Saturday, December 6, 2008

युद्ध स‌माधान नहीं...


नदीम अख्तर
आज जो कुछ नेताओं के बारे में लिखा-पढ़ा, कहा-सुना, दिखाया और देखा जा रहा है, उससे स‌मग्र रूप स‌े स‌हमत होना थोड़ा मुश्किल है। ऎसा मेरा मानना है। देश में लोकतंत्र की जो व्यवस्था है उससे अलग हटकर तो कोई और तंत्र नहीं चलाया जा स‌कता है। हां, ये बात अलग है कि हमें मिलकर ऎसे हमलों और आतंक की कार्रवाई को रोकने के रास्तों पर विचार करना होगा। इस बात स‌े तो आप भी स‌हमत होंगे कि आखिर हिंसा स‌े हिंसा को स‌माप्त नहीं किया जा स‌कता। मैं मानता हूं कि आज हम जो कुछ झेल रहे हैं, वह कालांतर के राजनीतिक-सामाजिक कुप्रबंधन एवं स्वार्थलोलुपता के द्वारा की गयी ज़्यादतियों का प्रतिफल है। आपको याद होगा कि स‌िख स‌मुदाय के धार्मिक स‌्थल स‌्वर्ण मंदिर पर बर्बर स‌ैन्य कार्रवाई (ऑपरेशन ब्लू स‌्टार) ने पंजाब में आतंकवाद को और बढ़ा दिया था। यहां तक कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उसी कार्रवाई की प्रतिक्रिया की वेदी चढ़ गईं। फिर उस कार्रवाई की प्रतिक्रियास्वरूप 1984 के दंगे हुए। उस दौरान स‌िख स‌माज के स‌ाथ जो कुछ हुआ, क्या उसे एक भारतीय होने के नाते हम न्यायोचित कह स‌कते हैं। नहीं ना। तो फिर उसके बाद हुई क्रूर कार्रवाईयों को हम ताक पर रखकर आतंक की स‌माप्ति के बारे में कैसे स‌ोच स‌कते हैं। शासन को स‌र्वप्रथम नीतियों में व्यापक बदलाव लाना होगा।
अमेरिका आज अपनी युद्धपरस्त नीतियों का खामियाज़ा भुगत रहा है। उसके पास तो विश्र्व स‌मुदाय स‌े लूटा हुआ खजाना था, जिसके बल पर वह वैश्र्विक मंदी के दौर में आज भी अपने पैरों पर खड़ा है, लेकिन भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह एकदम विपरीत है। हम खुद कमाते हैं, तब खाते हैं; ऎसी स‌्थिति में अगर कोई पाकिस्तान या अन्य मुल्क के स‌ाथ जंग की बात कहे, तो कम स‌े कम इस देश का चिंतनशील नागरिक तो कतई इसका स‌मर्थन नहीं कर स‌कता है। भारत की ओर स‌े युद्ध का आगाज़ किया जाता है, तो पाकिस‌्तान भी पीछे नहीं रहेगा वह भी हमले का जवाब देगा। भारत और पाकिस्तान दोनों ही परमाणु शक्ति स‌ंपन्न देश हैं। भारत का लोकतंत्र तो फिर भी काफी गठीला है, लेकिन पाकिस्तान का लोकतंत्र केवल फौजी रहमोकरम का मोहताज है। अर्थ यह है कि भारत पहले परमाणु हमला नहीं करेगा, इसकी गारंटी वह दे चुका है लेकिन पाकिस्तान के स‌दर की ओर स‌े हाल में इस स‌ंदर्भ में दिया गया वक्तव्य न तो आम अवाम के द्वारा स्वीकार किया गया है और ना ही फौज के द्वारा। पाकिस्तान हमेशा यह कहता आया है कि वह अपने बचाव के लिए अपने रक्षासूत्रों का इस्तेमाल करेगा। ऎसी स‌्थिति में लोगों को यह स‌मझना चाहिए कि पाकिस्तान के स‌ाथ जंग लड़कर आतंक को स‌माप्त करने के दिवास्वप्न देखना अपने मानसिक दीवालियेपन का द्योतक ही है। आपको मालूम होगा कि 2001 में अमेरिका पर हुए आतंकी हमलों के बाद अमेरिका ने युद्ध की घोषणा की थी। आज स‌ात स‌ाल हो गये, लेकिन आज भी अफगानिस्तान में आतंक के स‌ौदागर खत्म नहीं हुए हैं। नौबत यह आ गयी है कि एक स‌मय अमेरिका के स‌बसे गुड ब्वॉय रहे हामिद करज़ई (अफ़गानिस्तान के राष्ट्रपति) अब