Sunday, May 1, 2011

हम अवैध और अतिक्रमणकारी हैं

विष्णु राजगढ़िया

क्योंकि कल-कारखानों के नाम पर हमें उजाड़ने के बाद बसाया नहीं गया और रोजगार या मुआवजा भी नहीं मिला

और क्योंकि एचईसी, कोल इंडिया, बीएसएल ने जरूरत से ज्यादा जमीनें हमसे छीन लीं जो अब तक हमें वापस नहीं मिली

और क्योंकि सिंचाई की एक भी योजना पूरी नहीं हुई, अकाल से खेत सूखे हैं और गांव में जीविका का कोई रास्ता भी नहीं है

और क्योंकि झारखंड बनने के बाद नयी बहालियां बेहद कम हुईं और जेपीएससी में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का बोलबाला रहा

और क्योंकि शिक्षा और रोजगार के अवसरों की कमी और पेट की आग ने हमें फुटपाथ पर बैठने को मजबूर किया

और क्योंकि भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के कारण हमें योजनाओं का लाभ नहीं मिला और बजट के पैसे सरेंडर हो गये

और क्योंकि ग्रेटर रांची नहीं बनी, हमारी रिहायशी जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया गया और हरमू की जमीनें बिल्डरों को बेच दी गयीं

और क्योंकि नक्शा पास कराना काफी मुश्किल और महंगा है और इसके कार्यालयों में भ्रष्टाचार की हदें पार हो जाती हैं

और क्योंकि माओवादियों के अतिक्रमण के कारण गांवों से हमें पलायन करना पड़ा है जबकि सरकार उस अतिक्रमण को नहीं हटा रही

और क्योंकि नेताओं अफसरों को दो-दो बंगले मुफ्त मिल जाते हैं और उन्हें एक-एक ईंट जोड़ने की कीमत नहीं मालूम

और क्योंकि टाटा कंपनी की लीज दस साल बाद भी बढ़ जाती है जबकि हमारे कचहरी मार्केट की डेढ़ सौ दुकानें गिरा दी जाती हैं

और क्योंकि अदालतों में पचासों साल से हमारे लाखों मुकदमे लंबित होने के कारण हम अपनी जिंदगी के जरूरी फैसलों से वंचित हैं

और क्योंकि जेएनएनयूआरएम का कोई लाभ नहीं उठाया गया और झुग्गी विकास योजनाओं पर भी अमल नहीं हुआ

और क्योंकि अतिक्रमण स्वयं कोई रोग नहीं बल्कि हर मोरचे पर सरकार की विफलता की बीमारी का लक्षण मात्र है

और क्योंकि ऐसे ही अन्य बहुत कारणों से हम अवैध और अतिक्रमणकारी होने को मजबूर हैं

हमसे आक्रमणकारी जैसा व्यवहार मत करो

हमें मत उजाड़ो, नयी योजना बनाओ, विध्वंस नहीं निर्माण करो

5 comments:

मोनिका गुप्ता said...

सचमुच यह झारखंड का दुर्भाग्य है कि राज्य बनने के बाद यहां के लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिला। बड़ी बड़ी घोषणाएं की गयी, एमओयू पर हस्ताक्षर किये गये, लेकिन सभी में केवल औद्योगिक और कॉरपोरेट लाभ को ध्यान में रखा गया। राज्य की जनता पहले भी उपेक्षित थी और आगे भी उपेक्षित रहेंगी। कम से कम वर्तमान सरकारी नीतियां तो ऐसा ही संकेत देती है। अतिक्रमण के दौरान रौंदे गये घरों और बस्तियों में कितने सपने बिखर गये, कितनों की जिंदगियां तबाह हो गयी, इसका अंदाजा ना तो सरकार लगा सकती है और ना ही एसी कमरों में बैठकर नीतियां बनाने वाले अफसर। इसके विरोध के लिए लोगों को एकजुट होकर पूरे राज्य में प्रदर्शन करना होगा। तभी आने वाली पीढ़ियां अपने हारने के कारण गिनने में अपना समय नष्ट नहीं करेंगी। लोगों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि संवेदनहीन समाज कभी रचनात्मक नहीं हो सकता।

Dr. M. P. Mishra said...

It was only after reading this article by Rajgarhiya that I started thinking in favour of encroachers.
I have many thoughts reserved against encroachers, especially against those who use even Gods to occupy Government land.Occupying Government land for some time and claiming ownership on that land is simply criminal. Yes, those who are displaced through government schemes and projects have legal rights for their rehabilitation. Suggest something for those who occupy government land in the name of religion.

Dr. M. P. Mishra said...

http://www.ecosensorium.org/2009/10/misuse-of-religion.html

रंजीत/ Ranjit said...

it's an eye opener
piece. this is bitter but truth. yes, that'why we are Invasive. they compelled people to become an Invasive.
shukriya sir.

devendra gautam said...

यही है अतिक्रमण का सच...बहुत खूब कविता लिखी है विष्णु जी!