कुछ दिनों पहले जनसत्ता में प्रभाष जोशी ने एक लेख लिखा था। आज महाराष्ट्र में हिंसा का जो टांडव चल रहा है, उसके व्यापक परिप्रेक्ष्य में यह लेख काफी प्रासंगिक लगा। लेख पुराना तो है, लेकिन वर्तमान संदर्भों से जोड़कर पढ़ेंगे, काफी बातें आइने की तरह साफ-साफ नज़र आयेंगी।
हिंदू आतंकवादी और हिंदू आतंकवादी संगठन पढ़ने में ही कितना अटपटा लगता है। लेकिन मुंबई में आजकल यही पढ़ रहा हूँ। क्या महाराष्ट्र और महाराष्ट्रियनों में ही ऐसा कुछ है कि वे इस तरह की व्यर्थ और सिरफिरी हिंसा की तरफ खिंचे चले आते हैं, और प्रतिशोध की नपुंसक हिंसा की कार्रवाई करते है, जैसी हिंदू जन जागृति समिति और सनातन संस्था के रमेश गडकरी और मंगेश निकम ने की? ऐसा क्यों हुआ कि हिंसक प्रतिशोध को राष्ट्र बनाने की प्रेरणा बता कर हिंदुत्व का सिद्घांत निकालने वाले विनायक दामोदर सावरकर भी यहीं हुए और उनके वाहियात शिष्य बाला साहेब ठाकरे भी यहीं विराज रहे हैं? महाराष्ट्र वीरों की भूमि है और शिवाजी महाराज प्रतिशोध की नपुंसक हिंसा का गान और अमल करने वाले तो कभी नहीं थे। फिर क्याऐसी हिंसा को वीरता समझने वालों की एक कमजोर प्रवृत्ति यहाँ चलती आई है। बहुत पीछे नहीं कोई सौ सवा सौ साल पहले ही यहाँ सावरकर हुए। बचपन में मस्जिद पर पत्थर फेंकने से लेकर अभिनव भारत समाज जैसे तथाकथित क्रांतिकारी संगठन उनने बनाए। मदनलाल ढींगरा से सर विलियम कर्जन विली को मरवाने से लेकर नाथूराम गोडसे से महात्मा गांधी तक की हत्या करवाने के पुण्य कार्य उनने किए। दुनिया भर में वीर और क्रांतिकारी वे कहे जाते है जो खुद शस्त्र उठाते हैं और या तो फांसी पर झूल जाते हैं या लड़ते हुए मारे जाते हैं। अपने स्वातंत्रय वीर और क्रांतिकारी सावरकर ने हमेशा दूसरों के हाथ पिस्तौल थमाई और खुद दूर खड़े छल कपट से बचते रहे। और आखिर अस्सी पार करने के बाद बिस्तर पर बुढ़ापे से मरे। बदले की भावना और साजिश से भारत को स्वतंत्र करवाने का उपदेश देने वाले सावरकर को वीर और क्रांतिकारी तो वही मान सकते हैं जो जानते नहीं कि वीरों की हिंसा क्या होती है। इन वीर सावरकर के दो बड़े शिष्य अपने राजनीतिक जीवन में हैं। एक बाला साहेब ठाकरे और दूसरे लौह पुरुष लालकृष्ण आडवाणी।
हिंदू जन जागृति समिति और सनातन संस्था बाला साहेब ठाकरे या उनकी शिवसेना की बनवाई हुई नहीं है। पुलिस को इनके विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल से जुड़े होने या प्रेरित होने के सूत्र भी नहीं मिले है। कहते हैं कोई छह साल हुए एक सभा हो रही थी जिसमें हिंदू देवी देवताओं की निंदा की जा रही थी किसी एक श्रोता ने खड़े होकर इसका विरोध किया। उसे चुप कर दिया गया। लेकिन उसने हिंदू संस्थाओं को इकट्ठा किया और ऐसे सब मौकों पर हिंदू विरोध दर्ज करने के लिए यह हिंदू जन जागृति समिति बनाई। एक सूचना कहती है कि उसे डॉक्टर जयंत आठवले ने बनाया।
इसी से सनातन संस्था भी जुड़ गई जो पनवेल के देवगाँव इलाके से सनातन संकुल आश्रम से चलती है। गुरूकृपा प्रतिष्ठान इस संकुल को चलाता हैं सनातन संस्था कोई अठारह साल से चल रही है। उसका दावा है कि वह सामाजिक कार्य, सत्संग और ध्यान योग ओर आध्यात्मिकता की तलाश में लगे लोगों की संस्था है। महाराष्ट्र भर के पढ़े लिखे लोग दुनियादारी छोड़ कर यहाँ समाज सेवा करने और आध्यात्मिकता में जीने को आते हैं। संस्था हिंदू धर्म और देवी देवताओं के अपमान का विरोध करती हैं। लेकिन हम शांति और संवैधानिक तौर-तरीकों में विश्वास करते हैं। रमेश गडकरी हमारे यहाँ रहता था, लेकिन बम बनाने और फोड़ने की आतंकवादी हरकतों से हमारा कोई लेना-देना नहीं है।
