Wednesday, November 5, 2008


पलट जाते हम अगर.... पूरी दास्ताँ ही बदल जाती...

जो विरह से भर तुम्हें....ऐसी तन्हाई मिल ना पाती.....!!

अपने दिल पे जज्ब करके ख़ुद को तुझसे दूर किया....

वगरना कहाँ तुम्हे इस सागर-सी गहराई मिल भी पाती...!!

सुकून है मुझे अब तन्हां-तन्हां वीरान-सा फ़िर रहा हूँ ,

तन्हाई तक मुझसे मिलने मुझतक आ नहीं पाती !!

2 comments:

Udan Tashtari said...

सही है, लगे रहिये भूतनाथ.

seema gupta said...

सुकून है मुझे अब तन्हां-तन्हां वीरान-सा फ़िर रहा हूँ ,
तन्हाई तक मुझसे मिलने मुझतक आ नहीं पाती !!

" bhootnath jee ye kaun see rah pe neekal pden hain aap, aap to din ba din inssano ke kheme kee trf rukh krtyn ja rhe hain....."

regards