मोनिका गुप्ता
महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का मामला अब भी विवादों में है। थल सेना ने महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के मामले में कोर्ट को चुनौती दी है। लिहाजा किसी सकारात्मक परिणाम के अभाव में यह बहस में ही उलझा है। वर्तमान में थल सेना में 4101 और वायु सेना में 784 महिला अधिकारी है। थल सेना में चिकित्सा, जज, एडवोकेट जनरल और शिक्षा कोर में महिलाओं को स्थायी कमीशन मिला है। जबकि सिग्नल, आयुध, इलेक्ट्रानिक्स एवं मैकेनिकल इंजीनियरिंग में अब भी अल्पकालिक कमीशन ही लागू है। इसमें 14 साल की सेवा के बाद अनिवार्य रूप से सेवानिवृति मिल जाती है। इधर वायुसेना में युद्धक विमान उड़ाने के साथ-साथ अन्य सभी शाखाओं में महिला अधिकारी कार्यरत है। महिला को स्थायी कमीशन देने के मामले को चुनौती देते हुए सेना का तर्क है कि सेना में नौकरी महिलाओं का हक नहीं है। सेना का यह तर्क किसी खाप पंचायत द्वारा महिलाओं के ऊपर लगाने वाली बंदिश से कम प्रतीत नहीं होता है। इसके पीछे सेना का कहना है कि महिलाओं को सेना में किसी तरह के रोजगार पाने या दाखिला लेने का हक नहीं है। इसके लिए 1950 आर्मी एक्ट के सेक्शन 12 का हवाला भी दिया है। साथ ही यह भी कहा गया कि महिलाओं को सिर्फ सपोर्ट सर्विसेज में जरूरत पड़ने पर लिया जा सकता है। ऐसे में यह बताने की जरूरत अब आ पड़ी है कि पुरुषों द्वारा बनाये गये नियम के अनुसार महिलाओं को तो घर से बाहर निकलकर काम करने की जरूरत भी नहीं थी। उसके लिए घर में खाना बनाना और बच्चे पैदा करना ही जरूरी बनाया गया था। तो क्या महिलाएं घर से बाहर नहीं निकली। पहले जब किसी क्षेत्र में महिलाएं काम नहीं करती थी, तब भी देश चलता ही था। लेकिन महिलाओं की भागीदारी ने देश के विकास में कई गुणा की बढ़ोतरी की है, इस बात को नकारा नहीं जा सकता। इसलिए आगे बढ़ने के लिए समय के साथ नियम कानून बदलने की जरूरत है ना कि पुराना राग अलापने की। दूसरा तर्क सेना द्वारा दिया गया कि ग्रामीण पृष्ठभूमि के जवान महिला कमांडर को नहीं अपना पाएंगे। ये एक और घटिया तर्क दिया गया है। अगर ग्रामीण पृष्ठभूमि के जवान नहीं अपना पाएंगे, तो सबसे पहले इस गंवारपन का इलाज सेना को करना चाहिए। ऐसी जाहिल मानसिक स्थिति वाले समूह के भरोसे आप देश की सुरक्षा व्यवस्था को कैसे छोड़ सकते है। लिहाजा इस तरह के आधारहीन तर्क को छोड़कर महिलाओं और पुरूषों के लिए अलग-अलग नियम बनाने वाले पहले खुद में सुधार करें।
17 comments:
इतने अच्छे तरीके से आपने इज्जत बख्शी है कि कहना नहीं है। मैं भी इस बात के पक्ष में हूं कि महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन मिलना चाहिए। पुरुष बीस साल तक नौकरी करे और महिला 14 साल की नौकरी के बाद रिटायर हो जाये, ऐसा क्यों और ऊपरी स्तर पर अगर आपका जवान किसी को कमांडर नहीं मानेगा, तो जवान को अनुशासनहीनता के कारण निकाल बाहर कीजिए। विक्षिप्त तर्क से नये समाज की रचना नहीं हो सकती, लेकिन सेना से इससे ज्यादा की उम्मीद भी नहीं कर सकते, क्योंकि वहां मारो-काटो के अलावा किसी प्रकार की बौद्धिकता का पाठ न तो पढ़ाया जाता है और न ही वहां अनुशासित संवेदनशीलता का चलन ही है।
इस मुद्दे पर सार्थक विमर्श की जरूरत है। मेरा तो यही मानना है कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं। सबको अपनी मानसिकता को बदल लेना चाहिए।
monika jee, aapne jis sawal ko uthaya hai, beshak wah ek aham sawal hai. kyu nahi mahilaon ko sthayi comission mile lekin iske liye sena ke kamtar boudhik gyan ko dosh dena uchit nahi lagta. jaisa ki nadim bhai kah rahe hai. sena na is desh se alag hai na democratic set up se. yah to satta ke liye ek masla hona chaiye...
