भीड़ में तनहा...दिल बिचारा नन्हा...
सांस भी न ले सके,फिर क्या करे...??
सोचते हैं हम...रात और दिन ही ये .....
ये करें कि वो करें,हम क्या करें...??
रात को तो रात चुपचाप होती है....
इस चुप्पी को कैसे तोडें,क्या करें...??
दिन को तपती धुप में,हर मोड़ पर...
कितने चौराहे खड़े हैं हम क्या करें??
सामना होते ही उनसे हाय-हाय....
साँस रुक-रुक सी जाए है,क्या करें??
कित्ता तनहा सीने में ये दिल अकेला
इसको कोई जाए मिल,कि क्या करें??
जुस्तजू ख़ुद की है"गाफिल",ढूंढे क्या
ख़ुद को गर मिल जाएँ हम तो क्या करें??
3 comments:
असीम ऊर्जावान आदमी निरंतर कन्फ्यूज्ड रहता है । उसके लिए सब कुछ करना आसान होता है, और हर ऒर उसे रास्ता ही दिखाई पड़ता है, पर वह तय नहीं कर पाता कि कौन सी राह पकड़ें । बहुत बढ़िया.......................
naddem ji..us maha murkh prakhar hindu blog pe aapka comment dekh ke aashcharya hua.. ho sakta he yah vyanjana abhivyakti rahi ho...
एक कमजोर सी रचना ............ भाव संप्रेषण शून्य ........ अभिव्यक्ति शून्य ......... प्रयास करिए ................ शायद कभी अच्छी कविता भी पोस्ट पर दिख जाए । अभी तो हमारा दिल यही कहने के लिए कह रहा है । नाराज न होइएगा। ........ सादर सहित .........अतुल शर्मा
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