डॉ.भारती कश्यप
झारखंड ने अपने सफर में नौ साल से ज्यादा पार कर लिया है। इन नौ वर्षो में झारखंड ने क्या नहीं देखा? कितने जख्म खाये? झारखंड का निर्माण एकबेहतर भविष्य के सपनों के साथ हुआ था। एक ऐसा सपना जो प्रत्येक झारखंडवासी के जीवन में नयी सुबह की दस्तक थी। हर किसी ने यही इच्छा पाल रखी थी कि उसका आनेवाला कल नये राज्य के जश्न में सजे संवरेगा। लेकिन इन नौ वर्षो में झारखंड ने केवल जख्म खाये। सरकार बनाने के नाम पर लगातार वोट की राजनीति की गयी और जनता ठगी जाती रही। झारखंड को कभी भी स्थिर सरकार नहीं मिली पिछले एक महीने में जो कुछ हुआ उसे देखकर लोग अचंभित हैं। राजनेता जिनसे समाज सीखता है प्रेरणा लेता है। उन राजनेताओं ने इस एक महीने में झारखंड को क्या-क्या नहीं सिखाया।झूठ, दगा, फरेब, वायदों से मुकरना और अनैतिकता में संलिप्त रहना। सबकुछ इस एक महीने के राजनीतिक ड्रामेमें था। सात फेरे किसी के साथ लिये और सिंदूर किसी को डाल दी। सुबह कुछ कहा और शाम पलट गये। क्या यहीसब सीखेगी राज्य की आने वाली पीढ़ी। झूठ की बुनियाद पर सत्ता भले ही खड़ी हो जाय कुर्सी मिल जाय लेकिनसमाज नहीं बन सकता। झारखंड का नवनिर्माण ऐसे चरित्रवाले राजनेताओं से नहीं हो सकता इस बार झारखंड मेंजो कुछ हुआ उसमें सभी दल सभी नेता जिम्मेवार हैं। इस नौटंकी के सभी पात्र थे। बेबस जनता चुपचाप देखने केलिए मजबूर थी। सब कुछ कुर्सी के लिए था। जनता के लिए कुछ भी नहीं सिर्फ सत्ता के लिए गंठबंधन पर गंठबंधनबनते जा रहे थे। जनता की सुध किसी को नहीं थी। आजादी को याद करें तो उस समय के राजनेताओं की निष्ठा, चरित्र, वैचारिक शक्ति सबकुछ अद्वितीय थी। जैसा समाज होता था राजनेताओ का चरित्र और व्यवहार उसकेअनुरूप होता था और जैसे नेता होते थे उनका अनुकरण समाज करता था। लोग गांधी, नेहरू, विनोबा भावे, लोहिया, सुभाष और भगत सिंह बनना चाहते थे। एक एक भारतवासी की अंतरआत्मा में ऐसे नेताओं के चरित्र कीअमिट छाप थी। आज के नेताओ का अनुकरण कर हम कहां पहुंचेंगे? शायद झूठे, फरेबी और मक्कार ही बनेंगे।ऐसे नेताओं से न झारखंड का नवनिर्माण हो सकता है और न समाज बन सकता है। जनता जागे, समाज के अच्छेलोगों को आगे बढ़ाये। विकास के लिए ईमानदार प्रयास करनेवालों के हाथ सत्ता की बागडोर हो। यह परिस्थिति जनता ही बदल सकती है। लोकतंत्र ने बड़ा ही अचूक हथियार लोगो को दिया हैं बदलाव लाना है तो उसे इस्तेमाल करना होगा। नेतृत्व में अक्षम नेताओं की जमात बदलनी होगी।
11 comments:
उन राजनेताओं ने इस एक महीने में झारखंड को क्या-क्या नहीं सिखाया।झूठ, दगा, फरेब, वायदों से मुकरना और अनैतिकता में संलिप्त रहना।
स्थिति निराश करनेवाली है, लेकिन वह समाज कहां है, जो ऐसी स्थिति लाता है। समाज सबसे बड़ा दोषी है।
श्यामल सुमन said...
भारती जी से मैं भी मिला हूँ राँची में आपके ही साथ भूतनाथ भाई। वो सचमुच बहुत अच्छी हैं। झारखण्ड की हालात देखकर आपका आक्रोश भी जायज है। लेकिन इस रचना में प्रयुक्त एक दो शब्द बहुत कठोर हैं। मेरे हिसाब से रचनाकार को इन सबसे बचना चाहिए।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
bilkul theak likha hai....asal main halaat ke liye jharkhand ke neta aur sarkari afsar to zimmewar hai hi....lakin yaha ki janta bole to aam log bhi kam doshi nahi hai....state agar pichara rah gaya hai to iska ek bara karan yaha ka soya hua middle clasaa hai....mare aur bahooton jaise log hai....logo ko aapne vote ki keemat samajni hogi....bina acche neta ke accha parivartan bilkul bhi sambav nahi hai.......
wah...kya likha hai....wo bhi hindi main....bahoot acche....shabdon ka chayan bhi shandaar hai......baat bhi sahi hai....pichle 9 salon main sachmuch hum kuch nahi kar saken....
bahut satik aur sahi bat kahi hain apne. jab jharkhand bihar se alag hua tha tab main delhi main hi tha. ek sapna rahta tha ki chalo jharkhand bihar se alag hoga to humlogon ke liye bhi kuchh hoga par halat jas ki tas bani hui hain sahi kahiye to pahle se bhi battar ho gayi hain.
