प्रमोद
आज बैठे-बैठे अचानक मन में एक विचार आया। पहले जब फोटो बनवाना होता था तो नेगेटिव लिए स्टूडियो की और दौड़ते थे। अब कितना आसान हो गया है सबकुछ। डिजीटल कैमरा भी ऐसी चीज है जो हमारी तस्वीर बिना नेगेटिव बनाये ही प्रस्तुत कर देती है। फ़िर मन में विचार आया- "कहीं ऐसा तो नही की हम ही नेगेटिव हो गए हैं, इसीलिए वह कैमरा सीधे हमारी पाजिटिव मतलब फोटो प्रस्तुत कर देती है।" तो आइये जरा चर्चा करते हैं।
आज के दौर में भ्रष्टता, सम्वेदनशून्यता, मूल्यहीनता, नृशंशता, असत्य बोलने की प्रवृति, स्वार्थपरकता इत्यादि आदमी की पहचान बन गई है। यदि आप इससे परे हैं तो फ़िर आपके लिए कुछ संज्ञाएँ निर्धारित कर दी गई हैं- 'बनता है!', 'ख़ुद को देवता समझता है', 'सनकी है', इत्यादि-इत्यादि। मेरे कहने का मतलब है कि अगर आप उपरोक्त गुणों से आभूषित नही हैं तो फ़िर आदमी नही वरन ............हैं। विडम्बना है कि इन सारे आदमियों के गुणों को पूर्व के दार्शनिक-महात्माओं ने नकारात्मक गुण कहा है। तो इन गुणों से युक्त हम लोग हुए न नकारात्मक यानि नेगेटिव आदमी।
खैर, छोडिये दार्शनिक-महात्माओं की बातें। वास्तविकता यही है की आज के युग में मनुष्य वही है जो नेगेटिव हो। चलिए पहचान भी आसान हो गई। कैमरा यदि आपकी नेगेटिव बनता है तो फ़िर आप आम आदमी नही बल्कि विशिष्ट हैं। अब भला पशु तो हम हैं नही जो पेट भरने पर सामने भोजन रहे तो भी उसकी ओर नही देखता। कहा जाता है कि सिंह पेट भरने पर शिकार नही करता। हम तो बस भविष्य के लिए बचाने और जमा करने के फेर में लगे रहते हैं और इसके लिए ऊपर के सारे गुणों को किसी भी हद तक जाकर अपना सकते हैं।
चलिए बच्चों को पशु और मनुष्य में अन्तर बताने के दौरान इन गुणों के आधार पर विभेद बताने में आसानी होगी। पर एक चीज तो है कि हम एक मामले में ईमानदारी जरुर बरतते हैं, वह है- उपरोक्त सारे गुणों का अपनाने में हम कोताही नही करते। बस मौके के तलाश में रहते हैं, जैसे ही मौका मिलता है हम यह दिखा देते हैं कि आदमी होने के सारे गुण हमारे अन्दर मौजूद हैं और कैमरे में हमारी सदा पाजिटिव फोटो ही निकलेगी नेगेटिव कभी नही क्योंकि हम ख़ुद ही नेगेटिव हैं।
यही एक बात जेहन में नही उतरी कि आख़िर हम यह ईमानदारी नामक अवगुण को क्यों बचाए फ़िर रहे हैं भले ही वह उपरोक्त गुणों के सन्दर्भ में, उनकी रक्षा में ही क्यों न हो? इस अवगुण को भी अगर हम दूर कर पायें और भ्रष्टता, सम्वेदनशून्यता, मूल्यहीनता, नृशंशता, असत्य बोलने की प्रवृति, स्वार्थपरकता इत्यादि गुणों के पालन और रक्षा में भी बेईमानी बरते तो शायद कुछ अच्छा हो। तो इसी प्रश्न के साथ अपने विचारों के इस प्रवाह को रोकने का प्रयास करता हूँ- "उपरोक्त आज के आदमी के लिए आवश्यक गुणों के रक्षा और पालन के प्रति हम बेईमान कब बनेंगे?"
1 comment:
कम ही लोगों के पास यह नायाब चीज बची है..मगर वो सब बड़ी रतकलीफ में हैं..जल्द ही दूरी बना लेंगे वो भी इससे!!
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