Monday, August 30, 2010

main......भूत बोल रहा हूँ..........!!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
इक पागलपन चाहिये कि चैन से जी सकूं…
सब कुछ देखते हुए इस तरह जीया ही नहीं जाता…।
मैं गुमशुदा-सा हुआ जा रहा हूं,
अपनी बहुतेरी गहरी बेचैनियों के बीच…
अच्छा होने की ख्वाहिश चैन से जीने नहीं देती…
और बुरा मुझसे हुआ नहीं जा सकता…
तमाम बुरी चीज़ों के बीच फ़िर कैसे जिया सकता है ??
और सब कुछ को अपनी ही हैरान आंखों से…
देखते हुए भी अनदेखा कैसे किया सकता है…??
अगर मैं वाकई दिमागी तौर पर बेहतर हूं…
तो लगातार कैसे अ-बेहतर चीज़ें जैसे
घटिया व्यवहार,घटिया वस्तुएं,
घटिया लोग,प्रेम से रिक्त ह्रदय
एक-दूसरे से नफ़रत से भरे चेहरे
और भी इसी तरह की कई तरह की…
असामान्य और अमान्य किस्म की बातें…
किस तरह झेली जा सकती हैं आसानी से…
और जो अगर इस तरह नहीं किया जा सकता है…
तो फिर कैसे निकाला जा सकता है यह समय्…
जो मेरे आसपास से होकर धड़ल्ले से गुजर रहा है बेखट्के
मुझे समझ नहीं आता बिल्कुल कि किस तरह
आखिर किस तरह से बिना महसूस किये हुए गुजर जाने दूं…
और अगर महसूस करूं तो सामान्य कैसे रह पाउं…??
इसिलिये…हां सिर्फ़ इसिलिये पागल हो जाना चाहता हूं…
कि सब कुछ मेरे महसूस हुए बगैर
मेरे आसपास तो क्या कहीं से भी गुजर जाये…

आंखे खुली रखते हुए अन्धा हो जाना कठिन होता है बड़ा…
आंखों के साथ आप लाठी पकड़ कर नहीं चल सकते…
और हम सब आज इसी तरह चल रहे हैं बरसों से…
अगर इसी तरह का अन्धापन हमें वाजिब लगता है…
तो सच में ही अंधे हो जाने में क्या हर्ज़ है…
इसी तरह का पागल्पन हमें भाता है…तो फ़िर
सच में भी पागल हो जाने में क्या हर्ज़ है…!!
मैं पागल हो जाना चाहता हूं.…
हां…सच मैं पागल हो जाना चाहता हूं…
कि चैन से जी सकूं…
कि मरने के बाद आकर यह कह सकूं…
मैं क्या करता या कर सकता था…
मैं तो जन्मजात ही पागल था…
दुनिया में सभी इसी तरह जी रहे थे…
एक पागल क्या खा कर कुछ कर लेता…!!??  

1 comment:

vijay kumar sappatti said...

amazing post , bahut dino baad kuch aisa padhne ko mila ki jhakjhor kar man ek kone me chupchaap khada hai , bahut se prashno ke saath .!!

aapko badhayi aur aapke lekhan ko salaam !!

vijay