Thursday, July 22, 2010

हिंदी के प्रति आप क्या बनेंगे,नमक-हलाल,या हरामखोर.....???

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
 हिंदी के प्रति आप क्या बनेंगे,नमक-हलाल,या हरामखोर.....?

   दोस्तों , बहुत ही गुस्से के साथ इस विषय पर मैं अपनी भावनाएं आप सबके साथ बांटना चाहता हूँ ,वो यह कि हिंदी के साथ आज जो किया जा रहा है ,जाने और अनजाने हम सब ,जो इसके सिपहसलार बने हुए हैं,इसके साथ जो किये जा रहे हैं....वह अत्यंत दुखद है...मैं सीधे-सीधे आज आप सबसे यह पूछता हूँ कि मैं आपकी माँ...आपके बाप....आपके भाई-बहन या किसी भी दोस्त- रिश्तेदार या ऐसा कोई भी जिसे आप पहचानते हैं....उसका चेहरा अगर बदल दूं तो क्या आप उसे पहचान लेंगे....???एक दिन के लिए भी यदि आपके किसी भी पहचान वाले चेहरे को बदल दें तो वो तो कम ,अपितु आप उससे अभिक  " " परेशान "हो जायेंगे.....!!
                 थोड़ी-बहुत बदलाहट की और बात होती है....समूचा ढांचा ही " रद्दोबदल " कर देना कहीं से भी तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता.....सिर्फ एक बार कल्पना करें ना आप....कि जब आप किसी भी वास्तु को एकदम से बिलकुल ही नए फ्रेम में नयी तरह से अकस्मात देखते हैं,तो पहले-पहल आपके मन में उसके प्रति क्या प्रतिक्रिया होती है...!!...तो थोडा-बहुत तो क्या बल्कि उससे बहुत अधिक बदलाहट को हिंदी में स्वीकार ही कर लिया गया है बल्कि उसे अधिकाधिक प्रयोग भी किया जाने लगा है...यानी कि उसे हिंदी में बिलकुल समा ही लिया गया है....किन्तु अब जो स्थिति आन पड़ी है....जिसमें कि हिंदी को बड़े बेशर्म ढंग से ना सिर्फ हिन्लिश में लिखा-बोला-प्रेषित किया जा रहा है बल्कि रोमन लिपि में लिखा भी जा रहा है कुछ जगहों पर...और तर्क है कि जो युवा बोलते-लिखते-चाहते हैं...!!
             ....तो एक बार मैं सीधा-सीधा यह पूछना या कहना चाहता हूँ कि युवा तो और भी " बहुत कुछ " चाहते हैं....!!तो क्या आप अपनी प्रसार-संख्या बढाने के " वो सब " भी "उन्हें" परोसेंगे....??तो फिर दूसरा प्रश्न मेरा यह पैदा हो जाएगा....तो फिर उसमें आपके बहन-बेटी-भाई-बीवी-बच्चे सभी तो होंगे.....तो क्या आप उन्हें भी...."वो सब" उपलब्ध करवाएंगे ....तर्क तो यह कहता है दुनिया के सब कौवे काले हैं....मैं काला हूँ....इसलिए मैं भी कौवा हूँ....!!....अबे ,आप इस तरह का तर्क लागू करने वाले "तमाम" लोगों अपनी कुचेष्टा को आप किसी और पर क्यूँ डाल देते हो....??
              मैं बहुत गुस्से में आप सबों से यह पूछना चाहता हूँ...कि रातों-रात आपकी माँ को बदल दिया जाए तो आपको कैसा लगेगा....??यदि आप यह कहना चाहते हैं कि बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा....या फिर आप मुझे गाली देना चाह रहे हों....या कि आप मुझे   नफरत की दृष्टि से देखने लगें हो...इनमें से जो भी बात आप पर लागू हो,उससे यह तो प्रकट ही है कि ऐसा होना आपको नागवार  लगेगा बल्कि मेरे द्वारा यह कहा जाना भी आपको उतना ही नागवार गुजर रहा है....तो फिर आप ही बताईये  ना कि आखिर किस प्रकार आप अपनी भाषा को तिलांजलि देने में लगे हुए हैं ??
               आखिर हिंदी रानी ने ऐसा क्या पाप किया है कि जिसके कारण आप इसकी हमेशा ऐसी-की-तैसी करने में जुटे  हुए रहते है...???....हिंदी ने आपका कौन-सा काम बिगाड़ा है या फिर उसने आपका ऐसा कौन-सा कार्य नहीं बनाया है कि आपको उसे बोले या लिखे जाने पर लाज महसूस होती है....क्या आपको अपनी बूढी माँ को देखकर शर्म आती है...??यदि हाँ ,तो बेशक छोड़ दीजिये माँ को भी और हिंदी को अभी की अभी....मगर यदि नहीं...तो हिंदी की हिंदी मत ना कीजिये प्लीज़....भले ही इंग्लिश आपके लिए ज्ञान-विज्ञान वाली भाषा है... मगर हिंदी का क्या कोई मूल्य नहीं आपके जीवन में...??
