Thursday, April 28, 2011

धीरज खोती पीढ़ियां

रांची में बुधवार की शाम को इंटर की परीक्षा देने आयी खुशबू नामक लड़की की सरेआम हत्या हो गयी। हत्या करने वाला युवक उससे प्रेम करता था और लड़की की शादी २७ मई को कहीं और होने वाली थी। हत्यारे बृजेंद्र ने जिस बर्बरता से उसकी हत्या की, वह कहीं से भी क्षम्य नहीं है। उसे कुछ और ना सही लेकिन फांसी की सजा जरूर मिलनी चाहिए। इस घटना के बाद प्रशासन की निष्क्रियता और सुरक्षा संबंधी मुद्दों को लेकर सवाल खड़े किये जा रहे है। यहां तक की खुशबू के परिजन भी कॉलेज को छात्र-छात्राओं के लिए असुरक्षित और संदिग्ध बता रहे है। उन दोनों के बीच क्या था, क्या नहीं, इसी चर्चा अब बेमानी है। लेकिन क्या यह कहना जायज है कि कॉलेज की सुरक्षा व्यवस्था में कमी थी इसलिए उसकी हत्या कर दी गयी। बृजेंद्र जिस बदला लेने की मानसिकता से त्रस्त था और जिस सोची समझी नीति के तहत उसने खुशबू की हत्या की, उससे एक बात स्पष्ट है कि उसे जहां मौका मिलता, वह खुशबू की हत्या कर ही देता है। अगर कॉलेज में नहीं कर पाता, कहीं सड़क चलते कर देता। लिहाजा, कॉलेज की सुरक्षा व्यवस्था की खामियां, बृजेंद्र के दो-दो गेट पार कर खुशबू तक पहुंचने, भुजाली लेकर कॉलेज कैंपस में सरेआम उसकी हत्या करना जैसी बातों पर बहस करना बेमानी है। आये दिन बढ़ती ऐसी घटनाओं के कारणों पर ध्यान देकर इसे घर से और परिवार के बीच से सुधारने का काम करें। 16-17 की उम्र में प्यार करना, जब यह पता नहीं होता कि जो खाना वह रोज खा रहे है, वह कितना महंगा है, जो कपड़े वो पहन रहे है उसमें कितने पैसे लग रहे है और जो शिक्षा उन्हें मिल रही है, उसे दिलाने में उसके माता पिता ने अपने कितने सपनों की तिलांजलि दी है, और उसके विफल होने पर बदला लेने की प्रवृति का एक प्रमुख कारण परिवार से मिलने वाला एकाकीपन है, जो कहीं ना कहीं बढ़ते बच्चों को घर परिवार के नियम कायदे से दूर कर रहा है। घटते सामाजिक सरोकार की आड़ में आज परिवार खुद को समृद्ध बनाने में लगा है। इस समृद्धि के पीछे भागते भागते परिवार बच्चों पर ध्यान देने, उनकी हरकतों पर निगाह रखने, उन्हें जरूरी मार्गदर्शन देने और एक अच्छा इंसान बनाने के परम कर्तव्य से विमुख होता जा रहा है। फिर चाहे वह लड़का हो या लड़की, माता पिता की पहली जिम्मेदारी होती है कि बच्चे को प्रैक्टिकल बनाएं ना कि हवाई दुनिया में विचरने दें। आपके पास कितना भी सामर्थ्य् हो, लेकिन आपके बच्चे को इस बात का एहसास होना चाहिए कि जो सुविधाएं तुम्हें मिल रही है, उसका सही इस्तेमाल क्या है और उसके अर्जन में कितनी मेहनत करनी पड़ती है। रिश्तों के मायने क्या होते है, किसी घर के लिए उनके बच्चों का महत्व क्या होता है, अगर ये सभी बातें माता पिता द्वारा बच्चों में बालपन से बताएं जायें, तो कम से कम ऐसी घटनाएं फिर देखने सुनने को नहीं मिलेंगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।

2 comments:

नदीम अख़्तर said...

बहुत ही सटीक बात कही है आपने। मैं समझता हूं कि भारत में पारिवार की ओर से सिखाये जानेवाले मैनर्स कम पड़ते जा रहे हैं। आये दिन ऐसी घटनाएं घट रही हैं। कहीं कोई युवक किसी लड़की पर तेजाब फेंक दे रहा है, तो कहीं कोई किसी को सरेराज चाकू मार दे रहा है। यह सही है कि परिवार में लोग अपने बच्चे-बच्चियों पर ध्यान कम दे रहे हैं, जिसके चलते यौवन में हवाई किले बनाने की परंपरा विकसित हो गयी है। अगर समाज अभी भी नहीं सुधरा, तो स्कूल-कॉलेज तो क्या घर का डायनिंग टेबल भी असुरक्षित हो जायेगा। लेकिन, इन सब से ऊपर बात ये है कि कल जिस लड़के ने लड़की की बेरहमी से हत्या कर दी, उसे 72 घंटे के अंदर अदालत को फांसी की सजा सुनानी चाहिए। इस मामले में तो किसी प्रकार की गवाही, जांच, बयान, तारीख पे तारीख की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए। अदालत को इस मामले में स्वतःसंज्ञान लेना चाहिए।

Rajat Kr Gupta said...

काफी दिनों के बाद ऎस‌ा लगा कि कोई जागरूक पत्रकार किसी गंभीर विषय पर कुछ लिख रहा है। वरना इनदिनों हमलोगों के ब्लॉग में स‌ंस्थापकों ने ही लिखना बंद कर रखा है।