जमशेदपुर में काम कर रहे युवा पत्रकार अमितेश ने बदलती रांची का मिजाज़ जानने के लिए एक सर्वेक्षण किया है. ख़ास रांचीहल्ला के लिए किए गए इस सर्वेक्षण के कुछ महत्वपूर्ण अंश ख़बर के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है. काफी दिलचस्प बातें हैं, पढ़ कर रांची की नब्ज़ टटोलने की कोशिश करें...
- उभरती राँची के नये रंग को दूर से ही सलाम
- रांची को नकारने की बनती जा रही हैं कई वजहें
- किसी को आम दिन होनेवाली बंद खल रही तो किसी को बाहरी-भीतरी की भावना
- 77 फीसदी ल़डकियों का मानना है कि विक्रम या टेंपो चालक नहीं सुधरेंगे
- मस्ती के लिए सिद्धू-कान्हू पार्क मस्त पर परिवारवालों के लिए जाना त्रस्त
- सर्वेक्षण के अनुसार बिजली विभाग है सबसे भ्रष्ट
- लड़के-ल़डकियों का बिंदासपन रांची को पुरानी रांची से दूर कर रहा है
रांची प्रिय है, पर पुरानी रांची। आज की बदलती-भागती रांची और नये रंगरूप में ढलते रांचीवासी पसंद नहीं आ रहे। आखिर उभरती रांची के नये रंग को दूर से सलाम क्यों किया जा रहा है? रांची को अपनी जान कहने वाले युवा ही आखिर रांची को क्यों नापसंद करने लगे हैं? रांची के युवाओं को रांची प्रिय है लेकिन रांचीवासी, रांची की संस्कृति और रांची के आकषर्ण केंद्र क्यों नहीं आ रहे पसंद? एक सर्वेक्षण में शामिल किये गये युवाओं के सामने यह सवाल प्रमुखता से उठाया गया।
इसमें 96 फीसदी ने रांची के प्रति अपने प्यार का इजहार किया। हममें से कई ने कहा कि रांची बहुत ज्यादा पंसद है लेकिन ब़डी संख्या में खासकर युवाओं ने माना कि रांची कुछ हद तक पंसद है। 38 फीसदी युवाओं का मानना है कि आम दिन होने वाले बंद, ब़ढते अपराध और प्रशासनिक विफलता के कारण उन्हें रांची पसंद नहीं आ रही है। 11 फीसदी युवाओं ने माना कि रांची अमीरों और भ्रष्टाचारियों की शहर बनता जा रहा है और यहां मध्यम वर्ग और गरीबों के लिए कोई जगह नहीं। 13 फीसदी युवाओं को मानना है कि शहरी आधारभूत संरचना विशेषकर यातायात व्यवस्था बेहाल है। जब कि 10 फीसदी युवाओं ने माना कि यहां बाहरी-भीतरी की भावना घर कर गयी है। जाहिर है यह अवधारणा बदलनी चाहिए। और उम्मीद है कि ये रांची है मेरी जान, लेकिन... सर्वे से निकलती सही जानकारी विशेषज्ञ और रांची में चाहत रखने वाले लोगों को रांची की तस्वीर बदलने में कारगर साबित होगी। किसी को रांची की यातायात व्यवस्था खलती है तो किसी को रांची की गंदगी कचोटती है। जैसा कि एक प्रश्न के जवाब में 61 फीसदी युवाओं ने यातायात व्यवस्था के कारण रांची का दिल कहे जाने वाले स्थानों- अलबर्ट एक्का चौक/बिरसा चौक मेन रोड/रातू रोड को रांची का सबसे वाहियात जगह माना। वहीं इस प्रश्न के जवाब में 31 फीसदी युवाओं ने माना कि हिंदपी़डी और अप्पर बाजार गंदगी के मामले में रांची की सबसे बुरी जगह है। रांची को पसंद न करने के कुछ तो एकाध कारण रहे ही होंगे, लेकिन नये रास्ते की ओर ब़ढते हुए रांची के साथ न चाहने के कुछ और कारण भी जु़ड गये हैं। गौर करने वाली बात है कि जब एक सवाल में हमने पूछा कि रांची का कौन सा विभाग या जगह या वर्ग कभी नहीं सुधरने वाला तो लगभग 44 फीसदी युवाओं ने माना कि टेंपों या रिक्शा चालक कभी नहीं सुधरने वाले। इसमें 77 फीसदी ल़डकियां शामिल हैं। 