अमेरिका स‌े ही दूर भाग रहे हैं। वह यहां तक कह रहे हैं कि विदेशी स‌ेना के देश छोड़ने की स‌मय स‌ीमा तय होनी चाहिए। क्या आप जानते हैं कि करज़ई आखिर ऎसा क्यों कह रहे हैं? असल में अफ़गानिस्तान में फौज की ज़्यादतियों और असंख्य़ निर्दोष नागरिकों की मौत ने वहां के आम लोगों को ही आतंकियों का हमदर्द बना दिया है। पहले तालिबानी लड़ाकों की स‌ंख्या एक लाख थी, तो आज उन लड़ाकों का स‌ाथ देने के लिए मुल्क की 65 फीसदी आबादी खड़ी है। इसका स‌ीधा अर्थ यह हुआ कि अफगानिस्तान का बहुसंख्य स‌माज आतंकी हो चुका है। लोग हामिद करज़ई को देखना नहीं चाहते। और, चुनाव अगले स‌ाल होनेवाले हैं। स‌ंभवतः स‌ितम्बर में, जिसमें एक बार फिर तालिबान स‌मर्थकों का चुन कर आना तय है। मतलब इस बार जो स‌रकार वहां बनेगी, वह कमोबेश तालिबान की ही होगी।
अब ज़रा पाकिस्तान की परिस्थितियों पर नज़र डालिये। आज की तारीख में अगर हम पाकिस्तान में आतंकियों की गिनती करें, तो कह स‌कते हैं कि मुश्किल स‌े दस हजार लोग शुद्ध रूप स‌े आतंकवादी होंगे। शेष जनता तो हमारे-आपके ही तरह एक-एक वक्त की रोटी के लिए स‌ंघर्ष कर रही है। अगर भारत जंग छेड़ता है, तो आतंकियों के मारे जाने की गारंटी तो नहीं है लेकिन आम आदमी के भारी तादाद में हलाक होने की पूरी गारंटी है। ऎसा इराक़, अफगानिस्तान, दारफुर, स‌ोमालिया, अरमीनिया, वियेतनाम में देखा और महसूस किया जा चुका है। इन स‌भी देशों, और ऎसे ही कई अन्य मुल्कों में मानव स‌भ्यता लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित शासन व्यवस्था और पूरे तंत्र स‌े ही नफरत करती है। इन देशों में आत्मरक्षा ही स‌बसे अहम स‌वाल हो गया है, जो लोग "आत्म" के ही बलबूते करने को मजबूर हैं। इसका प्रतिफल यह है कि हिंसा ने हिंसा को इतना बढ़ा दिया है कि जंग का आगाज करनेवाले मुल्क के स‌ामने अब युद्धरत देशों स‌े पीछे हटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। अमेरिका हो या भारत, एक स‌च्चाई का स‌ामना स‌भी को करना पड़ेगा कि युद्ध स‌े स‌िर्फ नफरत को ही बढ़ाया जा स‌कता है। युद्ध किसी स‌मस्या का स‌माधान नहीं है। अगर ऎसा होता, तो आज अमेरिकी फौज बहुतायत में मानसिक रोगी होकर अपने घर नहीं लौट रहे होते। अगर ऎसा होता, तो संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिकों पर सूडान, आइवरी कोस्ट और हैती में बाल यौन शोषण के गंभीर आरोप नहीं लगते। और, जो लोग युद्ध के पैरोकार हैं, उनके लिए स‌ंयुक्त राष्ट्र के शांति स‌ैनिकों की करतूत पर इसी स‌ाल जारी रिपोर्ट नज़ीर है। अंतर्राष्ट्रीय गैरसरकारी संस्था-- सेव द चिल्ड्रेन की रिपोर्ट में बताया गया है कि आंतरिक संघर्ष से बेहाल अफ्रीकी देश आइवरी कोस्ट, सूडान और लैटिन अमेरिकी देश हैती में शांति सैनिकों और अंतर्राष्ट्रीय सहायता एजेंसियों के कार्यकर्ताओं द्वारा स्थानीय बच्चों का शारीरिक व मानसिक शोषण किया जा रहा है। शोषितों में छह वर्ष की उम्र तक के बच्चे भी शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र तक पहुंचने वाली शिकायतों की संख्या वास्तविक घटनाओं की तुलना में काफी कम है। स्थानीय पुलिस भ्रष्टाचार में लिप्त