आफ़त में आधी आबादी
मोनिका गुप्ता
भारत में प्रति हज़ार पुरुष पर 927 लड़कियां
एनआरआई भी कराते है लिंग जांच
कन्या भ्रूण हत्या के रूप में हम अपनी मानसिकता के साथ सांस्कृतिक अध:पतन की सूचना संसार को दे रहे हैं। यह महापाप है। अक्सर इसके लिए स्त्रियों क्यो जिम्मेदार ठहराकर स्त्री ही स्त्री की दुश्मन है वाला जुमला उछाल दिया जाता है। सच तो यह है कि पुरुष प्रधान भारतीय समाज में सक्षम स्त्री हर फैसले के लिए पुरुष का मुंह ताकती हैं। जहां स्त्री का अपनी देह पर अधिकार नही होगा वहां कन्या भ्रूण हत्या तो होगी ही। अधिकांश मामलों में स्त्री विवश कर दी जाती है और न करने की स्थिति में उसका जीना हराम कर दिया जाता है। मरने के समय मुंह में गंगाजल डालने, मुखाग्नि देने, तर्पण करने, वंश वृद्धि और संपत्ति के उत्तराधिकार के लिए कुलदीपक अथार्त पुत्र की चाह होती है। चाहे उसके कारनामे कुल-काजल क्यों न हों। पुरुष, पुत्रजन्म को अपनी मर्दानगी से जोड़ते हैं। भारत के पांच राज्यों पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में तो स्थिति और भी बदतर होती जा रही है। इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर, कनाडा द्वारा किए गये सर्वेक्षण चौंकाने वाले है। इन राज्यों में तेजी से लड़कियों की संख्या में कमी आ रही है। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों से ज्यादा शहरी क्षेत्रों की भूमिका है। सर्वेक्षण इस बात को निरर्थक साबित करते है कि शिक्षा और विकास इसमें कमी कर सकते है। बल्कि आंकड़े तो यह बता रहे हैं कि आर्थिक और शैक्षणिक रूप से विकसित इलाकों में ऐसा ज्यादा हो रहा है। विकास चाहे जितना भी हो, लेकिन मानसिकता अब भी वही है। आज भी भारतीय समाज में लड़कियों को लेकर असुरक्षा की भावना व्याप्त है, दहेज की समस्या जो खत्म होने का नाम ही नही ले रही है। सारे घरेलु काम करने के बाद भी स्त्री परिवार का अनुत्पादक अंग ही मानी जाती है। ये कुछ ऐसे कारण हैं, जिनसे भारतीय समाज आज भी मुक्त नही हो पाया है। इन्ही कारणों से भ्रूण हत्या जैसी घटनाये तेजी से बढ़ रही है, और ऐसी घटनाओ को अंजाम दे रहे हैं देश के कुछ चुनिंदा शहर, जो अघोषित रूप से विकसित माने जाते है। दिल्ली , मुंबई, चेन्नई ऐसे शहर है जहां हाल फिलहाल में बड़ी संख्या में कन्या भ्रूण को कुएं में, कभी पुल के नीचे तो कभी झाडियों के पीछे पाए जाने की खबरें देखने सुनने को मिलती है। इसका सीधा असर भारत के लिंगानुपात में आए अंतर में देखने को मिलता है। हाल ही में पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने पटियाला के एक निजी क्लिनिक पर छापेमारी के दौरान वहां बने 30 फुट गहरे कुएं से कम से कम 50 अजन्मी लड़कियों के भ्रूण बरामद किए थे। रोंगटे खड़ी कर देने वाली इस घटना के बाद पंजाब के सभी 23 ज़िलों में भ्रूण हत्या के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया गया। लेकिन इसके बाद की स्थिति बदतर होती जा रही है। यूनीसेफ ने स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड चिल्ड्रन-2007 नाम वाली रिपोर्ट को भारत में जारी करते हुए कहा कि वर्ष 1991 के बाद कन्या भ्रूण हत्या की स्थिति और बदतर हुई है। भारत में हर रोज 71000 बच्चे पैदा होते हैं। इनमें लड़कियां सिर्फ 31000 होती हैं। लिंग जांच की घटना केवल शहरों में नही बल्कि अब गांवों में भी आसानी से उपलब्ध हो गयी है। अब से पहले जहां स्थायी अल्ट्रासाउंड सेंटर थे, वही अब गांवो में भी इसकी पहुंच बनाने के लिए मोबाईल अल्टासाउंड यूनिट चलाये जा रहे है।
