Wednesday, November 21, 2012

ठाकरे खुद भी हिटलर के प्रशंसक थे



मुंबई.  भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने लिखा है कि वह ठाकरे को श्रद्धांजलि     नहीं दे सकते। अपने एक लेख में उन्‍होंने इसके कारण भी गिनाए हैं। काटजू ने लिखा है, 'भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1(1) कहता है कि इंडिया यानि भारत राज्यों का यूनियन होगा जिसका मतलब है कि भारत यूनियन है न कि कॉन्फ़ेडरशन। संविधान का अनुच्छेद 19(1)(E) कहता है भारत के सभी नागरिकों के पास भारत में कहीं भी रहने और बसने का अधिकार होगा। इससे यह साफ होता है कि किसी भी गुजराती, दक्षिण भारतीय, बिहारी, यूपीवासी या किसी अन्य राज्य के नागरिकों के पास महाराष्ट्र आने और यहां बसने का मूलभूत अधिकार है। ठीक वैसे ही महाराष्ट्र के लोगों के पास भी देश के किसी भी अन्य हिस्से में बसने का अधिकार है (हालांकि जम्मू-कश्मीर औप कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में ऐतिहासिक कारणों से कुछ पाबंदियां हैं।)'
बाल ठाकरे भूमिपुत्र थ्योरी के कारण याद किए जा रहे हैं। उनकी इस थ्‍योरी के मुताबिक महाराष्ट्र पर मराठियों का अधिकार है जबकि गुजराती, दक्षिण भारतीय और यूपी बिहार से आए लोग यहां बाहरी हैं। ठाकरे की यह भूमिपुत्र थ्यौरी संविधान के अनुच्छेद 1(1) और 19(1)(e) का खुला उल्लंघन है। भारत एक राष्ट्र है और महाराष्ट्र के बाहर के लोगों के महाराष्ट्र में बाहरी नहीं माना जा सकता। 
ठाकरे द्वारा गठित शिवसेना ने 60 और 70 के दशक में दक्षिण भारतीयों पर हमले किए और उनके रेस्त्रां और घर तोड़ दिए। साल 2008 में बिहारी और यूपीवासियों को मुंबई में  भैय्या कहकर पीटा गया। उनकी टेक्सियां तोड़ दी गईं और मुसलमानों पर भी हमले किए गए। 
नफरत की इस राजनीति (ठाकरे खुद भी हिटलर के प्रशंसक थे) से ठाकरे को वोट बैंक जरूर मिला, लेकिन उन्हें देश के टूटने या विभाजित होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। भूमिपुत्र की इस थ्‍योरी के गैर संवैधानिक और राष्ट्र विरोधी होने के साथ-साथ ठाकरे का विरोध करने का मेरे पास एक और साधारण कारण भी है। इससे ठाकरे के अपने लोग भी स्वयं पर प्रतिघात होता महसूस कर सकते हैं। 
भारत मूल रूप से अप्रवासियों का देश है। आज भारत में रह रहे 92-93 प्रतिशत लोग भारत के मूल निवासी नहीं है बल्कि पश्चिमोत्तर से आए हुए अप्रवासियों के वंशज हैं। भारत के मूल निवासी द्रविड़ काल के आदिवासी हैं जिनमें भील, गौंड, संधाल, टोडा आदि शामिल हैं। ये लोग आज भारत की कुल आबादी का मात्र 7-8 प्रतिशत ही रह गए हैं। इसलिए अगर भूमिपुत्र थ्यौरी को लागू किया जाए तो महाराष्ट्र के 92-93 प्रतिशत लोग (जिनमें ठाकरे परिवार भी शामलि है) को भी बाहरी मानकर बाहरी लोगों की तरह ही व्यवहार करना पड़ेगा। महाराष्ट्र में असली भूमिपुत्र मात्र भील और अन्य आदिवासी समुदाय ही हैं जो कि अब मात्र 7-8 प्रतिशत ही रह गए हैं। 
आज भारत कई अलगाववादी और विखण्डनशील ताकतें सक्रिय हैं। देश के तमाम राष्ट्रभक्त लोगों को इनके खिलाफ एकजुट होने की जरूरत है। और सवाल यह भी है कि हमें एक क्यों रहना चाहिए। हमें एक इसलिए भी रहना चाहिए क्योंकि सिर्फ बड़ा और प्रगतिशील मार्डन उद्योग ही भारत के लोगों की जरूरतों को पूरा करने लायक पैसा पैदा कर सकेगा। सिर्फ खेती के बल पर हम कुछ नहीं कर सकते। और बड़े उद्योग के लिए हमें बड़े बाजार की  भी जरूरत है। सिर्फ एक संयुक्त भारत ही बड़े उद्योगों के लिए बड़ा बाजार उपलब्ध करवा सकता है। सबसे उन्नत देशों से मुकाबला करने के लिए हमें गरीबी, बेरोजगार और अन्य सामाजिक बुराइयों को मिटाने और एक बड़ा स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा सिस्टम विकसित करने की जरूरत है। इसलिए मैं माफी चाहता हूं, ठाकरे जैसे व्यक्ति को मैं सम्मान नहीं दे सकता।

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