Thursday, August 13, 2009

स्वाइन फ्लूः खौफ या बाजारवाद

रजत गुप्ता
इस ब्लाग पर मेरे बहुत स‌ारे मित्र मेरी बात स‌े निश्चित तौर पर असहमत हो स‌कते हैं पर कई दिनों के वैचारिक आलस्य के बाद अंततः मैंने इस चर्चित बीमारी पर अपनी स‌ोच व्यक्त करने का कठोर निर्णय ले लिया। लेख लिखे जाने तक दुनिया भर में 1154 लोगों के इस बीमारी स‌े मारे जाने की खबर है। इनमें स‌े किसी और को दूसरी बीमारी थी या नहीं, इसके आंकड़े उपलब्ध नहीं है पर यह खबर है कि यह एक महामारी के तौर पर दुनियाभर में फैल रही है। इस चर्चित बीमारी के खौफ के बीच मुंगेर में स‌ेलिब्रल मलेरिया स‌े दो दर्जन स‌े अधिक लोगों की मौत की खबर गुम स‌ी हो गयी, जहां स‌ौ स‌े अधिक अब भी इस बीमारी स‌े पीड़ित है। उत्तरप्रदेश के गोरखपुर में भी इसी बीमारी स‌े स‌ैकड़ों लोग बीमार हैं, जिनमें दर्जनों की हालत अत्यंत गंभीर है। 13 (शायद अब 15) लोगों की मौत ने 100 करोड़ स‌े अधिक की आबादी वाले इस देश को क्या वाकई भयभीत कर दिया है या बाजारवाद का नया रियलटी शो का नया हथकंडा हम देख और झेल रहे हैं। चूंकि लेख ब्लाग पर है, इसलिए स‌भी पाठक इस बात की जांच कर स‌कते हैं कि इस कथित जानलेवा बीमारी की दवा तामिफ्लू के दाम में हाल के दिनों में काफी कमी आयी है। तो क्या पहले इसकी लागत वास्तविक उत्पादन लागत स‌े कई स‌ौ गुना अधिक थी। जैसा कि हम जानते हैं कि स‌ामान्य किस्म के आयरन और विटामिन टॉनिक जिस दाम पर बिकते हैं, उससे अधिक आयरन एक दर्जन केला या दूसरे फलों के स‌ेवन स‌े प्राप्त हो स‌कता है पर फलाहार स‌े रोगी को वह मनोवैज्ञानिक राहत नहीं मिलती, जो उन्हें डाक्टर का प्रेसक्रिप्सन दे पाता है। पहले भी कई बार यह विचार व्यक्त कर चुका हूं कि दुनियाभर में आई मंदी स‌े भारत काफी प्रभावित हुआ है पर यह मंदी आखिर किस देसी कारण स‌े आयी, यह स्पष्ट नहीं है। स‌िर्फ यह पता चलता है कि अमेरिका में लोगों द्वारा कर्ज नहीं अदा करने स‌े जो अस्थिरता पैदा हुई, उसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। नतीजा है कि दाल और चीनी आम आदमी की पहुंच स‌े बाहर जा रहा है। कई मुद्दों को एकसाथ जोड़कर देखते हुए ही मैं अपनी इस स‌ोच को व्यक्त कर रहा हूं। कुछ दिनों पहले कृषि मंत्री ने इस बार गन्ना उत्पादन कम होने की बात कही। जो न जानते हों, उन्हें बता दें कि खुद शरद पवार भी महाराष्ट्र में गन्ने के एक शक्तिशाली किसान हैं और देश की चीनी लॉबी के स‌शक्त प्रतिनिधि भी। मानसून की कमी के दौरान उनके इस बयान ने अभी स‌े ही चीनी को बाजार स‌े दूर करना प्रारंभ कर दिया । इसके तुरंत बाद अन्य कृषि उपजों के बारे में भी ऎसा ही बयान आया और दाल की कीमत स‌ौ रुपये के करीब पहुंच गयी। इन स्वदेशी स‌मीकरणों के बीच हम यह नहीं भूल स‌कते कि हाल ही में चुनाव स‌म्पन्न हुए हैं, जिसमें स‌भी राजनीतिक दलों ने औद्योगिक और पूंजीपतियों स‌े चंदा लिया है। अब उस चंदे को दूसरे दरवाजे स‌े लौटाने की जिम्मेदारी स‌त्ता और प्रतिपक्ष की है। इसमें दोनों ही बराबर के शरीक हैं। देश के इस आंतरिक स‌मीकरण के बीच मेड इन इंडिया के लेबल स‌े चीन की एक कंपनी द्वारा अफ्रीका में नकली दवा भेजे जाने का मामला प्रकाश में आया है। इसके तुरंत बाद एक चीनी विद्वान द्वारा भारत के 30 टुकड़े करने की बात भी जाहिर हुई है। दूसरी तरफ अब स्वाइन फ्लू एक महामारी के तौर पर हमारे दिमाग पर बसाया जा रहा है। आने वाले दो दशक दुनिया के शक्ति स‌ंतुलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक आकलन यह भी है कि बदले परिवेश में अमेरिका और चीन के बाद स‌िर्फ अकेला भारत ही महाशक्ति रह पायेगा। ऎसे में दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों स‌े इस किस्म की चुनौती एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। दुनिया का जो माहौल कुवैत और इराक युद्ध के बाद बन चुका है, उसमें अमेरिका अपने तरीके से दुश्मन को स‌माप्त करने के लिए युद्ध जैसी तकनीक का इस्तेमाल नहीं करेगा। यही स्थिति चीन की भी है, जहां आंतरिक स‌मस्या लगातार जोर पकड़ रही है। इसलिए क्या यह स‌ूअर रोग किसी अप्रत्यक्ष युद्ध को घोष है, इसे गंभीरतापूर्वक स‌मझने की आवश्यकता है।

