Monday, September 22, 2008
वेश्यागमन करोगे !!??
आज तक समझ ही नहीं पाया कि अलग-अलग व्यक्तियों के साथ सोने वाली स्त्रियाँ वेश्या होती है या अलग-अलग स्त्रियों के साथ सोने वाला पुरूष वेश्या !! वेश्या के बारे में बहुत कुछ कहा जाता रहा है, कहा जाता रहेगा.... लेकिन कोई स्त्री वेश्या क्यूँ है? उसका उत्स क्या है? वह वेश्या क्यूँ है? क्या अब वो इस जीवन से निजात पाना चाहती है? उसने जीवन में क्या चाहा था? क्या माँगा था? दरअसल क्या वह इस धंधे को धंधा समझती है? धंधे के उसूल अपने से पृथक चीजों को बेचना होता है? अपनी ही देह का मजबूरी में पैसे कमाने के लिए इस्तेमाल करना क्या सचमुच एक स्वस्थ व्यापार कहा जा सकता है?? अगर सचमुच ऐसा है तो एक अच्छी से अच्छी वेश्या की, एक टुच्चे से टुच्चे व्यापारी कि तुलना में क्या साख, मान-सम्मान, हैसियत या रूतबा होता है?? एक वेश्या, जिसका इस्तेमाल हम अपने अनिर्वर्चनीय आनंद के लिए करते हैं, उसको हकीकत में हम क्या इज्जत देते हैं?? यदि नहीं तो क्यों हमने स्त्री जाति के एक विशाल वर्ग को इतना स्तरहीन, इतना मलीन, इतना व्यक्तित्व-विहीन बनाया हुआ है?? क्या सिर्फ़ अपनी विष्ठा-वीर्य उसमें त्यागने के लिए?? वेश्या को बनाए रखने में किसका हाथ है?? यदि हम सच ही में स्त्री को इज्जत देते हैं या वाकई हमारे भीतर उसके लिए पवित्र भावनाएं हैं!! तो क्या हमें इनके उन्मूलन के प्रयास नहीं करने चाहिए?? यदि हम ऐसा कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं तो जमाने से यह क्या चीखना-चिल्लाना करते रहते हैं?? हम सामर्थ्यहीन लोग झूठ-मूठ ही राग अलापते रहते हैं और विभ्भिन्न प्रकार की पोथियों के पन्ने काले करते रहते हैं?? ...स्त्री को जब भोगना ही है, तो बदनामी का भी मज़ा लो ...!! यों चोरी-छुपे भोगकर इज्जतदार होने का भी ढोंग क्यों?? ...यानी कि अन्दर भी बल्ले-बल्ले .... बाहर भी बल्ले-बल्ले !!वाह रे आदमी !! इसे ही तो कहते हैं चित भी मेरी ...पट भी मेरी !!!!
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