ऐसा लगता है कि हिंदू जन जागृति समिति सनातन संस्था के लोगों ने बनाई है और जमीन से ज्यादा इसकी उपस्थिति ऑन लाइन हैं। इसका कोई मुख्यालय कहीं दिखाई नहीं देता। इसका उद्देश्य हिंदू धर्म की निंदा करने और बदनाम करने वालों के विरुद्घ विश्व भर के हिंदुओं को एक और संगठित करना है। अभी इसका वैश्चिक एजंडा हॉलीवुड फिल्म ‘लव गुरु’ का विरोध करना और गोवा में स्कूल की किताबों से हिंदू विरोधी उद्घरण हटवाना और रामसेतु की रक्षा करना है। ये दोनों संस्थाएँ मकबूल फिदा हुसेन के चित्रों का विरोध करती रही हैं। ‘जोधा अकबर’ फिल्म में इन्हें हिंदू देवी देवताओं का अपमान दिखा और मराठी नाटक ‘आम्ही पाचपुते’ में महाभारत और उसके पात्रों का मखौल उड़ते लगा। हिंदुओं की भावनाओं को चोट पहुँचाने वाले ऐसे नाटक, फिल्म, चित्र आदि का विरोध करना इन संस्थाओं के लोगों को अपना काम लगता है।
अब महाराष्ट्र पुलिस ने जिन रमेश गडकरी, मंगेश निकम, विक्रम भावे और संतोष आंग्रे को गिरफ्तार किया है वे ‘जोधा अकबर’ और ‘आम्ही पाचपुते’ जैसी फिल्म और नाटक का शांतिपूर्ण विरोध करने तक ही नहीं रुके। उनने बम बनाए और जिन हॉलों में यह फिल्म दिखाई और नाटक खेला जा रहा था वहां उन्हें फोड़ा। वाशी नवी मुंबई के विष्णुदास भावे ऑडिटोरियम में इकतीस मई को और ठाणे के गडकरी रंगायतन में चार जून को इनने जो बम फोड़े उनमें से नवी मुंबई में तो कुछ नहीं हुआ पर ठाणे में सात लोग घायल हुए। इसके पहले फरवरी में नए पनवेल के एक सिनेमाघर में भी अनगढ़ बम फोड़ा गया था जहाँ ‘जोधा अकबर’ फिल्म दिखाई जा रही थी। वहाँ भी कोई हताहत नहीं हुआ था, बम बनाने और फोड़ने की इनकी करतूतों को देखते हुए साफ है कि न तो इन्हें भयंकर मारकर बम बनाना आता है न ये उनसें ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुँचाना जानते हैं।
फिर भी समाज सेवा और अध्यात्म में लगी संस्था के ये लोग बम बनाने और फोड़ने जैसे आतंकवादी अभियान में कैसे और क्यों लग गए। सबसे मजेदार किस्सा रमेश गडकरी का है। समिति और संस्था के ये पचास साल के सेवक इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किए हुए हैं और अभी आठ साल पहले तक सफल दुकानदार थे। अंधेरी में उनकी दुकान थी। वे संस्था के सेवकों के संपर्क में आए। उनके काम और उपदेशों का उन पर ऐसा असर पड़ा कि उनने अपनी दुकान बेच दी और जो पैसा मिला उसे बैंक में रख दिया जिसके ब्याज से उनका घर चलता है। उनकी पत्नी नीला भी उनके साथ संस्था की सेविका हो गई। तीन साल पहले इन दोनों ने सांगली का अपना घर भी छोड़ दिया और पनवेल में सनातन संस्था के संकुल आश्रम में आकर रहने लगे। तब तक गडकरी को बम बनाने और फोड़ने में न तो कोई रुचि थी न जानकारी न अनुभव। उनके दोनों दामाद भी सनातन संस्था के सेवक हो गए थे।
