मैं तेरा क्या लगूं.....!!
कितना भी रहूँ ग़मगीन मगर हंसता हुआ लगूं...
कोई बद-दुआ भी दे तो उसे बन कर दुआ लगूं !!
ये कड़ी धूप और कभी जो हो बादलों की छाँव...
हर मौसम में मैं फूल सा खिलता ही हुआ लगूं...!!
कई धरम हैं यहाँ और रिवायतें भी हैं कई....
हर किसी को मैं उसके धरम का मसीहा लगूं..!!
अभी तो मैं रात का सन्नाटा बुन रहा हूँ "गाफिल"
दिन में आकर पूछना सूरज कि मैं तेरा क्या लगूं..!!
4 comments:
अभी तो मैं रात का सन्नाटा बुन रहा हूँ "गाफिल"
दिन में आकर पूछना सूरज कि मैं तेरा क्या लगूं..!!
वाह वा...भाई...बहुत खूब...बहुत अच्छा लिखा है आपने...बधाई.
नीरज
bahut badhiya
कई धरम हैं यहाँ और रिवायतें भी हैं कई....
हर किसी को मैं उसके धरम का मसीहा लगूं..!!
ये पंक्तियाँ तो जान ही ले गई बहुत खूब बहुत बढ़िया .........
किसी सागर की प्यास लगूं या किसी के दिल की भड़ास लगूं
दूर होकर भी पास लगूं या हूं अनजाना फिर भी खास लगूं
कुछ ऐसे ही लिख दिया क्षमा गर त्रुटी हो तो.....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
आप
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑ इस पर क्लिक कीजिए
आभार...अक्षय-मन
Post a Comment