JHARKHAND WASIYON KA SAPNA TUT GAYA
Manoj K. Thakur
The Public Agenda
New Delhi
भारती कश्यप जी की चिंता बिल्कुल सही है। यह राज्य एक तरह से भ्रष्ट नेताओं के हाथ की कठपुतली बनकर रह गया है। राज्य की सत्ता को लोकतंत्र की बजाय राजतंत्र में तब्दील कर दिया है, इन नेताओं ने। जिसे जैसा मन करता है, उसी तरह से सत्ता का दुरुपयोग कर रहा है। जनता के प्रति जवाबदेही, पद की निष्ठा और ईमानदारी से तो जैसे इनका पाला ही नहीं पड़ा है। जिस राज्य में नेताओं को यह नहीं पता कि राज्य कैसे चलाया जाता है, उसके विकास को केंद्र में रखकर नीतियां कैसे बनायी जाती है, आम आदमी के हितों की रक्षा के निहितार्थ किस तरह की प्रशासनिक व्यवस्था की जाती है, वहां नेहरू-भगत-पटेल जैसे महान नेताओं के समान आचरण की उम्मीद करना अंधे को रोशनी में लाने जैसा है। सत्ता को बपौती समझने की जो मानसिकता यहां के नेताओं में दिखती है, उसका सही जवाब केवल यहां की जनता ही अपने मत का विवेकपूर्ण प्रयोग कर दे सकती है।
भारती कश्यप जी से प्रेरित होकर.....!!
ये किन मक्कारों का राज है
इस कोढ़ में कितनी खाज है!!
पता नहीं क्या होना है अब
ये किस भविष्य का आज है !!
कि नेता हैं या कुत्ते-बिल्लियाँ
छील रहे हैं कितनी झिल्लियाँ !!
झारखण्ड को छला है जिन्होंने
क्या दी जाए इसकी उनको सज़ा ??
ये कौन से लोग हैं कि जिनको
मादरे-वतन की कीमत का नहीं पता....
ये कौन से लोग हैं कि जिनको
चमन की जीनत का नहीं पता....
अगर कुछ भी नहीं पता इन्हें तो फिर
किस तरह हम पर ये कर रहे हैं राज....
और क्यूँ नहीं हो रही हमें कोई भी खाज ??
उट्ठो कि ऐसे लोगों को भून दें हम आज
उट्ठो और कहो कि ऐसे लोगों का ये चमन नहीं !!
ऐसे लोगों को दोस्तों कह दो हमेशा के लिए.....
नहीं-नहीं-नहीं-नहीं-नहीं-नहीं-नहीं-नहीं......
बहुत हो गया दोस्तों कि अब तो खड़े हो जाओ
बच्चों की तरह मत जीओ,अब बड़े भी हो जाओ !!
जिनके लिए बनाया गया है यह झारखण्ड
उन्हीं को किये जा रहे हैं सब खंड-खंड
रण ही अगर लड़ना है तो कमर कस लो सब-के-सब
ये नहीं मानेंगे बातों से कुछ भी नहीं अब
तुम्हें मेरे दोस्तों दरअसल कुछ करना नहीं है अब
बस अबके पहचान लो इन सब को.....
बस अबके चुनाव में जमा-जमाकर कसकर....
कई लात मार देना इन सभी पर....
कि फिर कभी दिखाई ना दें ये गलती से भी
झारखंड के किसी भी किस्म के परिदृश्य पर....
ये किन लोगों को पहना दिया हमने गलती से ताज है
अब किस मुहं से कहोगे कि तुम्हें झारखंड पर नाज है !!
दोस्तों ये कविता नहीं है ये तुम्हारे भड़कने का आगाज है
अभी सब कुछ मर नहीं गया है...
अभी तुम्हारे सामने बहुत बड़ी परवाज़ है.... !!!
राजनेता पहुँचते कैसे है? लोकतंत्र में जैसी प्रजा वैसे नेता. बिहार ने ही लालू को सर पर बैठाया उसी ने हटाया. तो झारखण्ड की जनता जागेगी तभी कठीनाईयाँ भागेगी. राज्य को तमाम शुभकामनाएं. हो सकता है जल्दी ही फिर से चुनाव हो.
sriman ji,
vyavastha hi aisi hai is systm mein jo log jaate hain vah log galat tarikon ka istemaal kar k us pad tak pahunchte hain unse koi ummeed karna uchit nahi hai. yahi haal poore desh mein hai kuch log badi chalaki se yahi kaam kar rahe hain to unke baar mein kam tika tippani ho paati hai
suman
कमाल है,आंख की डाक्टर ने राज्य की राजनीति पर एक गंभीर लेख लिखा, जबकि झारखंड में राज्यसभा चुनाव में बाहर के प्रत्याशी लाने पर एक बहस जारी है। वैसे लेखक के लिए यह प्रसन्नता का विषय हो सकता है क्योंकि आने वाला व्यक्ति उनके पेशे से नजदीकी रिश्ता रखता है। फिर भी यह बहस जारी रहे कि क्या झारखंड में ऎसी प्रतिभाओं की कमी है जो हम लगातार राज्यसभा के लिए दूसरे स्थानों से लोग पकड़-पकड़कर ला रहे हैं।
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