बेशक यह औरत होने की ही सजा है .............. जिसे मर्दों ने मुकर्रर की है. इसलिए इसका विरोध भी उसी तल्खी से होना चाहिए.
हमारे सभी तित्पद्दी कर्ता जिसमे आदरणीय अविनाश जी ,, और मेरे दोस्त नदीम जी भी है,, एक ही राग अलाप रहे है की महिलायों को स्थायी कमीशन मिलना चहिये ,,(कारण ये लेख एक महिला ने लिखा है और जिन्होंने लिखा है वो एक अच्छी महिला है सो इन्हें लगता है की यहाँ पर कमीशन का सपोर्ट करके ये महिलाओं के उत्थान में अपना योगदान दे रहे है ),,,, बेशक इन सभी महानुभावो का कोई सीधा साबका सेना से नहीं है ,,,, मोनिका जी महिलाओ को समाज में बराबरी तो मिलनी ही चहिये इसका मै पक्ष धर हूँ ,,, उनके साथ भेद भाव होता है ये भी मानता हूँ ,,,लेकिन जिस तरह से अनर्गल मांगे महिला वादियों द्वारा लगातार की जारही है चाहे वो सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन को ले कर हो या अन्य कोई और बेतुकी मांग ,,,,अन्य हर हर जगह हो सकता हो उनकी मांग एक हद तक स्वीकार्य हो मगर सेना जहां शरीर ही निर्णायक भूमिका अदा कर्ता है वहा पुरुषो (पुरुष महिलाओं की अपेक्षा शारीरिक रूप से जयादा ताकतवर होते है ये विज्ञानं भी मानता है )की जगह महिलाओं की ये मांग मुर्खता पूर्ण मांग से अलग कुछ नहीं है ,,, और जो लोग येसा कहते है की सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन ना मिलना उनके साथ अन्याय है तो मै उनसे कुछ प्रश्न पूछना चाहूँगा ये क्या है ,,,,,,(वैसे इससे महिला पुरुस से तुलना ना की जाये ये विषय केवल उदाहरनार्थ है )
१-गाय और बैल दोनों एक जाति के हैगाय से दूध लिया जाता है और बैल को नाथ डाल कर खेत में जोता जाता है क्या गाय के साथ ये भेद भाव नहीं जो उसे बैल जैसी मेहनत के काम से दूर रखा जाता है ,,,
२-जंगल का राजा शेर क्यों होता है शेरनी क्यों नहीं,,,,
३-नील गाय के झुड में मुखिया नर नील गाय ही क्यों होता है
४- हाथियों के झुण्ड में मादा हाथी ही झुण्ड का नेत्रत्व क्यों करती है,,,,
५-चीटियों के झुण्ड में मादा चीटी ही झुण्ड का नेत्रत्व क्यों करती है ,,,,
अब जयादा नहीं और भी बहुत से उदाहरण है ,, मगर मै बस यही कहना चाहूँगा की कही कोई अन्याय नहीं हो रहा अन्याय तो तब है जब शारीरिक क्षमता से अधिक काम दिया जाये या क्षमता के बाहर काम दिया योग्तम की उत्तर जीवता का नियम तो प्रक्रति भी मानती है Rrgards
•▬●๋•pŕávểểń کhừklá●๋•▬•
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अरे मैं तो कहता हूँ कि १० साल ले किये एक प्रयोग किया जाये... सारे पुरुषों को घर में रख दिया जाये और सारे बाहर के काम महिलाओं को दे दिये जायें... शायद देश /कौम/ जाति/ समाज बिलकुल ही ठीक हो जाये...
