Saturday, October 30, 2010

सुनिए बहलेनियों, भिनसरियों की व्यथा


अनुपमा


झारखंड में एक जगह है तोरपा. वहीं की रहनेवाली है बहलेन कोनगाड़ी. बहलेन से पिछले दिनों इटकी टीबी अस्पताल में मुलाकात हुई. रांची से सटे इटकी का टीबी अस्पताल अंग्रेजों के जमाने से ही बड़ा मशहूर अस्पताल है. वहीं जेनरल वार्ड के एक बेड पर पड़ी हुई मिली बहलेन. पीला चेहरा. मरमराई हुई आंखें. खामोश बहलेन के चेहरे पर एक अजीब -सी उदासी छायी हुई थी. बस यूं ही बातों-बातों में पूछी. कुछ उसके बारे में जानने के लिहाज से. एक बड़ी लड़की बहलेन, बच्चों की तरह सिसकने लगी. रोते-रोते उसने जो दास्तान सुनायी, वह बेहद दर्दनाक है. जिस रोज हम बहलेन से मिल रहे थे, ठीक उसके दो दिन पहले ही उसका छह माह का बच्चा अबार्ट हो गया था. डॉटस की दवाई में जो गरमी होती है, उसके कारण गिर गया था बच्चा. वहां मिली एक नर्स बताती है कि यह दवा होती है इतनी गरमीवाली कि ऐसा होना स्वाभाविक था. पर बहलेन उस बच्चे को जनम देना चाहती थी. उसे पालना चाहती थी. प्रेम के प्रतीक के रूप में रखना चाहती थी. वह प्रेम पूरी तरह से फ्रॉड ही था, फिर भी. लेकिन वह ऐसा कुछ भी न कर सकी.

बहलेन एक साल पहले दिल्ली गयी थी. झारखंड से जानेवाली और सैकड़ों लड़कियों की तरह. अपने परिवार की आर्थिक दशा को सुधारने के लिए, कुछ हसीन ख्वाबों के साथ. दलालों द्वारा दिखाये गये सुनहरे सपनों के साथ. बहलेन को अपने ही गांव का एक दलाल ले गया था. वहां उसे एक घर में दायी (मेड) का काम मिल गया. तय हुआ कि उसे तीन हजार रुपये हर माह मिलेंगे. पर रात-दिन खटने के बाद भी सारा पैसा दलाल ले उड़ा. दिल्ली के पश्चिम विहार में काम करने के दौरान ही उसे एक लड़के (नासिर) से प्यार हो गया. शादी का झांसा देकर वह उसका शारीरिक शोषण करता रहा. जब पता चला कि बहलेन पेट से है तो वह भाग गया. बहलेन यह सब जानते हुए भी अपने बच्चे को जन्म देना चाहती थी, पर अब वह इसे नीयति मान बैठी है. रात दिन खटने और ठीक से भोजन न मिलने के कारण बेहद कमजोर हो गयी. इसी बीच उसे टी.बी हो गया. वह लौटकर अपने गांव आ गयी. लगातार खांसी होने पर गांव के लोगों ने उसे टी.बी सेनेटोरियम में जांच के लिए भेजा तो पता चला कि उसे टी.बी है. पिछले दो माह से उसका इलाज यहां चल रहा है और वह पहले से बेहतर महसूस कर रही है.

बहलेन से मिलने के बाद हम जैसे ही आगे बढ़े हमारी नजर एक छोटी-सी बच्ची पर पड़ी. नाम है भिनसरिया कोरबा. भिनसरिया बिशुनपुर, गुमला की है. आज ही अस्पताल में भर्ती हुई है. पर हालत बिल्कुल गंभीर. पूछने पर कुछ भी नहीं बोलती. उसे अस्पताल में भर्ती करवाने के लिए लायी शिक्षिका बताती हैं कि वह अनाथ है और उसके माता-पिता (महाबीर कोरबा और चैती कोरबा) की मौत भी टी.बी के कारण ही हो गयी थी. कोरबा प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है और उनके इलाज के लिए अब भी कोई विशेष उपाय नहीं किये गये हैं. सोमरी कच्छप भी इसी अस्पताल में भर्ती है. उसका पिछले चार महीनों से इलाज चल रहा है. इसके पहले उन्होंने दो महीने तक प्राइवेट में इलाज कराया था. लेकिन जब हालत बदतर हो गयी और इलाज के पैसे नहीं बचे तो टीबी सेनेटोरियम में आयी है.

अस्पताल में ऐसे कुल 217 मरीज हैं और सबकी कहानी मार्मिक व बेहद संवेदनशील है. इसमें हर कटेगरी के मरीज शामिल हैं. इटकी सेनेटोरिम के अधीक्षक आर. जे.पी सिंह कहते हैं कि कटेगरी 1, 2 और 3 सभी के मरीज आते हैं. अस्पताल में 415 लोगों के रखने की व्यवस्था है परंतु हमारी कोशिश होती है कि कॉम्प्लीकेटेड केसेज को छोड़कर बाकी मरीजों को उनके नजदीक के सेंटर पर इलाज के लिए भेज दिया जाये. रेसीडेंट केस को डॉटस प्लस प्रोवाइड किया जाता है. झारखंड में एसटीडीसी और एलपीए की ट्रेनिंग हो चुकी है और बहुत जल्द ही यहां एडवांस टेस्ट की सुविधा भी उपलब्ध होगी. एसटीएस के रूप में काम करनेवाले हिमांशु कहते हैं कि इलाज की अवधिपूर्ण होने से पहले ही मरीज कभी-कभी दवा लेना छोड़ देते हैं. ऐसे में उन्हें काउंसलिंग देना और समझाना एक टेढ़ी खीर साबित होती है. आंगनबाड़ी सेविका या एएनएम भी इस काम में मदद करते हैं. पर पिछले वर्ष 2009 में 939 और इस वर्ष अब तक 600 लोगों का इलाज यहां हो चुका है. झारखंड में हर वर्ष टीबी मरिजों की संख्या बढ़ती जा रही है. यदि अस्पताल के मरिजों की संख्या देखें तो 2005 में जहां 659, 2006 में 683, 2007 में 815, 2008 में 879 मरिजों का इलाज सिर्फ इटकी टीबी सेनेटोरियम में हुआ. जो बाहर गये, उनकी बात अलग. प्राइवेट प्रैकिटसनर के पास अलग. झारखंड अन्य कई चीजों का हब रहा है. अब टीबी का भी हब है. भारत में सबसे तेजी से टीबी मरिजों की संख्या यहां बढ़ रही हैं. इसमें धनबाद नंबर वन पर है. कोयले की कमाई में टीबी की बात कौन करेगा. सभी माइनिंग एरिया में कमोबेश स्थिति बदतर ही है.

2 comments:

Anonymous said...

really a nice story. I was amazed to see such a nice report on T.B. I appreciate the writer and hope will do write on such sensitive issue in future also.

Rakesh jain said...

Anupama ji aapko badhai.