bachao, agar maa par muskil aati to kya karte, ladte na. wahi ghadi aayi hai.tum bihar me baithkar kapur ke haleem muslim college ke bare me kuch nahi bata sakte ho, lekin main tumhe delhi, ahemdabad, jaipur, haydrabad ka sach dikha chuka hu. baat samudaay ki nahi ye samaj lo aur ye bhadkau artical likhe ki bajay kuch aacha likho....