मोनिका गुप्ता
घरेलू महिलाओं के लिए टेलीविजन के विभिन्न चैनलों में दिखाये जाने वाले सीरियलों का बड़ा महत्व है। ध्यान देने वाली बात यह है कि इन सीरियलों के केंद्र में महिला ही होती है। कलर्स, एनडीटीवी इमेजिन, जीटीवी, स्टारप्लस आदि सभी चैनलों में महिला किरदार ही केंद्रीय भूमिका में है। पवित्र रिश्ता, प्रतिज्ञा, बालिका वधू, छोटी बहू, ज्योति, ये प्यार ना होगा कम, देश में निकला होगा चांद, यहां मैं घर-घर खेली, सर्वगुण संपन्न स्वरा, विदाई, उतरन आदि सभी धारावाहिकों की कहानियां महिला पात्र के इर्दगिर्द ही घूमती है। मानों कि पुरूष का जीवन में कोई स्थान ही ना हो। अगर महिलाओं के जीवन के विभिन्न पक्षों पर भी ये सीरियल आधारित होते, तो कोई बात नहीं थी। लेकिन सभी में महिला जीवन के केवल दो पक्षों को ही दिखाया जा रहा है। एक वैसे जिनका विवाह नहीं हुआ है और वे विवाह के लिए जद्दोजहद कर रही है, दूसरी वे जो विवाह के पश्चात अपने ही घर में या तो षड्यंत्र का शिकार है या खुद षड्यंत्र करती हुई दिखायी दे रही हो। मानों कि स्त्री के जीवन का कोई और पक्ष ही ना हो। चाहे बड़े-बड़े महलों में रहने वाली किरदार हो या फिर झुग्गी झोपड़ियों में, सभी के जीवन का एक ही लक्ष्य बना दिया गया है, बस विवाह हो जाये। जबकि वास्तविक जीवन में महिलाएं जिस तरह का संघर्ष कर रही है उससे जुड़ी कोई बात इन सीरियलों में दिखायी नहीं देती। आज झुग्गी झोपड़ियों से लेकर बड़े-बड़े बंग्लों में ऱहने वाली लड़कियां अपने करियर के लिए जिस तरह समर्पित है, उनका जैसा संघर्ष है, वो इन सीरियलों का हिस्सा नहीं बन पाती। अब वह दौर नहीं रहा जहां लड़कियां बेटी बनने के बाद सीधे पत्नी और मां बनने की जिम्मेदारियां सिखाते सिखाते बड़ी की जाती थी। आज अधिकांश लड़कियां अपने-अपने क्षेत्र में संघर्ष कर रही है। कुछ को अपने लिए स्वयं सुविधाएं जुटानी पड़ रही है, तो कुछ को बैठे बिठाये आगे बढ़ने के लिए सुविधाएं मिल रही है। वे बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल कर रही है। लेकिन इस तरह के किरदार वाली महिलाएं सीरियलों का हिस्सा नहीं बन पाती। कुछ कहानियां शुरू भी होती है तात्कालिक परिस्थितियों के फिल्मांकन से तो बाद में आकर फिर विवाह में अटक जाती है। अगर सीरियलों के माध्यम से समाज की वास्तविक तस्वीर पेश की जाये तो यकीनन यह सकारात्मक बदलाव लायेंगी और आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनेंगी। तभी उड़ान जैसी महिला आईपीएस के संघर्ष जैसी कहानी सामने आयेगी, जिससे प्रेरणा मिलेगी आगे बढ़ने की, कुछ करने की। वरना विवाह के लिए मारपीट, बार-बार विवाह करना, महंगी साड़ियां और गहने दिखाना, सास- बहू- ननद- देवर के बीच साजिश आदि बातें समाज को और खासकर महिलाओं को दिग्भ्रमित ही करेंगी, जिसका वास्तविक जीवन से अंशमात्र भी लेना देना नहीं।
4 comments:
ये सीरियल वास्तविकता से कोसों दूर हैं...
दरअसल, अच्छी पटकथाओं की कमी है...
कुछ अच्छे सीरियल भी आ रहे हैं, जैसे सब टीवी का 'लापतागंज' मनोरंजक और सामाजिक मुद्दों पर आधारित सीरियल है...
लाजवाब, बहुत ही अच्छा लिखा है आपने। मैं सीरियल नहीं देखता, लेकिन जब खाना खाता हूं रात को तो अन्य लोगों के द्वारा देखा जाता है, उसी की झलक चली जाती है आंख में। मैं भी कई दिनों से देख रहा हूं कि इन टीवी सीरियलों में घर फोड़ू प्रवृत्ति हावी हो गयी। औरत को विवाह का एक मात्र साधन बना दिया गया है। वैसे एक हकीकत यह भी है कि इन सीरियलों का जो दर्शक वर्ग है, वह 90 फीसद महिलाएं हैं और बहुत चटखारे के साथ घरों में इनका रसास्वादन होता है।
मोनिका का यह सामाजिक सरोकार मुझे बहुत आच्छा लगा मेरे BSC Optometrist स्टुडेंट्स भी जब रात में बहुत देर तक TV देखते है तो मुझे बहुत परेशानी होती है की आखिर बो क्या देख रहे हैं | जब वो बतलाते है की वह बूगी-बूगी और DD लिटल चाम्प देकते हैं | तब मुझे आत्याधिक आन्तरिक सांति मिलती है | क्योंकि अक्सर देखा जारहा है कि परिबारिक संबंधो पर आधारित कई धारावाहिक परिवार के आपसी संबंधो में बिद्वेष फैला रहे हैं | एसे में बूगी-बूगी जैसे सवस्थ् मनोरंजन दायक धारावाहिक निसचय ही मन को सकूँ देते हैं | महिलाओ को दिनभर के तनाब को कम करने के लिए लाफ्टर चेनल देखना चाहिए और थोडा बहुत न्यूज़ चेनल भी ताकि महिलाये बाखबर रहें |
डॉ. भारती कश्यप
अच्छा आलेख ऐसे सीरियलों का समाज की वास्तविकता से कोई लेना देना नही है ?गहनोंऔर चमकीली सदियों का बाजार बढ़ाना सजे सजे ड्राइंगरूम दिखाना .रसोई घर के चमकीले बर्तन देखकर लगता है उस किचन में कभी खाना ही नहीं बना हो ये सब दिखाकर क्या संदेस देना चाहते है टी. वि सीरियल |सच ही कहा है आपने आज की हर वर्ग की महिला अपने स्तर पर संघर्ष करके अपने दायित्वों को बखूबी निबाह रही है उन्हें दरकिनार करके महिलाओ की काल्पनिक नकारात्मक छबी ही दिखा रहे है और तो और हर सीरियल में गर्भवती महिला की शादी दिखाई जा रही है जी भारतीय समाज में अभी तक हमने नहीं देखि |
अगर महिलाये ही इनको देखना छोड़ कर दुसरे कार्यक्रम देखकर इन्हें इग्नोर करे तो कुछ हद तक फर्क पड़ेगा |
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