अंश लाल पंद्रे
हे गुरुदेव करो स्वीकार
गुरु वंदन है मेरा संसार
जीवन में मैने है खोया
रखने योग्य कुछ न संजोया
गुरु तुम मेरा करो उद्धार
हे गुरुदेव करो स्वीकार
मैने व्यर्थ ही समय गंवाया
समय गंवा करके पछताया
अब गुरु पद रज ही आधार
हे गुरुदेव करो स्वीकार
निर्बल रहकर बना अभिमानी
समझ रहा खुद को ही ज्ञानी
ये सब दूर करो विकार
हे गुरुदेव करो स्वीकार
अंश लाल पंद्रे
4 comments:
अच्छी गुरु वन्दना !
वाह बहुत बढ़िया लगा गुरु वंदना! लिखते रहिये!
गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागूँ पाँव
शीश दिए जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान
बहुत अच्छा लिखा है..
bahut hi acchi aur saarthak kavita ...
man bheeg gaya hai apne guru ke liye is aadar ke \kaaran , mera naman sweekar kare.....
naddem ji bahut dino se aap mere blog par nahi aaye sir ...
namaskar.
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
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