है। पैसे और बंदूक के बल पर स्थानीय प्रशासन को खामोश रहने के लिए मजबूर किया जाता है। स्थानीय बच्चों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पीड़ितों और अच्छी छवि वाले कुछ गैरसरकारी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं से लिये गये गहन साक्षात्कार के हवाले से सेव द चिल्ड्रेन ने कहा है कि शांति सैनिक इन देशों में कई तरह के गंभीर यौन अपराधों में लिप्त हैं। इनमें बाल वेश्यावृत्ति, बलात्कार, समलैंगिक यौनाचार, अश्लील फिल्मों का निर्माण, अश्लील टीका-टिप्पणी, यौन-गुलामी और बाल ट्रैफिकिंग तक के मामले शामिल हैं। रिपोर्ट सामने आने के कुछ ही दिनों पहले ही आइवरी कोस्ट की एक 13 वर्षीय लड़की ने बीबीसी को बताया था कि संयुक्त राष्ट्र के दस शांति सैनिकों ने उसके साथ बलात्कार किया और उसे लह-लुहान अवस्था में छोड़ गये, लेकिन शांति सैनिकों के खिलाफ शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गयी।
इतना ही नहीं, रिपोर्ट में बाल यौन शोषण के विभिन्न तरीकों को विश्लेषित करते हुए कहा है कि सूडान, आइवरी कोस्ट और हैती के उत्पीड़ित बच्चों में 60 प्रतिशत के साथ बलात्कार किया गया जबकि 40 प्रतिशत को भोजन, कपड़े, पैसे आदि का लोभ देकर वासना का शिकार बनाया गया। हैती में 70 उत्पीड़ित बच्चों के एक समूह में से 40 ने कहा कि उनके साथ बलात्कार की घटना घटी। 53 बच्चों ने अश्लील मौखिक टिप्पणी और आपत्तिजनक इशारे की शिकायत की जबकि 40 बच्चों का कहना था कि उन्हें पैसे और भोजन सामग्री का लालच देकर वासना का शिकार बनाया गया। ये बच्चे 6 से 17 वर्ष के आयु वर्ग के थे। इस रिपोर्ट में कई भुक्तभोगी बच्चों की आपबीती उन्हीं के शब्दों में उद्धृत की गयी है। हैती की एक 15 वर्षीय उत्पीड़ित लड़की का बयान यूं है-- "एक दिन मैं अपनी कुछ सहेलियों के साथ एक रिश्तेदार से मिलने जा रही थी। रास्ते में शांति सैनिकों ने मुझे और मेरी सहेलियों को जबरन अगवा कर लिया और फिर सबके साथ बलात्कार किया गया। कुछ लड़कियों को समलैंगिक आचरण के लिए भी मजबूर किया गया। उन लोगों ने मोबाइल फोन के कैमरे से अश्लील फिल्म बनायी और इसके लिए कुछ लड़कियों को पैसे भी दिये।"
अब ज़रा ये स‌ोचें कि क्या वर्दी की ताकत आज़माकर जिन जगहों पर बच्चों-लड़कियों का शोषण किया गया/जा रहा है, वहां आतंकवादी पैदा नहीं होंगे। जिनके स‌ाथ ज़्यादती हुई, वे तो मौका मिलते ही बंदूक उठायेंगे। फिर क्या यह नहीं मालूम कि युद्ध के दौरान स‌ैनिक कार्रवाई में निर्दोषों के मानवाधिकार का क्या हश्र होता है? स‌भी को पता है। अगर भारत-पाकिस्तान में भी युद्ध होगा, तो शोषण और दमन की लंबी दास्तां लिखी जायेगी, जिससे अंततः चरमपंथ ही फले-फूलेगा। आज भारत को आतंक का मुकाबला करना है, तो स‌बसे पहले उसे स‌ामाजिक-राजनैतिक स्तर पर व्याप्त अनियमितता को स‌माप्त करना होगा। कई स‌ारी रपटें आयीं हैं, भारत में अल्पसंख्यकों को लेकर। उन्हें अमल में लाइये। देश के अल्पसंख्यकों को विश्वास में लेकर की गयी कूटनीतिक कार्रवाई का जब जमीनी स्तर पर स‌मर्थन मिलेगा, तभी पूरी तरह स‌े किसी भी कार्रवाई की स‌ंपूर्ण स‌फलता स‌ुनिश्र्चित हो पायेगी।

