पिछले दो दिनों से सोच रहा हूँ कि इस विषय पर लिखूं कि ना लिखूं....ऐसा यह विषय,जो शोध का है,पुरातत्व का है,इतिहास का है,वर्तमान का है,भविष्य का है,आस्था का है,कर्तव्य का है,दायित्व का है,भाईचारे का है,बड़प्पन का है,सौहार्द का है,धर्म का है,देश की शान्ति का है,आपस में मिलकर रहने का है....और हम चाहें तो यह अब न भूतो ना भविष्यति वाली मिसाल का भी हो सकता है...मगर अहम भला ऐसा क्यूँ होने देंगे...!!पांच-सौ साल से लटके हुए एक मुद्दे पर किसी कोर्ट ने एक फैसला दे दिया है.....जिसके लिए उसने हज़ारों तरह के साक्ष्य,पुरातात्विक प्रमाण,गवाहियां और ना जाने क्या-क्या कुछ देखा है,समझा है...इस प्रकार एक किस्म का गहनतम शोध किया है हमारे न्यायाधीशों ने इस विषय पर...और तब ही उन्होंने आने वाले भविष्य को ध्यान में रखते हुए...भारतीय-जनमानस और उसकी हठ-धर्मिता की संभावना को भांपकर यह फैसला लिया है....कभी-कभी क़ानून भी परिस्थितियों के मद्देनज़र फैसला लिया करता है...बेशक आप उसे गलत ठहरा दें...मगर जो मामला आप उसके पास ले जाते हैं....जरूरी नहीं कि उसमें क़ानून की बारीकियां ठीक उसी तरह काम करें...जिस तरह वो अन्य भौतिक मामलों में काम करती हैं...और अगर ऐसा ही आसान मामला आप इस राम-जन्म-भूमि मामले को समझते हो तो आपको गरज ही क्या थी इसे कोर्ट ले जाने कि...और आपने अगरचे कहा था कि आप कोर्ट का कोई फैसला आये उसे मानने के लिए बाध्य होगे....तो अब क्या सुप्रीम-कोर्ट-सुप्रीम कोर्ट की रट लगा रहे आप....??
सबसे पहली बात तो यह कि जिन लोगों का यह कहना है कि यह फैसला आस्था के आधार पर दिया गया है...उनसे कुछ बिन्दुओं पर दृष्टि डालने पर जोर दूंगा(१)हम सब अपने लिखित और अलिखित इतिहास से यह जानते हैं कि हिन्दुओं के आराध्य भगवान् राम का जन्म अयोध्या में हुआ है...और हमारे सारे पौराणिक ग्रन्थ इस बात की तस्दीक करते हैं...भले आप धर्म-निरक्षेप-वादियों और अन्य धर्मावलम्बियों की दृष्टि में एक मज़ाक हो,थेथरई हो,हठ-धर्मिता हो,या बेबुनियाद आस्था ही हो,जो भी हो...मगर एक मात्र सत्य तो आपको मानना ही पडेगा कि अयोध्या ही भगवान् श्री रामचंद्र जी की जन्म-भूमि थी और चूँकि थी,इसीलिए है और रहेगी...और यह भी सच है यह भूमि अयोध्या के किसी और स्थान पर नहीं मानी जाती इसीलिए अवश्य ही यही रही होगी...अगर राम जी पता होता कि भविष्य में किसी गैर-धर्मावलम्बी द्वारा हथिया कर या फिर स्वयं नष्ट होकर ऍन उसी जगह पर किसी मस्जिद के रूप में निर्मित हो जाने वाली है तो शायद उन्होंने उस जगह का चुनाव संभवतः नहीं ही किया होता....किन्तु अब चूँकि पहली गलती राम से ही हो चुकी...सो उसका परिणाम तो उनके वंशजों को भुगतना ही ठहरा....(२)मेरे प्यारे-प्यारे पढ़े-लिखे सम्मानीय भाईयों और बंधू-बांधवों...अब चूँकि अयोध्या नामक उस जगह पर राम जी जन्मस्थान का कोई और क्षेत्र भारतीयों द्वारा कभी निर्धारित ही नहीं किया जा सका इसीलिए यह मानना भी हमारी विवशता ही होगी कि दुर्भाग्यवश श्री राम जी ने वहीँ जन्म लिया....अब चूँकि श्री राम जी ने किसी झोपड़ी में जन्म ना लेकर एक राजा के महल में जन्म लिया था...तो इससे कम-से-कम यह भी तय है कि वह राजमहल कई एकड़ जमीन पर फैला हुआ होगा....सो यह भी तय हुआ कि आज की तारीख में तो क्या उस समय का भी उसका कोई नक्शा अब तक किसी के पास होने से ठहरा...अब चूँकि नक्शा ही नहीं है तो एकदम से यह नहीं बताया जा सकता कि वह कौन सा बिन्दु था जहां श्री राम जी जन्म लिया होगा....!!!
