Thursday, June 19, 2008

कश्मीर में एक फ़िल्म की शूटिंग के दौरान राहुल बोस

सुहाना
मौसम और कश्मीर

नदीम अख्तर
कश्मीर में इस बार सैलानी मौसम सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। डल झील में शिकारों की मरम्मत का काम बदस्तूर जारी है और सालों से जिन हाउसबोट मालिकों ने अपनी रोज़ी के इंतज़ाम का कोई दूसरा ज़रिया ढूंढ लिया था, वे भी अब पर्यटन से होनेवाली आमदनी की ओर नज़र टिकाये बैठे हैं। कश्मीर के हालात सुधरने का ला न केवल वहां के लोगों को मिलेगा, बल्कि वर्षों से सिने जगत की नज़रों से ओझल हो चुकी घाटी की वादियां के फ़िर से रुपहले पर्दे पर नज़र आने की पूरी उम्मीद है। हाल ही में फील्म दास्तान की शूटिंग कश्मीर में पूरी की गयी, जिससे स्थानीय लोगों में आशा की किरण जगी है। पहलगाम में जब गांव के बेटे अनुपम खेर ने इस फिल्म की शूटिंग के लिए कदम रखा, तो लोग खुशी से झूम उठे। राहुल बोस, सारिका और खेर के साथ जब फिल्मकार संतोष शिवन घाटी में आये, तो यह एक तरह से नये युग की शुरुआत के जैसा ही था। एक वक्त था, जब बाहरी दृश्यों को फिल्मानें के लिए कश्मीर को निर्देशक अपनी पहली पसंद मानते थे। फिर जैसे-जैसे यहां आतंक की फैक्ट्री फली-फूली वैसे-वैसे बौलीवूड ने घाटियों से कन्नी काट ली। अब बदलते हालात के साथ ऐसा महसूस किया जाने लगा है कि बीते समय की कुछ हिट आरज़ू, आन मिलो सजना और सिलसिला जैसी फिल्मों की ही तरह नयी फिल्मों की भी शूटिंग यहां पूरी होगी। दरअसल, कश्मीर में आतंकवादियों की धमकी के कारण यहां के सिनेमा ह‚ल बंद कर दिये गये थे और कोई शूटिंग भी वर्ष 1990 से नहीं हो रही थी। 90 में आंतकी चेतावनी के बाद श्रीनगर के पल्लाडियम और सोपोर के समद टाकीज़ को बंद कर दिया गया था। इसके बाद शाह सिनेमा, खैयाम और सिराज के खुले रहने के कारण इन पर ग्रेनेड हमले हुए और अब ये सिनेमाघर सेना की निगरानी में हैं। अभी पूरे कश्मीर में केवल एक सिनेमा घर नीलम ही है, जहां शो चल रहे हैं। इसे दोबारा तब खोला गया, जब इसके मालिकों को यह आभास हुआ कि स्थिति तेज़ी से बदल रही है। 1960 से 1990 के दौरान प्रतिवर्ष तकरीबन 90 फिल्में कश्मीर में बंटी थीं, लेकिन आज 18 साल से घाटी में फिल्म निर्माण का कार्य पूरी तरह से ठप हो गया है। 18 वर्षों में दास्तान ही इकलौती फ़िल्म होगी, जो कश्मीर में बन कर तैयार होगी। दूसरी ओर कश्मीर में 1975 की बालीवुड हिट शोले का रिमेक तैयार किया गया है, जो कश्मीरी में है। नाम भी वही है - शोले। इस फ़िल्म के रिलीज़ होने के बाद ऐसा महसूस किया जा रहा है कि जल्द ही कश्मीर के पुराने दिन लौटेंगे।
वैसे पुलिस और सुरक्षा बलों को हजारों आतंकवादियों की संख्या को सैकड़ों में लाने के लिए 17 से अधिक साल का लम्बा समय लगा है, जिसके लिए लगातार संघर्ष अब भी जारी है। अब देखना होगा कि आकंतवादियों पर नकेल इसी तरह से कसी रहेगी या गर्मियों में राज्य में होने जा रहे चुनावों पर नजर टिकाये आकंतवादी अपनी हिंसक हसरतों के चलते उन्हें चुनौती देंगे। (आगे पढिये गूगल पर कश्मीरी में सर्च इंजन)

1 comment:

Udan Tashtari said...

आभार इस आलेख के लिए.