6 comments:

दिगम्बर नासवा said...

कितनी आसानी से लिख दिया युद्ध विकल्प नही है, चलिए परोक्ष युद्ध न करें पर विशेष दस्ता सीमा-पार भेज कर कार्यवाही जरूर करनी चाहिए, ये भी युद्ध का ही एक रूप है

गीता पंडित said...

मैं आपकी बात से पूर्ण रूप से सहमत हूँ लकिन कब तक सौ करोड़ की जन - संख्या वाला ये देश ऐसा अनाचार सहता रहेगा.......??

अब समाधान आवश्यक है.....कैसे...??
जागरूकता अपना सर उठा चुकी है.......सख्त फैसले लेने ही होंगें....


गीता पंडित (शमा)

Rama said...

आपकी बात से मै सहमत हूं यदि युद्ध होगा तो हर क्षेत्र में तबाही तो होगी ही लेकिन आतंक को रोकने का कोई और चारा भी तो नहीं है...सरकार चाहे जितनी नीतियां बदल ले...युद्ध के सिवा शायद कोई विकल्प नहीं बचा?? युद्ध जब होता है तब बहुत कुछ अभिशाप छोड़ जाता है...कई-कई पीढ़ियां अभिशप्त हो जाती है इसलिए तो कहते हैं युद्ध अभिशाप है वरदान कभी नहीं हो सकता पर इसका अभिप्राय यह भी कि ज़ुल्म होते रहें और हम कुपरिणामों के डर से चुपचाप सहते रहें...हमें हर संभव कोशिश करना चाहिए युद्ध टालने के लिए फिर भी यदि जरूरी हो जाए तो युद्ध होना ही चाहिए। सार्थक जानकारी के लिए आभार।

डा.रमा द्विवेदी

Anonymous said...

बिल्‍कुल सच कहा है आपने
और युद्ध धान भी नहीं कि
धोया भिगोया उबोला और
खा लिया मिलाकर दाल में।
अविनाश वाचस्‍पति

आलोक साहिल said...

nadeem bhai,main bilkul is bat se ittafaq rakhta hun ki yuddha koi strhayi upaay nahi.
iski maang ek kshanik aawesh mein kiya gaya bachpana hi hai.aur bachpan jitna hi lubhawana hota hai,BACHPANA utna hi ghatak.....
ALOK SINGH "SAHIL"

Jagadish Mohanty said...

यह मुश्किल की घड़ी है.देश को सही दिशा देने के लिए भावुकता से उपर उठ कर सोचना पड़ेगा. पाकिस्तान जलता हुआ बारूद , एक दिन ख़ुद ही जल जाएगा . हम मानते हैं की भारत एक श्वाश्वत देश .सदियों से जीवित है और आगे भी रहेगा .आतंकवाद से हमें लड़ना है,इस लड़ाई में हमारा विजय अवश्य होगा , पर उसके लिए संतुलित और सोच समझ कर प्रयास जारी रखना होगा .कोरी भावुकता से काम नहीं चलेगा , दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति भी चाहिए .उसीकी खोज होनी चाहिए