Wednesday, January 21, 2009

रियाल्टी शो और क्षेत्रवाद

मोनिका गुप्ता

पिछले साल बिहारी-मराठी विवाद के रूप में क्षेत्रवाद का जो रूप सामने आया, वो चकित करने वाला तो नहीं था लेकिन सोचनीय जरूर था। आजादी के 60 साल बाद भी हम जिस सोच से न निकल पाये हों वह क्षेत्रवाद अब भी पहले की ही तरह हमारे समाज में विद्यमान है और तेजी से अपनी जड़ें फैला रहा है। पूरे भारत में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र का अलगाव अब भी पहले की तरह मौजूद है। अब भी क्षेत्रीय भावना को उजागर कर राजनीति की जाने की पुरानी पंरपरा पहले की तरह विद्यमान है। खैर, भारत में ऐसी घटनाओं की कोई कमी नहीं जिसने समय-समय पर इस भावना को हवा दी हो और साथ ही इसका विरोध भी हुआ हो। लेकिन आज क्षेत्रीयता व्यक्ति के मनोरंजन कक्ष तक घुस चुकी है। कुछ दिनों पहले मैं अपने घर में टेलीविजन के विभिन्न चैनलों में दिखाये जा रहे रियाल्टी शो देख रही थी। अमूनन ये प्रोग्राम गीत-संगीत औऱ नृत्य प्रतियोगिता के रूप में दिखाई जाती है। इसमें एसएमएस के जरिए लोगों से वोटिंग करायी जाती है और प्रतिभागी की योग्यता का आकलन किया जा रहा था। प्रतियोगिता चलती रही एक-एक कर प्रतिभागी आते गये। अपनी कला का प्रदर्शन किया। अब बारी थी प्रतिभागियों और जजों द्वारा वोट मांगने की। अब प्रतिभागी देश के कोने-कोने से थे तो जाहिर है कि कोई पंजाबी, कोई मराठी, कोई बिहारी, कोई गुजराती, कोई बंगाली आदि हो। ऐसे में घोषणा की जाती है कि फलां आदमी पंजाब प्रांत से है। सभी पंजाबी भाइयों से अनुरोध है कि अपने पंजाबी पुतर को अधिक से अधिक एसएमएस कर विजयी बनावें। फिर फलां लड़की गुजरात की है। गुजरातियों से अनुरोध है कि यदि वे अपने क्षेत्र के प्रतिभागी को विजय-ताज पहनते हुए देखना चाहते है तो खूब एसएमएस करें। इसी तरह बारी-बारी से अन्य प्रतिभागियों ने भी अपने लिए वोट-भीख मांगना शुरू कर दिया। मानो, उनकी कला लोगों के एसएमएस की मोहताज हो और वोट न मिले, तो उनकी कला की रोशनी निस्तेज हो जाएगी। इसी तरह एक प्रतिभागी जो मध्यप्रदेश की थी। उसे अंततः एसएमएस न मिलने की वजह से प्रोग्राम से बाहर निकलना पड़ा। लगी रोने और कोसने मध्यप्रदेश के लोगों को। मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि आप मेरा सहयोग नहीं करेंगे। आपकी वजह से ही मुझे इस प्रोग्राम से बाहर निकलना पड़ रहा है। मेरा क्या मैं तो यहां से निकल कर किसी और जगह जाकर अपने लिए जगह बना लूंगी। लेकिन आप लोगों को सोचना चाहिए कि इससे मध्यप्रदेश का ही नाम खराब हुआ है। जब उस प्रतिभागी का ऐसा वक्तव्य सुनने को मिला तो लगा ये तो हद हो गई। क्या मध्यप्रदेश के लोगों ने ही आपको विजयी बनाने की जिम्मेदारी ले रखी थी ? या फिर उनके आदेश से ही आप इस प्रोग्राम में भाग लेने आई थीं। उस पर भी जो प्रतिभागियों को जज करने वाले लोग और जो प्रोग्राम को चलाने वाला एन्कर होते हैं वे भी ये कहते नहीं थकते कि फलां आदमी कोलकाता से है। इसलिए कोलकातावासियों से अनुरोध है कि अधिक से अधिक वोट दें। फलां आदमी झारखंड का है इसलिए झारखंडवासियों एसएमएस करने में कंजूसी न करें। अब आनेवाली पीढ़ी के मन में इससे ज्यादा क्षेत्रीयता की नींव औऱ कौन रख सकता है? जब दिन रात टीवी चैनल इस तरह के प्रोग्राम चला रहे हों और हर बार अपने अपने प्रांत का नाम लेकर हिन्दुस्तानी होने के सुबूत ही मिटा रहे हों तो क्षेत्रवाद और जातिगत भावना की जड़ें तो जमेंगी ही। आप बिहारी-मराठी के विवाद पर कितना भी हो-हल्ला कर लें लेकिन यदि अपने बेडरूम में घुसी इस क्षेत्रवाद के शंखनाद को इसी तरह बजने देंगे तो यह समझ लीजिए कि आपकी आनेवाली पीढ़ी आपसे केरल जाने के लिए पास्पोर्ट बनवाने की मांग करेगी। क्या इस तरह के वक्तव्य का इस्तेमाल कर हम आने वाली पीढ़ी की सोच को संकुचित नहीं कर रहे? क्या हम उन्हें यह नहीं बता रहे कि तुम बिहारी हो, मराठी हो, पंजाबी, असमी हो, झारखंडी हो लेकिन इन सबसे परे केवल हिन्दुस्तानी हो ये नहीं बता रहे है? आप निश्चित रूप से इस तरह के प्रोग्राम का प्रसारण कीजिए, भारतीय प्रतिभा को लोगों के सामने लाइये, उन्हें एक मंच प्रदान कीजिए। लेकिन किसी बिहारी, मराठी, पंजाबी, बंगाली, झारखंडी, गुजराती, असमी इत्यादि के रूप में नहीं बल्कि केवल एक हिन्दुस्तानी के रूप में।

3 comments:

Science Bloggers Association said...

मुझे लगता है क्षेत्रवाद भारतवासियों की नस नस में है, इसीलिए बंगाल और असम के गायक रियल्‍टी शो में जीतते हैं, इसलिए राज ठाकरे जैसे गुण्‍डे लोकप्रियता हासिल करते हैं। इसके उपाय के लिए समाजशास्त्रियों को कोई रास्‍ता निकालना चाहिए।

संगीता पुरी said...

आप निश्चित रूप से इस तरह के प्रोग्राम का प्रसारण कीजिए, भारतीय प्रतिभा को लोगों के सामने लाइये, उन्हें एक मंच प्रदान कीजिए। लेकिन किसी बिहारी, मराठी, पंजाबी, बंगाली, झारखंडी, गुजराती, असमी इत्यादि के रूप में नहीं बल्कि केवल एक हिन्दुस्तानी के रूप में।
बहुत सही बाते....सहमत हूं आपसे।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

मेरी सोच से तो देश अब एक ऐसी गली की और जा रहा है...जहाँ से देश दिखायी देता ही नहीं....बस मोहल्ले,शहर और हद से हद इक राज्य भर ही दीख पाते हैं.....अब आदमी अपने-आप को निम्न दर्जे की सोच में ढालकर ख़ुद को महान महसूस करे तो कोई क्या करे.....!!लेकिन मैं ना उम्मीद कतई नहीं....जल्द ही लोग देशीय चेतना से लबरेज़ हो जायेंगे....!!