पिघल रही है अब जो यः धरती तो इसे पिघल ही जाने दे !!
बहुत दिन जी लिया यः आदम तो अब इसे मर ही जाने दे !!
आदम की तो यः आदत ही है कि वो कहीं टिक नहीं सकता
अब जो वो जाना ही चाहता है तो रोको मत उसे जाने ही दे !!
कहीं धरम,कहीं करम,कहीं रंग,कहीं नस्ल,कितना भेदभाव
फिर भी ये कहता है कि ये "सभ्य",तो इसे कहे ही जाने दे !!
ताकत का नशा,धन-दौलत का गुमान,और जाने क्या-क्या
और गाता है प्रेम के गीत,तू छोड़ ना, इसे बेमतलब गाने दे !!
तू क्यूँ कलपा करता है यार,किस बात को रोया करता है क्यूँ
आदम तो सदा से ही ऐसा है और रहेगा"गाफिल" तू जाने दे !!
4 comments:
सही है....बढ़िया लिखा है....जाने दे...
खुबसूरत रचना आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ................
Achchi abhivayakti
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