                 क्या हिंदी में "...ज्ञान..."नहीं है...??क्या हिंदी में आगे बढ़ने की ताब नहीं ??क्या हिंदी वाले विद्वान् नहीं होते....??मेरी समझ से तो हिंदी का लोहा और संस्कृत का डंका तो अब आपकी नज़र में सुयोग्य और जबरदस्त प्रतिभावान- संपन्न विदेशीगण भी मान रहे हैं...आखिर यही हिंदी-भारत कभी विश्व का सिरमौर का रह चुका है....विद्या-रूपी धन में भी....और भौतिक धन में भी...क्या उस समय इंग्लिश थी भारत में....या कि इंगलिश ने भारत में आकर इसका भट्टा बिठाया है...इसकी-सभ्यता का-संस्कृति का..परम्परा का और अंततः समूचे संस्कार का...भी...!!
              आज यह भारत अगर दीन-हीन और श्री हीन होकर बैठा है तो उसका कारण  यह भी है कि अपनी भाषा...अपने श्रम का आत्मबल खो जाने के कारण यह देश अपना स्वावलंबन भी खो चुका,....सवा अरब लोगों की आबादी में कुछेक करोड़ लोगों की सफलता का ठीकरा पीटना और भारत के महाशक्ति होने का मुगालता पालना...यह गलतफहमी पालकर इस देश के बहुत सारे लोग बहुत गंभीर गलती कर रहे हैं...क्यूँ कि देश का अधिकांशतः भाग बेहद-बेहद-बेहद गरीब है...अगर अंग्रेजी का वर्चस्व रोजगार के साधनों पर न हुआ होता...और उत्पादन-व्यवस्था इतनी केन्द्रीयकृत ना बनायी गयी होती तो....जैसे उत्पादन और विक्रय-व्यवस्था भारत की अपनी हुआ करती थी....शायद ही कोई गरीब हुआ होता...शायद ही स्थिति इतनी वीभत्स हुई होती....मार्मिक हुई होती...!!
               हिंदी के साथ वही हुआ , जो इस देश अर्थव्यवस्था के साथ हुआ....आज देश अपनी तरक्की पर चाहे जितना इतरा ले...मगर यहाँ के अमीर-से-अमीर व्यक्ति में भाषा का स्वाभिमान नहीं है....और एक गरीब व्यक्ति का स्वाभिमान तो खैर हमने बना ही नहीं रहने दिया....और ना ही मुझे यह आशा भी है कि हम उसे कभी पनपने भी देंगे.....!!ऐसे हालात में कम-से-कम जो भाषा भाई-चारे-प्रेम-स्नेह की भाषा बन सकती है....उसे हमने कहीं तो दोयम ही बना दिया है...कहीं झगडे का घर....तो कहीं जानबूझकर नज़रंदाज़ किया हुआ है...वो भी इतना कि मुझे कहते हुए भी शर्म आती है...कि इस देश का तमाम अमीर-वर्ग ,जो दिन-रात हिंदी की खाता है....ओढ़ता है...पहनता है....और उसी से अपनी तिजोरी भी भरता है....मगर सार्वजनिक जीवन में हिंदी को ऐसा लतियाता है....कि जैसे खा-पीकर-अघाकर किसी "रंडी" को लतियाया जाता हो.....मतलब पेट भरते ही....हिंदी की.....!!!ऐसे बेशर्म वर्ग को क्या कहें ,जो हिंदी का कमाकर अंग्रेजी में टपर-टपर करता है.....जिसे जिसे देश का आम जन कहता है बिटिर-बिटिर....!!
                क्या आप कभी अपनी दूकान से कमाकर शाम को दूकान में आग लगा देते हैं.....??क्या आप जवान होकर अपने बूढ़े माँ-बाप को धक्का देकर घर से बाहर कर देते हैं....तो हुजुर....माई.....बाप....सरकारे-आला....हाकिम....हिंदी ने भी आपका क्या बिगाड़ा है,....वह तो आपकी मान की तरह आपके जन्म से लेकर आपकी मृत्यु तक आपके हर कार्य को साधती ही है....और आप चाहे तो उसे और भी लतियायें,अपने माँ-बाप की तरह... तब भी वह आखिर तक आपके काम आएगी ही...यही हिंदी का अपनत्व है आपके प्रति या कि ममत्व ,चाहे जो कहिये ,अब आपकी मर्ज़ी है कि उसके प्रति आप नमक-हलाल बनते हैं या "हरामखोर......"??
http://baatpuraanihai.blogspot.com/

1 comment:

RAVI MAHAZAN said...

first of all its not a exact status of Hindi language as u described here.
Second thing u cant bound a individual to use certain language in his original form because India is well known about its diversified culture heritage and particularly language which is of your concern.
so dear friend there is lots of impact of regional languages on Hindi and if u are looking in media or in literature pure Hindi is hard to understand for each and every individual even though lots of word u used in this article are not appropriate and proper placed so if u are expecting things in the manner its really impractical and w e need not to be bother about any foreign language because HINDI is in our heart and when we get out of the artificial world we use to express ourself in our mother tongue.
And before commenting on other if each individual will reform himself then problem will resolve automatically.