नये साल में खबरों की खबर अगर किसी अखबार में दिखी, तो वो न तो प्रभात खबर में थी, नहिन्दुस्तान में और न ही दैनिक जागरण में, मेरे ख्याल से सबसे अच्छी खबर थी टेलीग्राफ के पास। चंद्रजीत मुखर्जी की खबर (Army ruins Dassam party) में बहुत ही करीने से इस सच्चाई से रू-ब-रू कराया गया कि आम आदमी की औकात क्या है। कहीं पुलिस वाले, कहीं नेता, कहीं बड़े अधिकारी, तो कहीं सेना का दबदबा। आदमी के लिए अभिजात्य वर्ग के सामने घुटने टेकने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
पहली जनवरी को यूं तो पिकनिक और धूम-धड़ाके की खबर हर अखबार में दिखी, लेकिन टेलीग्राफ की यह खबर ज़रा हटकर इसलिए थी, क्योंकि इसमें यह बताया गया था कि दसम फॉल को किस तरह आर्मी के एक ब्रिगेडियर के मेहमानों के लिए जवानों ने पूरी तरह से कब्ज़े में कर लिया था। जिस स्थल से फॉल का सबसे मनोरम दृश्य दिखाई देता है, उसे जवानों ने कैप्चर किया वहां किसी आम आदमी को जाने की इजाजत नहीं दी। यह सबकुछ हुआ 14 सिख रेजिमेंट के डेप्युटी जेनरल आफिसर कमांडिंग ब्रिगेडियर पीके राय के मेहमानों को खुश करने के लिए। सिख रेजिमेंट के जवान सुबन नौ बजे ही दसम फॉल पहुंच चुके थे। इन्होंने तम्बू गाड़कर ऎसी बैरिकेडिंग की कि जिस स्थान पर पचास लोग आराम से खा-पी सकें, वहां परिंदा भी पर ना मार सका। बाकायदा टेबुल और कुरसी लगाकर मेहमानों के लिए लजीज वंयजन परोसे गये। वहां से आने-जाने वाले आम लोग हसरत भरी निगाहों से सेना के रसूख को देख कर मन ही मन अपने आम आदमी होने की मातमपूर्सी कर रहे थे। जब कुछ आम लोगों ने जवानों से यह गुजारिश की कि उन्हें थोड़ी देर के लिए उस स्थान पर जाने दिया जाये जहां आम लोगों के पैसे से राज्य सरकार ने फॉल साइट स्पॉट बनाया है, तो जवानों ने लोगों को साफ इंकार करते हुए कहा कि किसी को वहां तब तक नहीं जाने दिया जायेगा, जबतक वहां "साहब" मेहमान हैं। सैन्य अधिकारी के मेहमान जब कॉफी और जूस का मज़ा ले रहे थे, उस वक्त आम लोग टावर से खदेड़े जा रहे थे। एक जवान ने कहा - 'हम वही कर रहे हैं, जो हमें करने को कहा गया है। हमने 9 बजे ही इस जगह को बुक कर लिया था।' एक पर्यटक श्यामल कार कहते हैं - 'दसम फॉल किसी की जागीर नहीं। क्या हमें सिर्फ इसलिए इस स्थल से दूर रखा जा रहा है, क्योंकि हम सिविलियन हैं।' सुधांशु वर्मा ने भी कुछ इसी तरह अपने गुस्से का इज़हार किया। दूसरी ओर टेलीग्राफ ने जब ब्रिगेडियर राय से बातचीत की, तो उन्होंने इस बात से इंकार किया कि उनकी ओर से जवानों को कोई निर्देश दिये भी गये थे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि किसी जवान को यह नहीं कहा गया था कि किसी आम आदमी को रोका जाये।
2 comments:
Interesting....
अाम तौर माना जाता है िक भारतीय सेना अनुशािसत रहती है। जब तक अाला अफसरों का हुक्म न हो वह कुछ नहीं करती। िफर जवानों की करनी की सीधी िजम्मेदारी अफसरों की होती है। यह मानना मुिश्कल है िक जवानों ने अपने मन से एेसा िकया। एेसी खबर से िलए टेलीगऱाफ और अापको शुिकऱया।
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