मगर अबे मेरे बाप-दादाओं....और तमाम सम्मानित लोगों ,अगर यह तय ही है कि अयोध्या ही राम का जन्म-स्थान है....और भले ही मान्यतावश यह माना जाता है कि वही स्थान राम का जन्मस्थान हो सकता है,चूँकि कोई और स्थान की डिमांड यहाँ नहीं हो रही...और जिस पर कालान्तर में ताकत द्वारा कब्जा कर लिया गया.....जो भी हो यहाँ यह कहना भी बात को असंगत मोड़ देना हो जाएगा... क्योंकि जैसा कि हम जानते हैं कि विगत इतिहास में मुगलों द्वारा भारतीयों पर किसी किस्म का अत्याचार-शोषण आदि नहीं हुआ था और उस काल में हम सब मिलजुल कर रहते थे....और मुग़ल इतने सहिष्णु हुआ करते थे कि उन्होंने मंदिर तोड़ना तो दूर....अपितु हमें मंदिर बनवा-बनवा कर दान में दिए थे...छोड़िए,यह भी विषयांतर हो जाएगा...तो अब चूँकि राम-लला वहीँ के थे,हैं,और रहेंगे....तो भईया लोगों इसमें आस्था का क्या सवाल है...!!.अब हमारा इतिहास हमेशा से लिखित इतिहास नहीं रहा तो क्या यह कोई पाप हो गया...??हमारा कोई आराध्य पूर्वज हजारों-हजार साल पहले होकर चला गया,अपना बिना कोई लिखित विवरण दिए....तो इसमें उसका या हमारा कोई अपराध है...?? अ
हम फिर से उसी बात आते हैं....!!अब अगर कोई महल है तो उसके फैले हुए क्षेत्रफल में कहाँ से कहाँ तक किस-किस तरह के प्रकोष्ठ...शयन-कक्ष या किन्हीं अन्य तरह के कक्ष रहें होंगे....इस बात की तस्दीक अब कौन करेगा...बुखारी जी,जिलानी जी,मोहन भागवत जी,आडवाणी जी,मुलायम जी या जस्टिस श्री शर्मा जी,अग्रवाल जी या कि खान साहेब जी....कौन करेगा इस बात की तस्दीक....??और चूँकि हम सब यह जानते हैं कि इसे सही तरह से साबित ही नहीं किया जा सकता...तो इस पर किसी भी तरह का सवाल उठाने का अधिकार ना तो हममे से किसी का था....और ना किसी जस्टिस के फैसले का सवाल ही था...और जब यह दोनों ही बातें थीं....तो इस पर दे दिए गए किसी भी किस्म के फैसले पर सवाल उठाने या आक्षेप करने का अधिकार किसी भी किस्म की ताकत को होना चाहिए !!