20 फीसदी युवाओं ने माना कि रिम्स कभी नहीं सुधरने वाला, जब कि 15 फीसदी लोगों का मानना है कि रांची नगर निगम कभी नहीं सुधरने वाला है। 10 फीसदी युवाओं ने माना कि छात्रों के हित की बात करने वाला रांची विश्वविद्यालय कभी नहीं सुधरने वाला। रांची में ब़ढती गाड़ियों की संख्या, ट्रैफिक सिस्टम और उसके मैनेजमेंट पर सभी उंगली उठाते हैं परंतु जब युवाओं से ड्राइविंग की बेहाल व्यवस्था के बारे में पूछा गया तो लगभग 39 फीसदी युवाओं ने अप्पर बाजार में गा़डी चालन पर अपने हाथ ख़डे कर लिये। जब कि 37 फीसदी युवाओं ने माना कि मेनरोड पर गा़डी चलाना बिल्कुल दूभर है। सर्वेक्षण में शहर के भ्रष्टतम विभाग को उभारने का प्रयास किया गया और युवाओं ने इस सवाल के जवाब में भी अपनी बेबाक राय दी। 40 फीसदी युवाओं को मानना है कि बिजली विभाग सबसे भ्रष्ट है, जबकि 37 फीसदी लोग पुलिसिया रवैये से परेशान हो पुलिस विभाग को भ्रष्टतम विभाग मानते हैं। अपनी कथनी और करनी से बदनाम रांची नगर निगम को लगभग 13 फीसदी लोग भ्रष्ट विभाग की श्रेणी में लाते हैं। रांची को पसंद करने के कई कारण हो सकते हैं, आखिर यह झारखंड की राजधानी है। स्टाइर्ल, स्पीड और बिंदासपन रांची की पहचान बन चुकी है। परंतु जब युवाओं से परिवार के साथ न जा पानेवाली पंसदीदा जगहों के बारे में पूछा गया तो कुछ विरोधाभास सामने आए। दोस्तों या महिला मित्रों के साथ जाने वाला युवा अपने परिवार के साथ सिद्धू-कान्हू पार्क नहीं जाना चाहता। युवाओं का मानना है कि बदलती रांची का असली चेहरा वहीं दिखता है। लगभग 62 फीसदी युवाओं का मानना है कि सिद्धू-कान्हू पार्क परिवार के साथ नहीं iजाया जा सकता। अपनी शालीनता और प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए जाना जाने वाला रांची आज अपना आकषर्ण खोता नजर आता है। १३ फीसदी लोगों का मानना है कि डियर पार्क और लगभग 12 फीसदी युवा मानते है कि अब रांची के आसपास के पयर्टन स्थल परिवार के साथ जाने लायक नहीं रहे। सर्वेक्षण के दौरान लगभग सभी ने कहा कि रांची बदल रही है और रांची का पुराना मिजाज अब नहीं रहा। जब हमनें लोगों से पूछा कि की बनती नयी पहचान क्या है जो रांची को पुरानी रांची से दूर कर रही है, तो लगभग 35 फीसदी युवाओं का मानना था - ल़डके-ल़डकियों का बिंदासपन। 33 फीसदी युवाओं ने वामपंथी अंदाज में कहा कि रांची भ्रष्टाचारी और पैसे के पीछे भागने वाला शहर बनता जा रहा है। वहीं 20 फीसदी ने कहा कि कंक्रीट में तब्दील होना और गाड़ियों की ठेलमठेल रांची को पुरानी रांची से दूर कर रही है। रांची पर जान छि़डकने और आकर बसने के कई ऐसे कारण एवं केंद्र थे जिनसे रांची की पहचान बनती थी। परंतु उनकी साख या हालत आज गिरती जा रही है। जब युवाओं से इस सन्दर्भ में पूछा गया तो 35 फीसदी का मानना था कि पयर्टन स्थल और सांस्कृतिक केंद्रों की साख गिरती जा रही है। जबकि लगभग २७ फीसदी लोगों का मानना था कि एचइसी प्लांट और उसकी आवासीय कालोनी तथा रिम्स की साख पर बट्टा लग चुका है।
सवाल 1 - क्या आपको रांची प्रिय है?
1. नहीं - 1.67 फीसदी
2. कुछ हद तक - 63.33 फीसदी
3. उदासीन - 1.६७ फीसदी
4. बहुत ज्यादा - 33.34 फीसदी
सवाल 2 - मुझे रांची बिल्कुल पंसद नहीं आ रही, क्योंकि ...
