Saturday, September 20, 2008

zindagi ज़िन्दगी

की-बोर्ड पर रुकी हुई अंगुलियाँ और विचारशून्य मन, लिखना तो चाहता था पर शब्द नहीं थे....मॉनिटर को ऑफ़ किया और निकल पड़ा सड़क पर......काफी दूर....तभी अचानक घड़ी का इशारा और रिक्शे से घर वापिस.....
रिक्शा धीरे धीरे चल रहा था बिना हड़बड़ी के, रिक्शे वाला कोई चालीस का रहा होगा
"भइया ज़रा तेज़ी से" मैंने कहा
ज़ोर तो बढ़ा पर रिक्शा उसी गति से बढ़ता रहा .....और घड़ी दुगनी तेज़ी से
"यार ज़रा तेज़ चला लो"
"जी" पर नतीजा वही ढाक के तीन पात
"यार..."झल्लाने का कोई फायदा नहीं था "कहाँ के हो भाई?"
"बिहार" जवाब आया और थोड़ा संकोच भी।
"बिहार में कहाँ से?" टाइम पास ही करना था।
"जी, अररिया"
"अरे वहां तो बाढ़ आई हुई है ना?"
कल न्यूज़ में देखा था कुछ।रिक्शा अभी भी धीमे ही चल रहा था।"उधर तो हर साल ही बाढ़ आती है?"
रिक्शा रुक गया, रिक्शेवाले ने अपने गमछे से पसीना पोछा और आंखें भी,
फिर उसी गति से चल पड़ा।
"कुछ बोलो यार?" एक तो इतने धीमे चलता रिक्शा ऊपर से ये चुप्पी मेरे लिए नाकाबिले बर्दाश्त थी।
रिक्शेवाले ने पलट कर देखा,"क्या बोलें भइया?"
"अरे मैं तुम्हारे गाँव की बात कर रहा हूँ भाई"
"हमारा गाँव तो पूरा पानी हो गया अब कुछ कहाँ है"
"और घरवाले"मैंने पहली बार ध्यान से देखा रिक्शेवाला पसीना नहीं आंसू पोछ रहा था।
"कुछ पता नहीं? मेरा दो बच्चा और घरवाली का कोई पता नहीं है साहब?"
"पर फ़ोन- वोन?" "परसों किए थे पर अब तो उ बूथ भी बह गया जहाँ फ़ोन करते थे?भतीजा फ़ोन किया था आज,कहा कोई ख़बर नहीं है किसी का" अब तो वो ज़ोर से रो रहा था।
"तो गाँव क्यूँ नहीं चले जाते?"
"क्या फायदा साहब,हम का कर लेंगे वहां जाके, उससे तो यहीं कुछ कमा लेंगे तो शायद आगे काम देगा।"
इसके आगे मैं सुन नहीं पाया, मेरे अन्दर कुछ बज रहा था नहीं मेरा सेलफोन बज रहा था।घर से .....
पापा ने फोन पर बताया कि गाँव वाला घर डूब गया है और चाचा का पूरा परिवार किसी तरह हमारे घर आ पहुँचा है..........फ़ोन सुनने के बाद देखा तो रिक्शेवाला पेडील पर ज़ोर लगा रहा था, मैंने कहा "कोई बात नहीं भइया आराम से चलाओ कोई ज़ल्दी नहीं है।" सेलफोन पर एक मेसेज आया था
"जब भी मैं ज़िन्दगी से मांगता हूँ
थोडी सी छत
वो मुझसे मेरा पूरा आसमान चुरा ले जाती है "

3 comments:

Asha Joglekar said...

सब कुछ बहुत दुख:द है भईया । जिंदगी ऐसी ही है ।

Udan Tashtari said...

मार्मिक!!

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

पावस!ऊपर वाला यदि कोई है,तो वो क्या करता है,उसकी मंशा क्या है,अपनी समझ से कतई बाहर है!!अगर ये आदमी के ख़ुद के कर्मों की सज़ा है,तो भी ये सज़ा तो उनको ना मिलनी चाहिए,जो प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते हैं,ना की जो धरती-पुत्र हैं !!क्या हो रागा है,क्यूँ हो रहा है ?सो राम जाने !!