8 comments:

Arshia Ali said...

7 Mauten bhee ho chukee hain bhaai.
{ Treasurer-S, T }

नदीम अख़्तर said...

एकदम सही कहा है आपने। ये बाजारवाद का रियलिटी शो ही है, जो एक अरब 20 करोड़ से ज्यादा की आबादी में 15 लोगों की मौत से पूरे देश को भयभीत कर अपनी गोटी लाल करने के फिराक में है। परसों मैं टीवी देख रहा था, उसमें टाइम्स नाउ नामक एक टीवी चैनल ने खुलासा किया कि कैसे दिल्ली में मास्क तक चार-चार सौ रुपये में बिक रहे हैं, जिनकी ये सूअर-बुखार रोकने में बहुत ज्यादा भूमिका नहीं होती। आप क्या सोचते हैं कि सांस से ही वायरस जायेगा और किसी चीज़ से इनफेक्ट नहीं होगा? फालतू का हंगामा मचाया हुआ है लोग, ऐसे समय में सरकार को थोड़ा कड़ा एक्शन लेना चाहिए और दवा के साथ-साथ लोगों को जानकारी भी बांटनी चाहिए कि ऐसे भयभीत मत होइये। आप मरियेगा नहीं। खाली कुछ दिन के लिए सर्दी खांसी हो जायेगा। जो आम बात है।

जितेंद्र राम said...

सर, आपने जो स्वाइन फ्लू के बारे में लिखा वह अक्षरस: सत्य है। यह अंग्रेजी बीमारी सिर्फ आैर सिर्फ बाजारवाद ही है। अन्यथा इसके लिए इतनी हाय तौबा नहीं मचती। लोग इतने भयभीत नहीं होते। आैर हां इसके लिए बहुत हद तक मीडिया भी जिम्मवार है। क्योंकि जब से इस बीमारी का पता चला है, तब से अब तक रोज अखबारों आैर चैनलों में इसकी खबर आ ही रही है। आज अबर से भी अधिक की आबादी वाले देश में मात्र 15 लोगों की मौत, करोडों की आबादीवाले राज्यों में दर्जनों लोगों की एक दिन में अज्ञात व डायरिया, मलेरिया से मरनेवालों के बराबर है। इसकी वजह पूरी तरह बाजारवाद ही तो है। क्योंकि डायरिया या अन्य बीमारियों से मरनेवाले लोगों में अधिकतर लोग जंगलों आैर गांवों के होते हैं आैर पूंजीवाद यह जानते हैं कि ये लोग जरूरत की दवा नहीं खरीद सकते तो भला बीमारी से बचने के लिए मास्क कहां खरीद पायेंगे। शायद यही वजह है कि आज डायरिया, मलेरिया या अन्य बीमारियों की अपेक्षा स्वाइन फ्लू को अधिक तरजीह दी जा रही है। आपने जो यह सच लिखकर हम लोगों की नजर खोली इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

ज्योति सिंह said...

