फुर्र से उड़ जाती है चिड़िया !
मेरे पास क्यूँ आती है चिड़िया !!
हम कितना खुद को छिपा लें
हो जाता है सब कुछ उरियां !!
सामने जब भी वो आ जाए है
चुप-चुप हो जाती है चिड़िया !!
हमने जब भी उसको देखा है
कुछ-कुछ कहती है चिड़िया !!
मेरे भीतर जो"वो" रहता है
बस उसकी सुनती है चिड़िया !!
पेड़ों को काटे जाए है आदम
गुमसुम-सी रहती है चिड़िया !!
क्यूँ सोचे है इतना तू गाफिल
सब चुग जायेगी ये चिड़िया !!
4 comments:
bahut pyari kavita .....
बहुत ही बढ़िया ,प्यारी कविता लगी ।
कक़्विता बहुत अच्छी लगी शायद अब इन चिडियों का अस्तित्व कविताओं मे ही रह जायेगा ये भी अब आलोप होने के कगार पर हैं। आभार्
पेड़ों को काटे जाए है आदम
गुमसुम-सी रहती है चिड़िया !!
-संदेशात्मक रचना...
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