Sunday, December 14, 2008

रात भर मैं पागलों की तरह कुछ सोचता रहा....!!



प्यार से गले लगाया जब सिसकती मिली रात....
पास जब उसके गया तब सिमटती मिली रात...!!
रात जब आँखे खुलीं उफ़ तनहा-सी बैठी थी रात...
साँस से जब साँसे मिलीं तो लिपटती मिली रात !!
मैं दिखाता उसे नूर-ऐ-सबा सौगाते-सुबह की झलक
सुबह से पहले ही मगर सो गई वो चमचमाती रात
रात जब रात का मन ना लगा तब यूँ "गाफिल"
की पेट में गुदगुदी तो हंसने लगी मदमदाती रात !!
रात को जब कायनात भी थक-थकाकर सो गई
रात भर भागती फिरी बावली जगमगाती रात !!
रात को इक कोने में मुझको गमगीं-सा पाकर
सकपकाकर रोने लगी यकायक कसमसाती रात !!
रात जब रात का मन ना लगा तब यूँ "गाफिल"
की पेट में गुदगुदी तो हंसने लगी मदमदाती रात !!

1 comment:

कडुवासच said...

रात जब आँखे खुलीं उफ़ तनहा-सी बैठी थी रात...
साँस से जब साँसे मिलीं तो लिपटती मिली रात !!
... प्रसंशनीय है।