Saturday, October 4, 2008

हरदा-बो का घिनौना खेल

रंजीत
बच्चे जहां रहे वहीं खेल ढूंढ़ लेते हैं; जिन चीजों के साथ रहे उन्हीं से खेलने लगते हैं। शायद इसलिए किसी कवि ने लिखा है- जहां बूढ़ों का संग वहां खर्चे का तंग/ जहां बच्चों का संग वहां बाजे मृदंग। मेरे गांव के उच्च-मध्य विद्यालय के बिल्कुल नजदीक से कोशी नदी की एक मृत धारा बहती थी। इसे न तो आप नदी कह सकते हैं और न ही नाला। बस इसे एक पुरानी नदी का अवशेष मात्र कह लीजिए। जब कोशी ने 1938-40 में अपना प्रवाह बदला, तो यह धारा सूख गयी। लेकिन इसमें बारहों महीने पानी बहते रहता था। कभी कम कभी ज्यादा। लेकिन कुसहा में बांध टूटने के बाद एक बार फिर यह धारा नदी जैसी शक्ल अख्तियार कर चुकी है। उन दिनों विद्यालय से छुट्टी मिलते ही हमलोग इस धारा में नगं-धड़ंग होकर कूद पड़ते थे और हरदा-बो (एक देसी जल-खेल) का खेल खेलने लगते थे। यह हरदा-बो बड़ा मजेदार खेल था, अच्छे घरों के बच्चे अब यह खेल नहीं खेलते; हां, कहीं-कहीं किसी सुदूर-पिछड़े गांवों में अभी भी यह खेल जिंदा है।
हरदा-बो में एक खिलाड़ी चोर होता था बांकी सभी खिलाड़ी सिपाही होते थे।वैसे हर कोई इस खेल में हमेशा सिपाही ही बना रहना चाहता था। जो चोर बन जाता उसकी तो समझिए शामत आ जातीथी। चोर को पानी के बाहर सिर निकालने की इजाजत नहीं होती। जैसे ही वह पानी के बाहर सिर निकालता, सिपाहियों के झुंड उनपर कीचड़ से आक्रमण करने लगतेऔर अगर किन्हीं के द्वारा फेका गया कीचड़ चोर के सिर से टकरा जाता, तो उसे अगले राउंड का चोर भी मुकर्रर कर दिया जाता। ऐसी परिस्थिति में उसके पास दो ही उपाय होता, एक यह कि वह पानी के अंदर ही अंदर किसी सिपाही को गिरफ्तार कर ले या फिर जोर से हरदा-बो, हरदा-बो बोल दे ... हरदा-बो का मतलब कि हम हार गये, हम समर्पण करते हैं। जैसे ही चोर हरदा-बो बोलता सारे सिपाहियों का गगनभेदी विजयी स्वर उभरता- बम-फचाका, बम फचाका ... (यानी हम जीत गये )
कोशी अंचल का यह देसी खेल आज भले ही अप्रासंगिक हो गया हो, लेकिन कोशी की प्रलयंकारी बाढ़ के बाद राजनेताओं और अधिकारियों का समूह इन दिनों हरदा-बो के खेल का भरपूर मजा ले रहे हैं। हमें तो शिक्षक और गार्जियन के भय भी होते थे, इसलिए हम हमेशा सशंक रहते थे। लेकिन राजनेताओं और अधिकारियों को किनका डर ? कोई भी उनके शिक्षक नहीं बन सकते ! ये बिन गार्जियन के बालक हैं। हरदा-बो के इस खेल में सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया और अररिया जिले के तीस लाख लोग चोर बने हैंऔर राजनेता व अधिकारी सिपाही की भूमिका में हैं।
जनता कह रही है- माय-बाप ! लो हम हार गये। हमारा दम फूल रहा है, सांसे उखड़ रही हैं, अब सिर डुबाने की हिम्मत नहीं.. . लो हम हार मान रहे हैं। हरदा-बो. .. हरदा- बो... हरदा-बो. ..
जवाब में उधर से अधिकारियों और नेताओं का अट्टाहासपूर्ण विजयी स्वर उभर रहा है - मारो, फेंको... फेंको, फेंको, कीचड़ फेंको, सरबा के मुंडी पानी के ऊपर ना आ पाये !!! हेहेहे- ये लो , बम-फचाक, फचाक, फचाक.. .
बाढ़ पीड़ित जनता के सिर कीचड़ों से सन रहे हैं। लेकिन सिपाहियों के कीचड़ भरे हाथ नहीं थम रहे। हरदा-बो, हरदा-बो, हरदा-बो ???
बम-फचाका, बम फचाका, फचाका, फचाका; हाहाहा...
तुम चोर हम सिपाही, तुम हरदा-बो, हम बम फचाका। राउंड- दर -राउंड।
मारो साले को लाठी से, मारो सालों को बंदूक के कुंदा से , भगाओ यहां से .. .
रोटी मांग रहा है ? खीचड़ी नहीं खायेगा ?? सड़क जाम करेगा ???
इलाज कराओ। डॉक्टर को भेजिए हमारे गांवों में, हुजूर ।। बच्चे मर रहे हैं हुजूर ।।।
हरदा-बो, हरदा-बो, हरदा बो...
मारो साले को- बम-फचाका, बम फचाका, बम फचाका ।
सहरसा मेगा कैंप में रोटी मांग रहा है, नरपतगंज में खीचड़ी लेकर प्रदर्शन कर रहा है, सोनवर्षा में सड़क जाम कर रहा है, बेलही कैंप में तो कपड़ा तक मांगने लगा। मवेशी मर गये तो हम क्या करें ? मवेशी वाली बीमारियां तुम्हे लग गयीं तो हम क्या करें ?? जीवछपुर, भीमपुर, उधमपुर, ठूठी में भुखमरी शुरू हो गयी है, तो हम क्या करें ???
हरदा-बो का खेल नहीं खेले हो क्या ? इस खेल में चोरों की खैर नहीं।
समझे।
बम-फचाका, बम फचाका, बम फचाका ...

4 comments:

makrand said...

in channel waloan ko yeh sab nahi dikhta
mera naya post ishe vishaya se sambhadit hey
waqt mile to padhiye

Udan Tashtari said...

बहुत सही लिखा!

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

क्या कहूँ ?बस इतना ही कि हममे से कुछ लोग पशु कहलाने लायक भी नहीं ... मगर इन बदतरीन लोगों का ही समाज में बर्चस्व है .... इसे तोड़ना ही होगा ...वरना सारा समाज एक गन्दी नाली में बदल जायेगा !!

रंजीत/ Ranjit said...

bhootnath bhai, A. chekhov ne kaha tha, ek din yah dunia achhee bana lee jayegee, main unse itefak rakhta hun, ummed aur prayas jaaree rakhna hoga.
ranjit