Thursday, October 23, 2008
भारत और महाराष्ट्र का द्वंद्व
नदीम अख्तर
तीन दिन पहले जब राज ठाकरे एंड कंपनी ने मुंबई में बिहारी-झारखंडी और यूपी जैसे बेरोजगार ऊर्वर्क राज्यों के लड़कों को पीटा तो मेरे घर में बहस छिड़ी कि क्या यह मानवता है। मैं कह रहा था कि नहीं यह ठीक नहीं है। बिहार-झारखंड या यूपी से गये लोगों का क्या कसूर। क्या वे रोजगार की तलाश में गये थे, इतनी सी ही गलती है न उनकी? मैं चर्चा के दौरान अपने दो भाइयों को यह समझाने की कोशिश कर रहा था कि भारतीय संविधान की मूल भावना क्या है। कैसे यह सभी को एक समान जीने-खाने के अवसर देता है और कैसे विश्र्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में हर छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, काले-गोरे के लिए एक समान न्याय की व्यवस्था की गयी है और पूरे देश में कहीं भी किसी को भी जाकर रोजी-रोजगार तलाशने और बसने का पूरा हक है, सिर्फ कश्मीर को छोड़ कर। मेरे भाइयों की दलील बेहद सतही थी, जो आम जन की भावनाओं पर आधारित थी। पहले तो मेरे भाइयों ने यह कहा कि राज ठाकरे के गुंडों ने जो किया, वो ठीक किया। उनका कहना था कि वहां पहले भी बिहारी-झारखंडी पिटे जा चुके हैं। वहां खतरा है, यह जानकर भी लोग क्यों गये। क्या बिहार-झारखंड के लड़कों को नहीं मालूम कि वहां मनसे के लोग डंडों से उनका स्वागत करेंगे। मैंने कहा कि यह कोई बात तो नहीं हुई कि अगर कोई धमकी दे, तो उस राज्य में ही नहीं जाये और न जाये तो क्या करे। परीक्शा तो देनी ही थी। और, अगर ऎसे ही सभी राज्यों में निषेध होता रहा तो पूरे देश में लोगों का आना-जाना, रहना, काम करना सब खत्म हो जायेगा। मेरे भाइयों का कहना था - हो जाये खत्म। न जाये कोई मुंबई। हिंदी भाषी राज्यों से गये एक्टर, एक्ट्रेस, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर सभी इस बेहयाई पर अपना विरोध प्रकट करें और यूपी या बिहार में आ कर बस जायें। हिम्मत है तो महाराष्ट्र से अपना नाता तोड़ लें। देखते हैं कि कितने दिनों तक चलेगा बॉलीवुड। गिने-चुने लोग ही हैं मराठी, बॉलीवुड में। ज़्यादातर लोग बिहार-झारखंड-यूपी-दिल्ली के मिलेंगे। इसके अलावा, जो लालू यादव आज आंसू बहा रहे हैं, आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं, उनके हाथ में तो पूरा रेलवे है। क्यों नहीं उन्होंने महाराष्ट्र रेलवे से भर्ती बोर्ड को ही भंग कर दिया। क्यों नहीं उन्होंने एक नया रेलवे भर्ती बोर्ड देवघर में स्थापित करने का आदेश दे दिया। क्यों नहीं उन्होंने कैबिनेट में इस बात पर सहमति बनवायी कि अब मुंबई में रेलवे से संबंधित कोई काम नहीं होगा।मुंबई या पूरे महाराष्ट्र से रेलवे के एक-एक काम को समाप्त करने का आदेश, तुरंत रेल मंत्रालय के स्तर से जारी होना चाहिए था। इसके अलावा मेरे भाइयों का यह भी कहना था कि जो लोग अभी मुंबई या कहीं और काम कर रहे हैं, उन्हें धीरे-धीरे करके अपने-अपने राज्यों में लौट जाना चाहिए, ताकि महाराष्ट्र में श्रम शक्ति का टोटा पड़ जाये। वहां की नेगेटिव बातों का प्रचार इतना हो कि निवेशकों में भय उत्पन्न हो जाये। हिन्दीभाषी राज्यों के मुख्यमंत्री किसी भी इनवेस्टर के साथ समझौता करने से पहले यह तसदीक करें कि किसी भी निवेशक को तभी ज़मीन या आधारभूत संरचना उपलब्ध करायी जायेगी, जब वे यह लिख कर दें कि उनका कोई प्रोजेक्ट महाराष्ट्र में नहीं लगेगा। इसके अलावा हर वो काम किया जाये, जिससे महाराष्ट्र के राजनेताओं को उनकी करनी का फल हर रोज सूद समेत मिले। मैं विचारों की इस उग्रता से काफी विचलित हो गया। मुझे यह लगा कि लोग अगर इस कदर आक्रोश में हैं, तो कल को कुछ भी करने लगेंगे। हो सकता है कि जो युवा जिल्लत झेल के लौटे हैं, बेरोज़गारी के आलम में गलत लोगों के हाथों में भी फंस जायें। फिर क्या होगा, कोई भी आतंकी गिरोह इन युवाओं को पैसे देगा और कहेगा कि मुंबई स्टेशन पर एक बैग रख देना। पैसे के लिए तो बेरोजगार कुछ भी करने को तैयार हो जायेगा। फिर फटेगा बम, जिससे मचेगी तबाही और लोग कहेंगे कि आतंकवादी मासूमों की जान लेते हैं। खुदा या भगवान न करे कि कभी ऎसा हो, लेकिन राज ठाकरे या फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, क्या नाम है... हां..विलास राव देशमुख जैसे नेताओं ने महाराष्ट्र को देश से अलग करने का जो षड्यंत्र रचा है, उससे आने वाले दिनों में ऎसा होना तय मानिये। जब दो देशों के बीच (भारत और महाराष्ट्र) वैमनस्यता होगी, तो भारत के लोग भी महाराष्ट्र के खिलाफ षड्यंत्र करेंगे ही। फिर आप उसे आतंकवाद का नाम देना चाहें या फिर देशभक्ति का, नारा तो एक ही लगेगा और वो भी हिंदी में- भारत माता की जय !!!
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4 comments:
sahi kaha aapne.
क्या देश को आजादी दिनाने के संघर्ष के समय हमारे नेताओं ने ऐसे ही भारत के सपने देखे थे? दिशाहीन नेतृत्व जमूरों की जमात में बदल गया है, लोकतंत्र की जगह भीड़तंत्र हावी है। आप और हम चिंता करने के सिवा और कर भी क्या सकते हैं।
गीता-ओ-कुरान जला दो, बाइबल का करो प्रतिवाद,
आओ मिल कर लिखें हम एक महाराष्ट्रवाद.
नदीम भाई ,
सविधान को एक आम आदमी तो अच्छी तरह समझता है,नहीं समझते तो सिर्फ़ वे ...जिन पर इसकी रक्षा का दायित्व है... और इसका कारण बेहद लालची..दंभी...और नितांत स्वार्थी लोगों का एकदम से शक्ति संपन्न हो जन है...साथ ही शरीफ लोगों का चुप करके बैठ जाना है..... अब इस ताकत का अंत करने का समय आ गया है ....वरना ये लोग देश को खा जाने वाले हैं ...और निदान हमारे ही कहीं बीच से निकलेगा !!
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