मेरा प्रश्न है कि हमारा पुराना समाजवादी विकास ढ़ाँचा , जिसमें अर्धशासकीय निकायों के माध्यम से सरकार स्वयं ही यह विकास का कअर्य करती थी क्या बुरा था ???
जब हर झटके पर सरकार को ही निजि क्षेत्र की मदद करनी है तो पूँजीवाद की अपेक्षा पुराना समाजवादी अर्धशासकीय पैटर्न ही क्या बुरा था ?
आर्थिक मंदी , कर्मचारियों की छंटनी , निजि क्षेत्र में आरक्षण , विकास के लिये निजि क्षेत्र का सहयोग ...कोई भी बड़ा मकसद हो सब्सिडी , टैक्स हालीडे , विशेष पैकेज ,या अन्य तरह से ...हर बार सरकार को ही निजि क्षेत्र की मदद करनी होती है .तो फिर मेरा प्रश्न है कि हमारा पुराना समाजवादी विकास ढ़ाँचा , जिसमें अर्धशासकीय निकायों के माध्यम से सरकार स्वयं ही यह विकास का कअर्य करती थी क्या बुरा था ????????????????
5 comments:
आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं। ये एक गंभीर सवाल है जिस पर अर्थशास्त्रियों को सोचना चाहिए और हमारे नीति-निर्धारकों को भी।
काफी मेहनत कर रहें हैं आप लगे रहिये . हूं भी हैं आप के साथ
आपने सही कहा...
आपने बॉम्बे प्लान के बारे में पढ़ा है कुछ.....आपको पता लगेगा की जिस पुराने समाजवादी अर्ध शासकीय शाशन की आप बात कर रहे हैं वोह भी निजी क्षेत्र की मदद के लिए ही बना था. टाटा आदि की शिफारिश पर. इसलिए जब इन लोंगों ने दूसरी किस्म की शिफारिश के १९७० के बाद तो सरकार ने वैसा करना शुरू कर दिया. हाँ ये बात सच है की उस शाशन में आम लोगों को थोड़ा फायदा ज़रूर हुआ जो इस नयी व्यवस्था में सम्भव नहीं है....लेकिन इस बात को भी जानना ज़रूरी है की वोह समय ही पुरे विश्व में सरकारी जिम्मेदारी का समय था और फिर USSR के रूप में एक विकल्प मॉडल भी था. आज तो पुरा संसार ही लगभग सरकार को अपनी जेब में रखकर घूमने वाले उद्योगपतियों की जुबां बोल रहा है....ये सवाल कौन सा सिस्टम अच्छा है और कौन सा बुरा का नहीं है. बल्कि इसका है की कौन सिस्टम की रूपरेखा तय करता है.....जनता या उद्योगपति. जो तय करेगा सरकार उसके हित में काम करेगी..
जो सिस्टम अंधाधुंध वेतन देने का आज की व्यवस्थाएं बना रही हैं,उसमें उसी वेतन के बोझ से चरमरा कर ये व्यवस्थाएं एकदम से ढह जाने वाली है,इनका ढहना एकदम से तय है !!
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