1. यहां बाहरी- भीतरी का भावना घर कर गयी है - 10 फीसदी
2. रांचीवासी एक-दूसरे और शहर की परवाह नहीं करते - 5 फीसदी
3 रांचीवासी उत्साही और खुशमिजाज नहीं - 1.6 फीसदी
4. मनोरजंन के बढ़िया साधन नहीं - 6.67 फीसदी
5. विभिन्न तरह के खाने-पीने की कमी और मौजमस्ती से परहेज करने वाले लोग है यहां - 3.३४ फीसदी
6. यहां के लोग खुले, उदार और सहिष्णु विचार वाले नहीं - 3.34 फीसदी
7. संस्कृति और परंपरा के सवांहक नहीं है रांचीवासी - 1.67 फीसदी
8. अमीरों और भ्रष्टाचारियों की शहर बनता जा रहा है, मध्यम वर्ग और oगरीबों के लिए जगह नहीं - 13.33 फीसदी
9. पढ़ाई-लिखाई का उत्तम केंद्र परंतु ठगों की भरमार है - 3.34 फीसदी
10. शहरी आधारभूत संसाधन विशेषकर यातायात व्यवस्था बेहाल - 11.67 फीसदी
11. आम दिन होने वाले बंद, ब़ढते अपराध और प्रशासनिक विफलता-38.34 फीसदी
सवाल 3 - रांची की सबसे बुरी जगह (गंदगी, जाम, क्राइम, बिजली व्यवस्था , सडक आदि के मामले में)
1. बिरसा चौक / अलबर्ट एक्का चौक/ सुजाता सिनेमा के नजदीक / कांटा टोली चौक / मेन रोड /रातू रोड - यातायात व्यवस्था के कारण - 61.67 फीसदी
2. अप्पर बाजार / स्टेशन रोड / हिंदपी़डी - गंदगी के कारण - 31.67 फीसदी
3. जगन्नाथपुर / धुर्वा / हटिया / कांके - खराब बिजली व्यवस्था के कारण - 6.67 फीसदी
4. धुर्वा, कोकर - सुरक्षा के मामले में - शेष
सवाल 4- रांची की कौन सा विभाग/ जगह/ वर्ग कभी नहीं सुधरने वाली?
1. आरएमसीएच - 20 फीसदी
2. कांटाटोली चौक- 10 फीसदी
3. रांची विश्वविद्यालय - 10 फीसदी
4. सदर अस्पताल - 1.67 फीसदी
5. टेंपों / रिक्शा चालक - 43.34 फीसदी
6. रांची नगरनिगम - 15 फीसदी
सवाल 5 - स़डकें जहां ड्राइविंग करना बिल्कुल बेहाल है?
1. मेन रोड - 36.67 फीसदी
2. कांटा टोली चौक - 6.67 फीसदी
3. रातू रोड - 13.33 फीसदी
4 अप्पर बाजार - 38.34 फीसदी
5. बिरसा चौक - 5 फीसदी
सवाल 6 - सबसे भ्रष्ट विभाग
1. अंचल कार्यालय - 3.34 फीसदी
2. रजिस्ट्री ऑफिस - 1.67 फीसदी
3. रांची नगर निगम - 13.34 फीसदी
4. डीटीओ - 5 फीसदी
5. बिजली विभाग - 40 फीसदी
6. पुलिस - 36.67 फीसदी
सवाल 7- रांची के यातायात व्यवस्था में सबसे ख़राब साधन
1. विक्रम टेंपो - 53.34 फीसदी
2. रिक्शा - 15 फीसदी
3. बस - 13 फीसदी
4. छोटी - 18.67 फीसदी
सवाल 8 - नहीं चाहकर भी परिवार के साथ न जाने वाली रांची की पसंदीदा जगह
1 सिद्धू-कान्हू पार्क - 61.67 फीसदी
2. डियर पार्क - 13.३४ फीसदी
3. बिरसा जैविक उद्यान व ढाबा - 10 फीसदी
4. बिरसा बस स्टैंड - 3.34 फीसदी
5. रांची के आस-पास की पयर्टन स्थल - 11.67 फीसदी
सवाल 9 - रांची की पसंदीदा केंद्र जिसकी हालत या शाख गिरती जा रही है
1 रिम्स - 26.67 फीसदी
2 जिला स्कूल, संत जेवियसर् कॉलेज, बीआइटी, विकास विद्यालय - 11.67 फीसदी
3. एचइसी प्लांट एवं आवासीय कोलोनी - 26.67 फीसदी
4. पयर्टन स्थल एवं सांस्कृतिक केंद्र - 35 फीसदी
सवाल 10 - रांची की बनाती नयी पहचान जो रांची को पुरानी रांची से दूर कर रही है?