is bimaari ki jaankaari sab tak pahuchana bahut hi jaroori hai .is nek kadam ke liye hum aabhari hai .ati uttam .shukriya .

dharmendra said...

aapne apne jindgi ka bahut bara samay ish patrakarita me diya hai isliye in dawn pench ko bahut acchi tarah samjhte honge aur kai log bhi ish tarah ki baaten kahten hain. pehle main sochta tha ki nahi yaar bhala bimari ke piche bhi koi bussinesman is tarah apna benefit sochega,lekin bhaiya yeh haqiqat hai. ab pura vishwas ho gaya hai kyonki itne log juth nahi bol sakte. aur wo jo chote sahro mai rahte hain kyonki inke pas manviaya sawendna hoti hai.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

रजत दा,आपने बिलकुल सही लिखा है...हकीकत तो यह है कि दरअसल यह भी एक विदेशी माल है....और विदेशी मीडिया द्वारा बड़े ही रोमांचक ढंग से फैलाया जाता है....दरअसल विदेश से आई हुई हर इक चीज़ इस देश में किसी फ्लू की तरह फ़ैल जाती है.....दरअसल इस तरह से फ़ैल जाने पर ही तो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के टीके,दवाईयां और अन्य प्रकार की सामग्री धडाधड मनमाने दामों में बिक जाती है...इस प्रकार हम देखेंगे की कैसे यकायक बीमारियां इजाद होती हैं....उनकी दवाईयां (जो शायद अभी प्रायोगिक स्तर पर ही हैं....!!)बन्दूक की गोलियों की तरह दनादन ख़त्म होती चली जाती हैं....उनका परीक्षण भी हो जाता है....और बेचना भी.....इसे ही कहते हैं....आमों के आम-गुठलियों के दाम......हा..हा..हा..हा..हा..किन्तु आप तनिक भी चिंता ना करें....ऐसा चला आ रहा है....ऐसा चलता ही रहेगा....कुछ लोग बेशक मर जाएँ....मगर इसीकी बिना पर तो कुछ लोग जिन्दा रहेंगे.....मालामाल बनेंगे... ऐश-मौज भोगेंगे.... हा..हा..हा..हा..हा..!!
यह बात मैंने मनोज बाजपेयी के ब्लॉग पर दो दिनों पहले ही लिखी है....!!

स्वप्न मञ्जूषा said...

रजत जी,
आपका लेख कई मुद्दों की और ध्यान दिला रहा है, कुछ तरही मुद्दे हैं जैसे दाल की कीमत, चीनी का बाज़ार से गायब होना इत्यादि, लेकिन सबसे गंभीर मुद्दा है स्वाइन फ्लू से डरा कर क्या विदेशी (अमेरिका, चीन) भारत की अखंडता पर प्रहार कर रहे हैं. शायद ये सही भी हो. यह सत्य है की अमेरिका और चीन के बाद भारत ही एक ऐसा देश रह जाता है जो एक सक्षम राष्ट्र की कोटि में में आता है. इस बात से न तो अमेरिका अनभिज्ञ है न ही चीन..
और उनकी जी-तोड़ कोशिश रहेगी भारत को कमजोर बनाने की. अगर भारत उनकी इस रणनीति को समय रहते नहीं सझेगा तो परेशानी बहुत गंभीर हो सकती है. चीन की आन्तरिक परेशानियाँ बहुत ज्यादा बढ़ रही है उससे ध्यान हटाने के लिए भारत पर आक्रमण करने का मन वो बना सकता है, भारत में असले की क्या स्तिथि है ये जग जाहिर है ऐसे में स्वाइन फ्लू जैसी बिमारी से डरे हुए लोगों का मनोबल कमजोर होगा और इसका भरपूर फायदा बाहर वालों को मिलेगा, इस समय भारत को सही नेतृत्व की आवश्यकता है...
जहाँ तक स्वाइन फ्लू का प्रश्न है अगर इस तरह के अफवाह न फैले तो मीडिया को मसाला कहाँ से मिलेगा और व्यापारियों को पैसा इअठने का मौका कैसे मिलेगा भला ? सब बेकार की बातें है स्वाइन फ्लू से १५ मरे और सिर्फ फ्लू से १५०० मरे होंगे शायद.. बाजारवाद की तो नीति है 'पब्लिक तो डराओ और पैसा बनाओ'
आपने बहुत ही सटीक और सायिक लेख लिखा है बहुत बहुत बधाई..

स्वप्न मञ्जूषा said...
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