monika ji , lekh bahut accha hai .. aur sabki alag alag ray bhi hai .. sahi to yahi honga ki ... mahilao ko bhi utna hi haq milna chahiye jitna ki pursho ka hai , lekin army jaise powerful field me bhaartiya mahilaaye ko yadi sahi commondo training na mile to wo pursho ki barabari nahi kar paa sakti hai .. aisa main pakaa to nahi kahunga , kyonki dusare desho me mahilao ke bhi saman adhikaar hai .. yaha hamare desh me purush maaansikta kcuh sick hai ..
anyway , bahas me padhne se accha hai ki , aapne jo likha hai , wo bahut acchi baat kahi hai .. iske liye badhayi swekar kariye ..
जी हां सुधार की ज़रुरत है.वैसे बांटने का हक जिसको भी मिलता है मानव स्वभाव के अनुरूप वो थोडा बहुत पक्षपात तो करता ही है.स्त्री इस देश में पूज्य है तो उसकी गुणवत्त्ता पर सवाल क्यों?शायद हमलोगों को सत्ता छिन जाने का डर सता रहा है.आपसे सहमत हैं किसी भी प्रतिभा को लिंगभेद के नाम पर नकार देना न्याय नही है.
मोनिका जी, आपकी बात सही है। नियमों में भेदभाव नहीं होना चाहिए।
………….
संसार की सबसे सुंदर आँखें।
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सेना पुराने कानूनों का सहारा ले कर कह रही है कि महिलाओं को सेना में नियुक्त होने का हक नहीं है। लेकिन अब स्थितियाँ बदल रही हैं। कानून भी बदलने होंगे। महिलाओं को बराबरी के हक देने ही होंगे। जब भी किसी को कोई नया हक मिलता है तो कोई जरूर आहत होता है। ऐसे में प्रतिरोध तो होगा। सिर्फ उस का मुकाबला किया जाना जरूरी है। प्रतिगामी ताकतें मुकाबलें में कभी नहीं टिकतीं। देर सबेर उन्हें नयी परिस्थितियाँ स्वीकार करनी ही होती हैं।
आपके कथन से पूर्णत: सहमत हूँ ! सेना में महिलाओं को भी स्थाई कमीशन मिलना ही चाहिए ! जो लोग इसका विरोध करते हैं वे कही न कहीं स्वयं को अवश्य असुरक्षित महसूस करते हैं या फिर किसी प्रकार की हीन ग्रंथी का शिकार हैं ! यदि सेना की नियमावली में महिलाओं की भर्ती के विषय में प्रतिकूल नियम हैं तो उनको बदलना भी नितांत आवश्यक है ! विरोधी विचारधारा के लोग माँ दुर्गा का आह्वान और आराधना तो अवश्य ही करते होंगे ! वे देवी के किस रूप से प्रभावित हैं अपने अंतर में झाँक कर अवश्य देख लें ! आभार !
aapne sahi mudde ko sateek aur saarthak roop me rakha hai......
dhnyavaad !
जो नारी को कमजोर समझते हैं उन्हें महारानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती आदि को याद करना चाहिए। महिलाएं हर क्षेत्र में सशक्त हैं, उन्हें आगे आने में हमें मदद करनी ही चाहिए।
my blog-
www.apnapanchoo.blogspot.com
महिलाएं सशक्त हैं.bhadbhav thik nahi hai.
महिलाओं को बराबरी का हक मिलना चाहिए। अगर वे 14 साल बाद भी काम कर सकती हैं तो उन्हें स्थाई कमीशन मिलना चाहिए। मेरे हिसाब से 14 साल बाद पुरुषों और महिलाओं दोनों का दोबारा टेस्ट करना चाहिए। जो फिट हों उन्हें स्थाई कमीशन दे देना चाहिए...
monika jee aap ko path ke bahut achha laga. keep it up. or jo bhi likhen kripya parichit karwate rahen
Yes, women deserve parity with men.Our constitution also forbids discrimination on the basis of caste, creed and sex. Permanent commission must be opened to women as it is available to them in other countries of the world.
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