1. ल़डके-ल़डकियों का बिंदासपन - 35 फीसदी
2. कंक्रीट में तब्दील होता शहर और गाड़ियों की ठेलमठेल - 20 फीसदी
3. संवेदनहीन होती रांची ; आपसी प्रेम और स्नेह की कमी - 11.67 फीसदी
4. भ्रष्टाचारी शहर और पैसे के पीछे भागने वाला शहर - 33.34 फीसदी
सर्वेक्षण का तरीका - सर्वेक्षण 18 से 35 वर्ष के युवा शहरी रांचीवासियों के बीच किया गया। रांची के चुने गये कॉलेज छात्रों को एक तैयार प्रश्नावली दी गयी। जवाब देने वालों में 49 फीसदी ल़डकियां थी।
सर्वेक्षण में उभरकर आए तथ्य
1.रांची की यातायात व्यवस्था से सभी परेशान हैं। इससे जल्द निजात पाना चाहते हैं। परंतु उपाय सुझाने के मामले में सभी मौन हैं.
2.आम दिन होने वाले बंद, ब़ढते अपराध और प्रशासनिक विफलता से लोगों में रोष ब़ढता जा रहा है।
3. कौन सा वर्ग/विभाग/जगह या यातायात व्यवस्था में सबसे बुरा साधन है, के जवाब में टेंपो चालक या विक्रम ऑटो नाम आया। लगभग 43 फीसदी ने माना कि टेंपो चालक कभी नहीं सुधरने वाले। हो सकता है युवाओं में विशेषकर छात्रों को इन्हीं से पाला प़डता हो। परंतु सबसे ध्यान देने वाली बात है कि इस प्रश्न के जवाब में लगभग 77 फीसदी ल़डकियां साथ ख़डी है। प्रशासन और परिवारवालों को सोचना होगा आखिर क्या कारण है कि ल़डकियां टेंपो या विक्रम की सवारी को बद से बदतर मान रही हैं।
4.सिद्धू-कान्हू पार्क में ल़डके-ल़डकियों की भी़ड ब़ढती जा रही है परंतु परिवारवालों के साथ वो इस सावर्जनिक जगह पर नहीं आना चाहते। शायद, शालीनता की हद पार करने के लिए यह जगह उन्हें अनुकुल लगे लेकिन सनद रहे की विरोधाभास उत्पन्न कर रहे हैं। आप खुद इस मजर् की दवा हैं। आप करें और भुगते रांची...
5.एक सवाल के जवाब में युवाओं ने अपनी बिंदासपन की बात स्वयं स्वीकार की है। उनका मानना है यही रांची को पुरानी की से दूर कर रहा है। ज्यादातर का मानना था कि समय के अनुरूप रांची को भी बदलना होगा बदल भी रही है। परंतु उन्होंने पुरानी चीजों को साथ लेकर चलने और नये-पुराने के बीच संतुलन बनाये रखने पर विश्वास भी जताया।
7 comments:
अमितेश जी आपकी मेहनत की दाद देता हूँ, लाजवाब काम कर रहे हैं आप. रांची वैसे जहाँ तक मैं समझता हूँ की आज भी देश के कई शहरों से अच्छा शहर है. खैर ये तो बात सही है कि रांची की सूरत बदल रही है... कीप इट अप
मैं योगेश भाई की बातों से सहमत हूँ. लेकिन मुझे एक बात कहना है अमितेश जी कि क्या आपने एक ही इलाके के लोगों में सर्वेक्षण किया है. इसका दायरा कितना बड़ा था. ऐसे सर्वेक्षण से तब तक सही सही बातें निकल कर सामने नहीं आतीं जब तक कम से कम 1000 लोगों को इसमे शामिल न किया गया हो. वैसे आपके सर्वेक्षण में रियलिटी के काफ़ी करीब रिजल्ट आए हैं. आपको बधाई अमितेश...
काफी मेहनत की है आपने ..बधाई स्वीकारें
सब आपको मेहनत के लिए बधाई दे रहे हैं तो हम काहे पीछे रहें-बधाई हो!!
भाई मेरे उपाय तो बहुतेरे हैं,दरअसल कुछ मूलभूत चीजों के उपाय तो वही होते हैं जो सभी जगहों पर लागू भी हैं,बस कि उन्हें लागू करने वाला चाहिए!!अक्सर कानून को लागू करने के लिए हर हाल में कठोर होना ही पड़ता है,जनता सहयोग करे तो ठीक वरना कानून का कोडा है ही!!माटी से कुछ बनाने के लिए उसे चाक पर धर कर पीटना ही पड़ता है,मगर उसे पीटना हरगिज नहीं कहते !!उपाय की बाबत बरसों पहले मैंने आलेख लिखकर सारे स्थानीय अखबारों में दिया था,मगर एक आम आदमी की भला अखबार भी क्यों सुने ??वहां तो बड़े नामी-गिरामी लोग बैठे हुए जो होते हैं !!
Excellent Survey was carried out..... This will motivate to do much better than what at present Ranchi is....
Keep it up.
Bimlesh Kumar
Delhi
बदलाव प्रकृति का नियम है। पर वह सकारात्मक हो तो अच्छा लगता ही है।
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