Wednesday, November 17, 2010

जब कुछ नहीं बोलती स्त्री......!!



जब कुछ नहीं बोलती स्त्री 

जब कुछ नहीं बोलती स्त्री
तब सबसे ज्यादा बोलती हुई कैसे लगती है !
जब गुनगुनाती है वो अपने ही घर में
तब सारी दिशाएं गाती हुईं कैसे लगती हैं भला !
जब आईने में देखती है वो अपने-आपको
तो चिड़िया सी फुदकती है उसके सीने में !
बच्चों के साथ लाड करती हुई स्त्री
दुनिया की सबसे अनमोल सौगात है जैसे !
जब कभी वो तुम्हें देखती है अपनी गहरी आँखों से
तुम सकपका जाते हो ना कहीं अपने-आप से !!
स्त्री ब्रह्माण्ड की वो सबसे अजब जीव है
जिसकी जरुरत तुम्हें ही सबसे ज्यादा है !
और गज़ब तो यह कि -
तुम उसे वस्तु ही बनाए रखना चाहते हो
मगर यह तो सोचो ओ पागलों
कि कोई वस्तु कैसी भी सुन्दर क्यूँ ना हो
सजीव तो नहीं होती ना....!!
जगत की इस अद्भुत रचना को
इसकी अपनी तरह से सब कुछ रचने दो !
कि सजीव धरती ही बना सकती है
तुम्हारे जीवन को हरा-भरा !
और सच मानो -
स्त्री ही है वो अद्भुत वसुंधरा !!

1 comment:

Rajat Kr Gupta said...

भूत अब भी भूतकाल की बात क्यों कर रहा है। पंचायत चुनाव के पहले चरण के बाद हम स‌भी को अपनी स‌ोच बदल लेनी चाहिए। यह हो स‌कता है कि महिला स‌्वर और व्यंजनों का प्रयोग अपने मुख स‌े नहीं करती या फिर कम करती है। झारखंड जैसे राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भूमिका पहले चरण में स‌्पष्ट हो चुकी है।