Thursday, August 27, 2009

काहे कि हम कुछो नहीं समझे हैं.....

भवंरा भवंरा आया रे,
गुनगुन करता आया रे,
फटाक फटाक.....
सुन सुन करता गलियों से अब तक कोई न भाया रे
सौदा करे सहेली का,
सर पे तेल चमेली का,
कान में इतर का भाया रे....
फटाक फटाक...

गिनती न करना इसकी यारों में,
आवारा घूमे गलियारों में
चिपकू हमेशा सताएगा,
ये जायेगा फिर लौटा आएगा,
फूल के सारे कतरे हैं,
जान के सारे खतरे हैं...
कि आया रात का जाया रे...
फटाक फटाक.....

जितना भी झूठ बोले थोडा है,
कीडों की बस्ती का मकौड़ा है,
ये रातों का बिच्छू है कटेगा,
ये जहरीला है जहर चाटेगा...
दरवाजों पे कुंडे दो,
दफा करो ये गुंडे,
ये शैतान का साया रे....
फटाक फटाक...

ये इश्क नहीं आसाँ,
अजी AIDS का खतरा है,
पतवार पहन जाना,
ये आग का दरिया है...
ये नैया डूबे न
ये भंवरा काटे न.....

अरे भाई बात इ है कि हिंदी-युग्म के आवाज़ में हम इ गीत सुने रहे ...उहाँ टिपिया भी दिए हैं कि बाबू हमको इ गीतवा नहीं समझ में आया है......और तब से हम अपना माथा खोजा-खोजा के थक गए हैं ...अभी तक हमरा पल्ले कुछो नहीं पड़ा है.....
इ गुलजार बाबु का फरमा रहे हैं......आपलोग तो बहुते गुनी जन हो .....गीत-गोबिंद का समझ भी रखते हैं ...हम ठहरे लिख-लोढ़ा पढ़-पत्थर टाइप का जंतु ....हमको ऐसा आदमी चाही जे एक-एक लाइन का मतलब बतावे कि इ है का ???
सुने है कि ऐड्स के प्रति जागरूक करे वास्ते इ सब फंडा हुआ है....लेकिन हम को कोई इ समझावे कि इ में का बात ऐसन है जिसको सुन के बात समझ में आ गयी कि इ ऐड्स की जागरूकता की बात कर रहा है......
हम थोड़ा-मोड़ा पढ़े हैं भाई (M.Sc Zoology, B.ED., M.C.A), और कुछ-कुछ भाषा का भी ज्ञान है.....
असरानी इश्टाइल में हमरे दीमग्वा में भी येही बात घूम रहा हैं कि जब हम नहीं समझे तो 'उ लोग' का समझ जावेंगे ???.....कि खाली 'फटाक-फटाक' पर कूद-फांद कर बैठ जावेंगे.......आखिर कोई एन.जी.ओ. के सौजन्य से इ बना है तो भाई संदेशवा तो ठीक से मिलना चाही कि नाही.......

'ये जायेगा फिर लौटा आएगा'

कौन जावेगा और कौन लौट आवेगा ????
मरीज ?
बीमारी ?
तो आप सब गुनी जानो से हमरी प्रार्थना है कि समझा दीजिये हमको काहे कि हम कुछो नहीं समझे हैं.....

5 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

अरे भैया हमको अभी तक एक भी सुधि पाठक नहीं मिला है जो कहे की हम 'सब कुछ' समझ गए हैं....
चाहे उ इहाँ टिपियाने लायक हो या कहीं भी टिपियाने लायक हो की नहीं ....

ये इश्क नहीं आसाँ,
अजी AIDS का खतरा है,
पतवार पहन जाना,
ये आग का दरिया है...
ये नैया डूबे न
ये भंवरा काटे न.....

इकरा में जब हम ऐड्स पढ़े तो ओतना तो हमहू समझ गए .....
लेकिन हम पूछ रहे हैं की इसका से ऊपर जो भी लिखा है उ किसको समझ में आया है .....उ हम जानना चाहते हैं.....खली गुलज़ार लिखे हैं इसलिए हम सलामी नहीं ठोकेंगे.....
और इ सन्देश जिनके लिए है उ समझ रहे हैं की नहीं इ बात बहुत ज़रूरी है ....पब्लिक का पैसा लगा है और इ एक सफल सन्देश है की नहीं हम इतना ही जानना चाहते हैं......
जो भी इसको समझा है हमसे बोले की हम पूरा गीत समझ गए हैं.......

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

अरे भई एतना भी नहीं समझी आप......धत्त बडिए बुडबक हैं आप तो ए अदा जी....खाली झूठठो-मूठठो अदा बन गयीं हैं का.....!!अरे भईया आजकल गुलज़ार जी जो लिखते हैं ना....उसको रहमान जी संगीतिया देते हैं....फीर ऊ फेमस हो जाता है....भल्ले उसका कोई मतबल....अगे सॉरी....सॉरी.....मतलब चाहे कुच्छो हो की नहीं...आजकल संगीत का दुनिया में जे है से की सब्भे कुच्छो ना चल जाता है ना....फीर ई जो गुलज़ार बाबु जी ना लिक्खें हैं.....तिसपर उसको रहमान बाबु ना संगीतिया दे रहे हैं....फीर आप अऊर हम जे है से की काऊन होते हैं....ई सब पर सवाल उठाने वाले....??एगो बात और है....की गुलज़ार बाबु के हम बड़ा फेन हैं....और उनसे जे है से की कुच्छो चिठियो पतरी हमरा कभी हुअल है...पण इधर जे है से की गुलज़ार बाबु जो कुच्छो लिखे दे रहे हैं....ऊ सब हमको भी पच-उच नहीं रहा है....पण हम भी का करें.....समझ तो सार हमको भी नहिये आया....तब आप ही बताईये....की उनको चिठिये लिख-लाख देवें का.....?????

स्वप्न मञ्जूषा said...

भूतनाथ जी,
हम झूठो-मूठो अदा नहीं है हाँ कह देते हैं ...
हम तो उ 'अदा' हैं की अदा भी अदा मारने के पाहिले सोचेगी ..का समझे....नहीं समझे......समझेंगे भी नहीं.....
नेकी और पूँछ-पूँछ..
आप गुलज़ार बाबू से तनी पूछियेगा इ का लिखे हैं....
काहे की हम कुछो नहीं समझे हैं...गुलज़ार बाबू का गीत हमको भी पसंद हैं लेकिन अब अन्धुअरी लिखेंगे तो सलाम हम नहीं ठोकेंगे....चाहे गुलज़ार रहे की गुलज़ार के बाबूजी ....
अगर आपका चिट्ठी-पत्री होता है तो कहिये उन्खा से की इ जो लिखे हैं का 'उ लोग' समझ जावेंगे जिन्खा लिए लिखे हैं ??????
और का जोन मकसद से लिखे हैं उ कमवा हो रहा है ????

'अदा'

दर्पण साह said...

hum kuuuuuuuuuuuch nahi bolega....

:)

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

अरे भई जब गुल्ज़रवा जी गडबडाइए ही गए हैं....तो हमरा चिठ्ठी-उठ्ठी कुछो समझ भी आयेगा का....??झूठो आप उनके पीछे अपना और हमरा समय खराब करती हैं....आप लिखो ना भई....हम तो अब आपको ना पढ़ते हैं....गुलज़ार जी अब नया कुछो भी बढ़िया नहीं लिखने वाले....ऊ अब कमर्शियला गएँ हैं ना....!!....aur darpan ji aap to ab hamaare beech kucchho nahin bolo....abhi ham seereeyas hain....