बड़ी संख्या में आज लड़की न चाहने वाले दंपित्त भी इनका सहारा ले रहे हैं। दिल्ली में रहने वाली मधुमति(नाम बदला हुआ) दो बेटियों की मां बनने के बाद जब तीसरी बार गर्भवती हुई तो उसने भ्रूण परीक्षण कराया। यह पता लगने पर कि उसके भ्रूण में फिर एक कन्या पल रही है, उसने गर्भपात करा लिया। भ्रूण हत्या की यह प्रक्रिया उसने इस उम्मीद के साथ आठ बार दोहराई कि वो एक बेटे की मां बन सके। लेकिन ऐसा करने के क्रम में उसकी सेहत इतनी खराब हो गयी कि वह फिर आगे मां नही बन सकी। सामान्यत: ऐसा देखा गया है कि भारत के छोटे या पिछड़े शहरों में ही ऐसी घटनाये ज्यादा देखने को मिलती है। लेकिन हाल ही में बड़ी संख्या में एनआरआई द्वारा कन्या भ्रूण की जांच से यह बात झूठी साबित हो गयी। विदेशों में रहने वाले भारतीय भी लिंग जांच में पीछे नही है। अपने देश में परिवार वालों से मिलने के नाम पर अप्रवासी भारतीय (एनआरआई) भी लिंग जांच करवाने भारत आते रहते है। कारण विदेशों में महंगा गर्भपात नही करा सकते और साथ ही वहां ये सुविधाएं इतनी सहजता से उपलब्ध नही है। हालांकि अजन्मे शिशु के लड़का या लड़की होने की जानकारी देना कानूनन अपराध है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में हर वर्ष साढ़े सात लाख कन्याओं को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है। ऐसी ही एक कहानी मीना की है। मीना का (नाम बदला हुआ) जन्म ब्रिटेन में ही हुआ और वह एक पंजाबी मध्यम वर्गीय परिवार में पली-बढ़ी। शादी के बाद एक के बाद एक तीन बेटियां हुई। उसके ऊपर बहुत दबाव रहता कि वह बेटा पैदा करने में नाकाम रही। लड़का पैदा करने का सामाजिक दबाव भारतीय परिवेश में बहुत अधिक होता है और यह दबाव ब्रिटेन में रहने वाली भारतीय महिलाओं पर भी कम नही होता। यह दबाव हमेशा पति के परिवार वालों की ओर से ही होता है, ऐसी बात नही .जैसे ही कोई महिला गर्भवती होती है, आसपास के लोग कहने लगते है कि देखना इस बार लड़का ही होगा, हम लड़के पैदा होने पर खुशियां मनाएंगे। लेकिन अगर लड़की पैदा हो जाए तो सब निराश हो जाते है। मन मसोस कर रह जाते हैं। उसे हमेशा बेटा न पैदा करने का ताना दिया जाता। परिवार में उसके राय की अहमियत नही रह जाती और उसे उपेक्षित कर दिया जाता। जब वह चौथी बार गर्भवती हुई तो अपने पति के साथ भारत आकर लिंग जांच कराने का फ़ैसला किया यह जानने के लिए की गर्भ में लड़का है या लड़की। वह इस बात से चिंतित थी कि अगर इस बार लड़की हुई तो क्या होगा, यह परिवार के लिए बहुत ज़रूरी था और आर्थिक तौर पर भी उसका परिवार चार लड़कियों का बोझ नही उठा सकता था। तब उसने इंटरनेट पर भारत के डॉक्टरों को खोजा, दिल्ली में टेस्ट करवाने पर पता चल गया कि इस बार भी लड़की है और उसे गिराने का फैसला कर लिया।
चिकित्सा पत्रिका लांसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, जो महिलाएं पहले ही लड़की को जन्म दे चुकी हैं, वे अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल दोबारा लड़की न होने के लिए करती हैं। शोधकर्ताओं ने कहा है कि लड़कियों की भ्रूण हत्या का चलन पढ़ी लिखी महिलाओं में ज्यादा है और धर्म का भी इस पर कोई असर नही पड़ा। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भ्रूण हत्या और शिशु हत्या के चलते भारत में लिंगानुपात में असंतुलन लगातार बढ़ता जा रहा है जिसके गंभीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं। भारत में कन्या भ्रूण की हत्या में सामाजिक-आर्थिक पहलू ज्यादा ज़िम्मेदार होता है। भारत में परंपरागत रूप से लड़की को हीन समझा गया है और उसे ज़िम्मेदारी समझा गया है। कन्या भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ अभियान चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश का कहना है, `इससे अलग कोई और हिंसक गतिविधि इतनी दर्दनाक नहीं है और यह बहुत शर्मनाक भी है। महिलाओं के विकास और सशक्तिकरण के तमाम सरकारी गैर सरकारी दावों और प्रयासों के बावजूद पुरूषों की तुलना में महिलाओं की संख्या में और कमी आ रही है। जन सान्खिक्य आयोग की हाल में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार अगले कुछ वर्षो में प्रति हज़ार पुरूषों की तुलना में महिलाओं की सं`या में और गिरावट आएगी। सेंटर फार सोशल रिसर्च की निदेशक एवं कन्या भ्रूण हत्या पर नियंत्रण के लिए सरकार द्वारा गठित प्री कनसेप्शन एंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्नीकल पैनल की सदस्य रंजना कुमार ने कहा कि यह आंकड़े इस धारणा को गलत ठहराते हैं कि शिक्षा और विकास से महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में बदलाव आता है। कन्या भ्रूण हत्या के पीछे रूढ़िवादी सामाजिक कारणों के साथ साथ तकनीकी सुविधाएं भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। अल्ट्रासाउंड जैसी तकनीकें में गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए विकसित की गई थी लेकिन अपने देश में इसका प्रयोग धड़ल्ले से लिंग निर्धारण के लिए किया जाने लगा। ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस तकनीक के फैलाव से भ्रूण हत्याओं के आंकड़ों में तेजी से इज़ाफ़ा हुआ। लड़कियों के प्रति इस नकारात्मक स्वाभाव के गंभीर सामाजिक और अन्य प्रभाव हो सकते है। बार-बार गर्भपात से औरतों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। गैर-सरकारी संगठनों ने महिला उत्थान अध्ययन केंद्र और सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च ने एक संयुक्त प्रकाशन में चेतावनी दी है कि यदि महिलाओं की संख्या ऐसे ही घटती रही तो महिलाओं पर हमले होंगे, उसे ज़बरदस्ती एक से अधिक पुरूषों की पत्नी बनने पर मजबूर भी किया जा सकता है। अरब जातियों में लड़कियों को जिंदा दफ़न करने की प्रथा असभ्य काल में प्रचलित थी लेकिन भारत में कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा उन क्षेत्रों में बढ़ी हैं जहां शिक्षा, खासकर महिलाओं की शिक्षा काफी उच्च दर पर है और लोगों का आर्थिक स्तर भी अच्छा है। महिला उत्थान के लिए काम करने वाली ग़ैर सरकारी संगठन ´जागूरी´ की अध्यक्षा कल्याणी मेनन सेन का कहना है, स्त्री जिस शिक्षा के लिए महिला आंदोलन चलाए गए, वही शिक्षा आज जहां पहुंची है वहां महिलाओं की संख्या घट रही है। महिला शिक्षा अपने आप में महिला उत्थान का कारण नही बन सकती बल्कि यह शिक्षा के साथ उच्च स्तर की विकासवादी मानसिकता के साथ ही सम्भव है।
बेटे की चाहत ने बिगाड़ दिया अनुपात
बड़ी संख्या में आज लड़की न चाहने वाले दंपित्त भी इनका सहारा ले रहे हैं। दिल्ली में रहने वाली मधुमति(नाम बदला हुआ) दो बेटियों की मां बनने के बाद जब तीसरी बार गर्भवती हुई तो उसने भ्रूण परीक्षण कराया। यह पता लगने पर कि उसके भ्रूण में फिर एक कन्या पल रही है, उसने गर्भपात करा लिया। भ्रूण हत्या की यह प्रक्रिया उसने इस उम्मीद के साथ आठ बार दोहराई कि वो एक बेटे की मां बन सके। लेकिन ऐसा करने के क्रम में उसकी सेहत इतनी खराब हो गयी कि वह फिर आगे मां नही बन सकी। सामान्यत: ऐसा देखा गया है कि भारत के छोटे या पिछड़े शहरों में ही ऐसी घटनाये ज्यादा देखने को मिलती है। लेकिन हाल ही में बड़ी संख्या में एनआरआई द्वारा कन्या भ्रूण की जांच से यह बात झूठी साबित हो गयी। विदेशों में रहने वाले भारतीय भी लिंग जांच में पीछे नही है। अपने देश में परिवार वालों से मिलने के नाम पर अप्रवासी भारतीय (एनआरआई) भी लिंग जांच करवाने भारत आते रहते है। कारण विदेशों में महंगा गर्भपात नही करा सकते और साथ ही वहां ये सुविधाएं इतनी सहजता से उपलब्ध नही है। हालांकि अजन्मे शिशु के लड़का या लड़की होने की जानकारी देना कानूनन अपराध है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में हर वर्ष साढ़े सात लाख कन्याओं को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है। ऐसी ही एक कहानी मीना की है। मीना का (नाम बदला हुआ) जन्म ब्रिटेन में ही हुआ और वह एक पंजाबी मध्यम वर्गीय परिवार में पली-बढ़ी। शादी के बाद एक के बाद एक तीन बेटियां हुई। उसके ऊपर बहुत दबाव रहता कि वह बेटा पैदा करने में नाकाम रही। लड़का पैदा करने का सामाजिक दबाव भारतीय परिवेश में बहुत अधिक होता है और यह दबाव ब्रिटेन में रहने वाली भारतीय महिलाओं पर भी कम नही होता। यह दबाव हमेशा पति के परिवार वालों की ओर से ही होता है, ऐसी बात नही .जैसे ही कोई महिला गर्भवती होती है, आसपास के लोग कहने लगते है कि देखना इस बार लड़का ही होगा, हम लड़के पैदा होने पर खुशियां मनाएंगे। लेकिन अगर लड़की पैदा हो जाए तो सब निराश हो जाते है। मन मसोस कर रह जाते हैं। उसे हमेशा बेटा न पैदा करने का ताना दिया जाता। परिवार में उसके राय की अहमियत नही रह जाती और उसे उपेक्षित कर दिया जाता। जब वह चौथी बार गर्भवती हुई तो अपने पति के साथ भारत आकर लिंग जांच कराने का फ़ैसला किया यह जानने के लिए की गर्भ में लड़का है या लड़की। वह इस बात से चिंतित थी कि अगर इस बार लड़की हुई तो क्या होगा, यह परिवार के लिए बहुत ज़रूरी था और आर्थिक तौर पर भी उसका परिवार चार लड़कियों का बोझ नही उठा सकता था। तब उसने इंटरनेट पर भारत के डॉक्टरों को खोजा, दिल्ली में टेस्ट करवाने पर पता चल गया कि इस बार भी लड़की है और उसे गिराने का फैसला कर लिया।
चिकित्सा पत्रिका लांसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, जो महिलाएं पहले ही लड़की को जन्म दे चुकी हैं, वे अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल दोबारा लड़की न होने के लिए करती हैं। शोधकर्ताओं ने कहा है कि लड़कियों की भ्रूण हत्या का चलन पढ़ी लिखी महिलाओं में ज्यादा है और धर्म का भी इस पर कोई असर नही पड़ा। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भ्रूण हत्या और शिशु हत्या के चलते भारत में लिंगानुपात में असंतुलन लगातार बढ़ता जा रहा है जिसके गंभीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं। भारत में कन्या भ्रूण की हत्या में सामाजिक-आर्थिक पहलू ज्यादा ज़िम्मेदार होता है। भारत में परंपरागत रूप से लड़की को हीन समझा गया है और उसे ज़िम्मेदारी समझा गया है। कन्या भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ अभियान चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश का कहना है, `इससे अलग कोई और हिंसक गतिविधि इतनी दर्दनाक नहीं है और यह बहुत शर्मनाक भी है। महिलाओं के विकास और सशक्तिकरण के तमाम सरकारी गैर सरकारी दावों और प्रयासों के बावजूद पुरूषों की तुलना में महिलाओं की संख्या में और कमी आ रही है। जन सान्खिक्य आयोग की हाल में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार अगले कुछ वर्षो में प्रति हज़ार पुरूषों की तुलना में महिलाओं की सं`या में और गिरावट आएगी। सेंटर फार सोशल रिसर्च की निदेशक एवं कन्या भ्रूण हत्या पर नियंत्रण के लिए सरकार द्वारा गठित प्री कनसेप्शन एंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्नीकल पैनल की सदस्य रंजना कुमार ने कहा कि यह आंकड़े इस धारणा को गलत ठहराते हैं कि शिक्षा और विकास से महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में बदलाव आता है। कन्या भ्रूण हत्या के पीछे रूढ़िवादी सामाजिक कारणों के साथ साथ तकनीकी सुविधाएं भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। अल्ट्रासाउंड जैसी तकनीकें में गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए विकसित की गई थी लेकिन अपने देश में इसका प्रयोग धड़ल्ले से लिंग निर्धारण के लिए किया जाने लगा। ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस तकनीक के फैलाव से भ्रूण हत्याओं के आंकड़ों में तेजी से इज़ाफ़ा हुआ। लड़कियों के प्रति इस नकारात्मक स्वाभाव के गंभीर सामाजिक और अन्य प्रभाव हो सकते है। बार-बार गर्भपात से औरतों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। गैर-सरकारी संगठनों ने महिला उत्थान अध्ययन केंद्र और सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च ने एक संयुक्त प्रकाशन में चेतावनी दी है कि यदि महिलाओं की संख्या ऐसे ही घटती रही तो महिलाओं पर हमले होंगे, उसे ज़बरदस्ती एक से अधिक पुरूषों की पत्नी बनने पर मजबूर भी किया जा सकता है। अरब जातियों में लड़कियों को जिंदा दफ़न करने की प्रथा असभ्य काल में प्रचलित थी लेकिन भारत में कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा उन क्षेत्रों में बढ़ी हैं जहां शिक्षा, खासकर महिलाओं की शिक्षा काफी उच्च दर पर है और लोगों का आर्थिक स्तर भी अच्छा है। महिला उत्थान के लिए काम करने वाली ग़ैर सरकारी संगठन ´जागूरी´ की अध्यक्षा कल्याणी मेनन सेन का कहना है, स्त्री जिस शिक्षा के लिए महिला आंदोलन चलाए गए, वही शिक्षा आज जहां पहुंची है वहां महिलाओं की संख्या घट रही है। महिला शिक्षा अपने आप में महिला उत्थान का कारण नही बन सकती बल्कि यह शिक्षा के साथ उच्च स्तर की विकासवादी मानसिकता के साथ ही सम्भव है।
बेटे की चाहत ने बिगाड़ दिया अनुपात
भारत के जन संख्या आयुक्त और महापंजीयक जेके भाटिया का कहना है कि 1981 में लड़कियों की सं`या 1000 लड़कों के मुकाबले में 960 थी जो अब गिरकर 927 पर आ गई है। पंजाब में स्थिति तो और भी बदतर है। पंजाब के जाट सिक्खों में प्रति हज़ार पुरुषों में मात्र 527 लड़कियां ही रह गयी है। इसलिए अधिकतर पंजाबी लड़कों को अपनी बिरादरी में लड़की नही मिलती और शादी के लिए उन्हें दक्षिण भारत की ओर रुख करना पड़ता है। ऐसा इसलिए भी इन राज्यों में एक संतान की संस्कृति तेजी से फैल रही है और अधिकतर लोग इसमें पुत्र को ही प्राथमिकता देते है। भाटिया के शब्दों में `पंजाब के हाथ खून से रंगे है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रगतिशील और समृद्ध राज्यों में कन्या भ्रूण हत्या के मामलों को शर्मनाक बताते हुए इस कुप्रथा को देश के सामाजिक उत्थान की राह में बाधक बताया है। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पंजाब की जनता से अपील की है कि कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए एक सामाजिक अभियान चलाएं। उन्होंने पंजाब की मेडिकल बिरादरी से अपील की कि वे इस मामले को बहुत गंभीरता से लें और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रयास करें। मध्य प्रदेश के मोरीना में लड़कियों की संख्या 815, राजस्थान के धौलपुर में 859, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में 789 और हरियाणा के रोहताक में 780 तक पहुंच गयी है। आंकड़े यह भी बताते है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में भ्रूण हत्या से संबंधित घटनाये ज्यादा देखने को मिलती है। जहां मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में अवांछित गर्भपात का प्रतिशत 11.7 और वांछित गर्भपात 4 प्रतिशत है, वही शहरी क्षेत्रों में यह क्रमशः 24 और 14.9 प्रतिशत है। राजस्थान का धौलपुर भी इस दौड़ में पीछे नहीं है। शहरी क्षेत्रों में यह 15.9 और 8.6 प्रतिशत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि बालिकाओं और महिलाओं को नज़रअंदाज़ करके कोई विकास नहीं हो सकता। विज्ञान और टेक्नोलोजी में प्रगति का प्रयोग इंसानियत की भलाई के लिए होना चाहिए न कि उसे अजन्मी कन्याओं की हत्या के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
3 comments:
yah samasya sach-much gambheer hai. main bharat sarkar se maang kartaa hoon ki ling jaanch karate hue pakde jaane wale dampati ke liye umrkaid ka pravdhaan ho
monika,
your artical is good. try to write for slum peoples and banjaras.
chatterjee
Your name in very beautiful, but not your view. Please study some good books
R.Mani
Journalist
Patna.
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