Wednesday, October 1, 2008

सामुदायिक पूजा का नया चलन

एेसा पहली बार नहीं हुअा है िक िकसी धािमॆक स्थल पर कुचलकर लोगों की मौत हुई हो। हम भले ही पऱशासन को कोस लें, तरह-तरह की दलीलें दे लें। धािमॆक स्थलों पर अत्यिधक भीड़ जुटने के पीछे लोगों की बदल रही मानिसकता को नजरअंदाज नहीं िकया जा सकता है। िहंदू धमॆ में सामुदाियक पूजा की अवधारणा नहीं रही है। इसी कारण हर िहंदू के घर में पूजा स्थल होता है और अांगन में तुलसी का पौधा। अांगन में तुलसी का पौधा भले ही न हो पर छोटा सा ही सही पूजा का स्थान तो अवश्य होता है। बदलते समय के साथ िहंदू धमॆ में भी सामुदाियक पूजा के पऱित लोगों का रुझान बढ़ता जा रहा है।
मुझे याद है िक पहले हमारे पूरे शहर से चार लोग माता वैष्णो देवी के दशॆन करने जाते थे, उस वक्त लोग कहा करते थे,िक फलां व्यिक्त वैष्णो देवी गए थे, वह भी िकसी खास मकसद से। अब सुनने में अाता है िक पूरा मुहल्ला ही उठ कर वैष्णो देवी गया है। यह फकॆ धीरे-धीरे अाया है। इस देश में पहले मुसलमानों का अाकरणमण हुअा, उन्होंने राज िकया और उसके बाद अंगऱेजों ने यहां शासन िकया। मुसिलम और ईसाई दोनों धमोॆं में सामुदाियक पूजा यानी कम्युिनटी इबादत या पऱेयर की अवधारणा है। मुसिलम समुदाय के लोग हर िदन में पाच बार मसिजद जाकर नमाज पढ़ते है। उनकी यह परंपरा है। उसी तरह ईसाई भी हर रिववार को चचॆ जाते हैं। यह ईश्वर के पऱित अास्था का उनका तरीका है। इसके िलए उन्होंने अपनी अपनी व्यवस्थाएं कर रखीं हैं। िहंदू धमॆ में एेसी कोई व्यवस्था नहीं थी। हर घर मंिदर और पत्थर देवता के रूप में पूजे जाते हैं। धीरे-धीरे अवधारणाएं बदलने लगीं। अास्था का भी धऱुवीकरण होने लगा। इसी धऱुवीकरण के कारण कुछ मंिदर और धािमॆक स्थलों को वह दजाॆ पऱाप्त हो गया मानो जो वहां गया नहीं उसका जीवन बेकार। बात यहां तक तो समझ में अाती है पर इसके अागे जो िवकृितयां अाईं उसने अास्था और धमॆ को बाजार के करीब ला िदया। जैसे ही अाप िकसी बहुत पिवतऱ या जागृत मंिदर की सीिढ़यां चढ़ते हैं, वैसे ही अापको एहसास होगा िक अापकी अास्था का ध्यान केंिदऱत करने के कई कारक वहां अापका इंतजार कर रहे हैं। पहली सीढ़ी चढते ही अापको यह डर सताने लगेगा िक अापका चप्पल या जूता कोई चुरा न ले। इसके िलए अलग व्यवस्था। छोटे-छोटे बच्चे से लेकर युवा तक इस पुनीत कायॆ में अापका सहयोग करते हैं। दूसरी सीढ़ी पर पऱसाद का बाजार। और जब अाप मंिदर में अपना पऱसाद चढ़ाएंगे तो पुजारी की दिक्षणा। यहां भी क्लास का ख्याल रखा जाता है। कोई वीअाईपी होता , तो कोई वीवीअाईपी। सामान्य कैटेगरी की तो कोई पूछ ही नहीं। चामंडा देवी मंिदर में भी एेसी ही कोई ्ाशंका जताई जा रही है।
इस िवषय पर दूसरी पोस्ट जल्द ही।

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

सही कहा है आप ने।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

देखा जाय तो किसी भी बदलाव की शुरुआत अच्छे के लिए होती है , सामुदायिक पूजा की शुरुआत भी ऐसे ही कारणों से हुई थी मगर समय के साथ समाज के लोगो की लम्पटता इसमे भी दिखाई देने लगी है ,अच्छा हो की हम अपने आप को सुधारे , बाकि चीजे अपने आप ही सुधर जाएँगी !!