Wednesday, April 6, 2011

देश के पटल पर उभरते कई परिदृश्य

रजत कुमार गुप्ता
संदर्भ झारखंड
121 करोड़ की आबादी यानी अंदाजन 100 करोड़ से अधिक गरीब के देश में खुशी का माहौल है। भारत विश्व कप क्रिकेट का चैंपियन बना है। हर जगह जश्न का माहौल है। इस राष्ट्रव्यापी माहौल के बीच अन्ना हजारे देश की राजधानी दिल्ली में आमरण अनशन पर बैठे हैं। उनके साथ क्रेन बेदी यानी पूर्व आइपीएस अधिकारी किरण बेदी, सूचना अधिकार के झंडाबरदार अरविंद केजरीवाल जैसे सामाजिक स‌रोकार से जुड़े लोग भी हैं। यह मुद्दा देश के भ्रष्टाचार से जुड़ा है, ये स‌भी जन लोकपाल विधेयक को लागू करने के साथ-साथ आर्थिक अपराध के दोषियों को आजीवन कारावास की स‌जा देने एवं उनकी अवैध संपत्ति जब्त करने की मांग कर रहे हैं। देश की वर्तमान व्यवस्था यह तक तय नहीं कर पा रही है कि देश के बेइमानों को स‌जा देने का कारगर तरीका क्या हो। 
दूसरी तरफ योग का ज्ञान देते-देते विदेश में जमा काले धन की वापसी की मांग करने वाले बाबा रामदेव ने भी अनेकों की सांसें उखाड़ दी हैं। उनके इस प्रयास को देशभर में स‌राहा भी जा रहा है, जबकि स‌त्ता पर पकड़ रखने वाले कई लोग इस आन्दोलन से परेशान भी हो रहे हैं। आखिर भारत का पैसा विदेशी बैंकों में जमा है, इसकी जांच और अवैध रुपये से अर्जित धन को देश में वापस लाने का कोई खुलकर विरोध नहीं कर रहा। फिर वह कौन सी ताकतें हैं जो अन्ना हजारे और बाबा रामदेव को सार्वजनिक मंचों से जनता की मांग दोहराने से रोकना चाहते हैं। 
अब रांची लौटें तो इसलाम नगर की चर्चा प्रासंगिक है। प्रशासन ने स‌ख्ती दिखाते हुए अंततः इसलाम नगर के अवैध कब्जे को खाली कराना प्रारंभ कर दिया। एक कहावत चर्चा में है रोम जल रहा था और नीरो बंशी बजा रहा था। जिस राज्य में उद्योग स्थापित करने के लिए उद्योगपति जमीन की मांग करते-करते थक चुके हैं। वहां का उद्योग लगाने के लिए बिना किसी औद्योगिक नीति के क्या नया कमाल होगा, यह विचार का विषय है। 
जिस आधार पर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू हुई है, वह आधार गरीबों की बस्ती उजाड़ने का नहीं था। बड़े बिल्डरों द्वारा बहुमंजिली इमारतों में गलत निर्माण करने और नियम के मुताबिक मकान नहीं बनाने वालों पर कार्रवाई का प्रारंभिक आदेश हुआ था। इन बड़े बिल्डरों के गलत कृत्य सुधारे जाते उससे पहले ही गरीबों की बस्ती उजड़ने लगे। नतीजा हुआ कि अब हर राजनीतिक दल इसके विरोध में कमर कस चुका है। इसी क्रम में केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत भी बाल-बाल बचे। अनेक नेता घायल हुए और प्रशासनिक स‌ख्ती ने अंततः जनता के विरोध को कुचलते हुए अतिक्रमण हटाने का काम प्रारंभ कर दिया। 
जो स‌वाल दिल्ली से रांची तक उपज रहे हैं वे प्रासंगिक हैं। क्या हर बार जनता को अपनी जायज मांग मनवाने के लिए आंदोलन का स‌हारा लेना पड़ेगा। यानी बेइमानी से हुई कमाई को भी हमारी वर्तमान व्यवस्था बचाने के लिए कानूनी सुरक्षा देना चाहती है। क्या भारत के शीर्ष पंचायत से लेकर गांव तक की व्यवस्था आम जनता की सोच के मुताबिक काम नहीं कर पा रही है। क्या यह स‌च्ची लोकतांत्रिक व्यवस्था है, जिसमें जनता को अपनी बात कहने से डरना चाहिए। इन स‌वालों से जुड़े अन्य स‌वाल देश की एकता से जुड़ रहे हैं। ग्रामीण भारत का वर्तमान हाल नक्सली प्रभाव से लगातार पीड़ित होता नजर आ रहा है। क्या शहरी जनता और मध्यम वर्ग तक को अपनी बात मनवाने के लिए नक्सलियों की तरह हथियार ही उठाना पड़ेगा। उससे जुड़ा स‌वाल यह है कि अगर आम जनता के बहुमत ने वर्तमान व्यवस्था को नकारते हुए किसी वैकल्पिक व्यवस्था को बेहतर मान लिया तो हम और हमारा देश कहां और किस हालत में होगा।

No comments: