Monday, June 23, 2008

एक बेतुकी कविता

मैं और मेरा दोस्त

वह सूखा वृक्ष

धरती की छाती पर ऐसे खड़े हैं

जैसे

बेहद भद्र और सभ्य लोगों के बीच

कोई भदेस गाली

रंजीत

3 comments:

Anonymous said...

kavita betuki hai par rachana bhut sundar.likhate rhe.

राजीव रंजन प्रसाद said...

अनूठा बिम्ब है, अच्छी रचना..


***राजीव रंजन प्रसाद

Udan Tashtari said...

इतनी गहरी-फिर बेतुकी क्यूँ कह रहे हैं?