ध्यान रहे यह सबको कि यह बात कोई एक हिन्दू नहीं कह रहा....हमारा किसी भी जात या धर्म का होना या ना होना एक संयोग मात्र है...इसे हमें अपनी मानवीयता पर किसी भी कीमत पर हावी नहीं होना देना चाहिए...इस धरतीं पर राम जी कृपा से हर एक कौम का अपना एक मुख्य काबा....या जो भी कुछ है...उसमें अगर एक काबा हिन्दू का भी हो जाए तो उसमें किसी का क्या बिगड़ता है....सिर्फ यह बात भी हम सब सोच लें तो बात बन सकती है....वरना सदियों से हमने अपने धर्म को फैलाने के लिए कोई कम खुनी लड़ाईयां नहीं खेली हैं....अगर धर्म का नाम किसी के खून से होली ही खेलना है तब तो मुझे कुछ नहीं कहना....मगर अगर सच में हममें मानवीयता नाम की कोई चीज़ अगर बची हुई है तो इस फैसले को शिरोधार्य कर ही लेना चाहिए....खुदा-ना-खास्ता अगर सुप्रीम-कोर्ट में यही बात साबित हो गयी कि हाँ यही राम-लला का जन्म-स्थान है....तब....या इसका उलटा ही साबित हो गया....तब.....तब कौन सा भाईचारा बचा रह पायेगा....तब या तो यह होगा और या तो वह....और दोनों ही स्थिति में......मैं इस पर कुछ कहना नहीं चाहूँगा...किन्तु मैं हिन्दू ना भी होता तो इस आस्था....श्रद्धा के इस घनीभूत केंद्र पर लोगों की अपने प्रभु-दर्शन को प्यासी आँखें देखकर उसे उनलोगों को ही समर्पित कर डालता....यहाँ तो बाकायदा हजार साल चली आ रही श्रद्धा है....और क्या मजाक है कि आप इसे बेबुनियाद या इसी टाईप की कुछ चीज़ बताये जाते हो....??
दोस्तों इस फैसले में अगर आस्था नाम की चीज़ का अंश है भी तो आप मुझे यह तो बताईये....कि ऐसे सवाल उठाने वाले खुद क्या आस्थावान नहीं हैं....वो किस तरह के फैसले देते......या ऐसे अहम् और जन-मानस को झकझोर देने वाले प्रश्न पर अपना क्या स्टैंड रखते....और अगर वो किसी भी पक्ष की आस्था से प्रेरित हुए होते तो किस प्रकार के फैसले लेते....और आस्थावान ही ना हुए होते तो भला फैला ही क्या दे पाते....कभी-कभी क़ानून की रक्षा करने से बेहतर आदमी की, आदमियत की,और आदमी के भीतर अन्य चीज़ों की रक्षा करना होता है....और यह सब होता है आदमी को आदमी के साथ मिलजुल कर रहने देने के लिए.... वरना क़ानून तो क़ानून है.....वो किसी को भी कहीं से भी बेदखल कर कर सकता है....सच (या झूठ की भी ??)की बुनियाद पर...अगर वहां से राम लला बेदखल हो सकते है तो मीर बांकी या बाबर भी....महत्वपूर्ण यह है कि आप किसे आदमी के जीवन के लिए महत्वपूर्ण मानते हो....बाबर को....या राम को....चाहे आप किसी भी धर्म के क्यों ना हों...!!(....यहाँ किसी छोटा या बड़ा सिद्ध नहीं किया जा रहा,सिर्फ जीवन में आस्था के प्रश्न का औचित्य बताया जा रहा है...)हो सकता है एक बहुत बड़े वर्ग की दृष्टि में कोई बाबर या कोई मीर बांकी ,किसी दूसरी कौम के पूज्य आराध्य देव राम से ज्यादा इम्पोर्टेंट हों.....मगर इससे राम की महत्ता गिर नहीं जाएगी...और अगर राम का ना नाम लेकर यह जमीन किसी ने मस्जिद को सौंप भी दिया तो कोई बड़ा भाईचारा स्थापित नहीं हो जाएगा....भाईचारा अब किस बात में है....इस फैसले का आधार अब कोर्ट ने तैयार कर दिया है....इसे समझना अब हमारा काम है....और सबसे बड़ी बात तो यह है कि बेशक आप सब बहुत बड़े तत्व-ज्ञानी हो सकते हो.... भले तीनो माननीय जजों से से बुद्धिमान भी हो सकते हो....मगर आप राम से बड़े हों....तो ले जाईये भगवान् राम को घसीट कर सुप्रीम कोर्ट और कर दीजिये उनके आदर्शों की ऐसी की तैसी.....मर्यादा तो खैर आपमें कभी थी ही नहीं....!!!
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