नदीम अख्तर
कभी सुना था कि नाजायज़ फायदा उठाने में सरकारी दामादों का कोई सानी नहीं होता, लेकिन अब सारी सुनी-सुनाई बातें हकीकत की छत पर ओस की तरह गिरती नज़र आ रही है। देश का सबसे पुराना और सरकारी मीडिया समूह है प्रसार भारती। इस संस्थान ने ओलंपिक के प्रसारण के नाम पर देश की ऎसी की तैसी कर दी है। क्या आपको मालूम है कि आपके टैक्स से जो पैसा प्रसार भारती के बड़े-बड़े अधिकारियों को मिलता है, उसका बेजा इस्तेमाल कैसे होता है। अगर नहीं मालूम तो जानिये उस हकीकत को जो मालूम हुआ है सूचना के अधिकार कानून के माध्यम से। हूट नामक एक साइट है, जिसने प्रसार भारती से यह पूछा कि आखिर ओलंपिक कवर करने और उसके प्रसारण अधिकार को हासिल करने के एवज में जनता की कितनी गाढ़ी कमाई लुटाई गयी और सरकार को कितना राजस्व मिला। जो जवाब मिले हैं, चौंका देंगे आपको। ओलंपिक का प्रसारण अधिकार 13 करोड़ में खरीदा गया। यह राशि ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन, दोनों के लिए दी गयी। इसके अतिरिक्त पूरे ओलंपिक खेल को कवर करने के लिए ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन की जो टीम बनी, उस पर 3.5 करोड़ खर्च हुए।
मतलब ऑलंपिक को कवर करने और लोगों तक पहुंचाने का पूरा खर्च 16.5 करोड़ बैठा। अब गौर करें टीवी पर इन खेलों के प्रसारण के उपरांत प्राप्त राजस्व पर। दूरदर्शन, जिसने अपनी टीम पर 1.7 करोड़ खर्च किया, उसने 5.23 करोड़ रुपये राजस्व प्राप्त किया। दूसरी ओर ऑल इंडिया रेडियो, जिसने अपनी टीम पर 1.8 करोड़ खर्च किया, उसने सिर्फ 13.45 लाख रुपये ही राजस्व के रूप में प्राप्त किये। इस तरह प्रसार भारती को कुल मिलाकर 5.37 करोड़ रुपये मिले, जो कुल खर्च की गयी राशि (16.5 करोड़) की एक तिहाई के आसपास है। और ये सब क्यों हुआ? क्योंकि दूरदर्शन के पास प्रसारण के अधिकार एक्सक्लूसिव थे। अब एक सवाल यब भी उठता है कि जिस प्रसार भारती ने अपनी टीम पर 3.5 करोड़ खर्च किये, उनमें कौन-कौन शामिल थे? ऑलंपिक में भारतीय दल में कुल एथलीटों की संख्या 57 थी और बीजिंग की सैर को सरकारी खर्चे पर गयी प्रसार भारती की टीम में 76 अधिकारी शामिल थे। वैसे आधिकारिक तौर पर प्रसार भारती ने इस बात से इनकार कर दिया कि ये अधिकारी अपने परिवार से भी किसी को बीजिंग ले गये थे। इन 76 अधिकारियों में जो लोग थे, उनका प्रसारण से कोई सरोकार नहीं था, बल्कि अगर ये लोग बीजिंग नहीं भी जाते, तो कवरेज में कोई कमी नहीं आती। वैसे जानिये, उन लोगों के बारे में जो लोग "मुफ्ती का चंदन, घस रघुनंदन" की कहावत को चरितार्थ कर आये हैं - प्रसार भारती के सीइओ, ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के महानिदेशकगण, दोनों संस्थानों के मुख्य अभियंता, दस चैनल प्रबंधक, अभियंताओं के सहयोगियों तथा सहायक अभियंताओं की लंबी-चौड़ी फौज, वरीय अभियंत्रण सहयोगी (कुल 13 लोग), सात कमंटेटर तथा एक गैर आधिकारिक कमंटेटर, कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता एवं अन्य पदधारी इनमें से कितनों के पास खेल से जुड़ा अनुभव था। जवाब भी सुन लीजिये - केवल छह वह भी किसी विशेष खेल से संबद्ध नहीं बल्कि सभी "योजना और कार्यक्रम निर्माण" से जुड़े थे। इस पूरे घपले का सबसे मज़ेदार पहलू क्या है, आप जानते हैं - आप तक जो खेल के कार्यक्रम प्रसारित किये गये, उसकी फीड बीजिंग ऑलंपिक ब्रॉडकास्टिंग के सौजन्य से प्राप्त हुई थी। यानी जो पंद्रह अभियंता यहां से गये थे, वे सिर्फ ऑलंपिक को आप तक पहुंचाने के नाम पर सैर-सपाटा कर रहे थे। ये है हमारा भारत महान।
5 comments:
mitra, aise hi chalta rahega,andha peese kutta khaye, janta ko bewakoof banate rahenge, ladaate rahenge, janta banti rahegi, ek hone ki koshish karegi, to jati-dharm-aarakshan ko aage badha denge
सही कहा भई, फोकट का चंदन, घिस रघुनंदन।
पास से देखने में जो मज़ा आता है वो टीवी पर नहीं आता | शायद ये अनुभव कराने गए होंगें |
नदीम भाई बढिया जानकारी दिया आपने, ये प्रसार भारती ऐसे धन बहाउ और धनकमाउ कार्यक्रम में सदैव मस्त रहे हैं ऐसे बडे खजाने को लूटने लुटाने की के अतिरिक्त ये तो गवइये, बजइये, नवोदित कवियों लेखकों के पारिश्रमिक को भी मजे से लूटते हैं और ये कलाकार प्रदर्शन प्रसारण के नाम पर मुफ्त में अपना पैसा खर्च कर के भी इनका जेब भरते हैं ।
अरे काहे को गुजरी बात का बतंगड़ बना रहे हो आप,आपको एकदमे शऊर नहीं है का ?देखिये ओलोम्पिक-वोलोम्पिक अहि वास्ते होते हैं भइया,कि अफसर मंत्री जात इसी बहने थोड़ा घूम-फिराकर आ जाए,वरना अपने देश की गन्दगी ...छि-छि-छि-छि !!!
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