आश्रम में गडकरी की मंगेश निकम से जान पहचान हुई जो धीरे-धीरे दोस्ती में बदल गई। मंगेश निकम ने कुएँ खोदने वाले एक व्यक्ति से गोला-बारूद मिलाना और विस्फोट करना सीखा था। यही जानकारी बम बनाने के काम भी आई। गडकरी और निकम ने ‘आम्ही पाचपुते’ मराठी नाटक के विरुद्घ विरोध प्रदर्शन किया था। सतारा के रहने वाले निकम अब गडकरी के साथ मिल कर इस नाटक से होने वाले अपमान का बदला लेना चाहते थे। निकम बम बनाने की सामग्री अमोनियम नाइट्रेट, विस्फोटक, र्छे आदि लेकर आया और उनने सनातन संकुल आश्रम के एक कमरे में बम बनाया। गड़करी गुरुकृपा प्रतिष्ठान की मोटरसाइकिल से बम लेकर निकला, आश्रम की लॉग बुक में उसकी मोटरसाइकिल का नंबर और उसका निकलना दर्ज था। ठाणे के गड़गरी रंग आयतन की पार्किग में ले जाकर रमेश गड़गरी ने गाड़ी खड़ी की वहाँ की लॉग बुक में भी इसी मोटरसाइकिल का नम्बर दर्ज था। आतंकवादी विरोधी दस्ता इन लॉग बुकों के जारिए ही रमेश गडकरी तक इन गतिविधियों से अनजान बता कर उनसे पूरी तरह अलग किया है। और दावा किया है कि उसने आतंकवादी विरोधी दस्ते की खोजबीन में मदद की है। मंगेश निकम ने बम बनाने और फोड़ने में जिन दूसरे लोगों की मदद की थी उनमें से विक्रम भावे और संतोष आंग्रे भी पकड़े गए हैं। रायगढ़ जिले के पेन के रहने वाले विक्रम भावे भी सनातन संकुल आश्रम में आकर रहने लगे थे। वहीं उनकी बम बनाने वाले निकम और गडकरी से मुलाकात हुई थी। संतोष आंग्रे तो आश्रम में ड्राइवर का काम करता था। इनने पनवेल के एक सिनेमा घर में बम रखा था, जिसका विस्फोट नहीं हुआ। रत्नागिरी में एक ईसाई उपदेशक के घर के बाहर भी इनने बम रखा था, जिससे कोई नुकसान नहीं हुआ था। लेकिन उसमें निकम और दूसरे लोग पकड़े गए थे जो इस साल सत्रह अप्रैल को कोर्ट से छूटे।
इन लोगों की ये सभी कोशिशें देखी जाएँ तो साफ हो जाता है कि न तो ये शातिर पेशेवर अपराधी हैं न इन्हें ठीक से बम बनाना और उन्हें मंजे हुए आतंकवादी की तरह जानमाल के ज्यादा से नुकसान करने के साथ फोड़ना आता है। ये निश्चित ही अपने धर्म और देवी देवताओं के अपमान के विरोध में प्रदर्शन करते हुए हिंसा के रास्ते चले गए और वैसे ही काम करने लगे जैसे सिख और मुसलिम आतंकवादियों ने इस देश में किए हैं। लेकिन इनकी अनुभवहीनता और जानमाल का नुकसान न पहुँचा पाने की मारक अक्षमता इनके अपराध को कम नहीं करती न यह बताती है कि इनके इरादे नेक थे। इनकी संस्थाओं ने इनके कुकर्मों से अपने को अलग करते हुए भी कहा है कि हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाना बंद होना चाहिए।
लेकिन बाला साहेब ठाकरे के अखबार ‘सामना’ ने बाकायदा एक संपादकीय लिख कर इन कोशिशों को मूर्खतापूर्ण और हास्यास्पद बताया है। संपादकीय ने कहा है कि हमने जब सुना कि हिंदू लोग भी बम बनाने लगे हैं तो हमें खुशी हुई। लेकिन क्या तो ये घामड़ बम और कहाँ ये फोड़े गए। ठाणे में जो सात घायल हुए वे हिंदू ही हैं। हिंदुओं को खूब ताकतवर बम बनाने चाहिए और उन्हें ठाणे और नवी मुंबई में बन रहे छोटे-छोटे पाकिस्तानों में फोड़ना चाहिए ताकि इस्लामी आतंकवादियों के मारक बमों का जवाब दिया जा सके। लेकिन इनसे भी हिंदुओं और हिंदुत्व की सही रक्षा नहीं होगी। भारत में ऐसी कई जगहें हैं जहाँ इसलामी आतंकवादियों का राज है और वहाँ पुलिस भी जाने से डरती है। हिंदू संगठनों को जैश, अल कायदा और हिजबुल जैसे इस्लामी आतंकवादी संगठनों से सीखना चाहिए। अपने ऐसे आत्मघाती दस्ते बनाने चाहिए कि वे भारत में बने छोटे-छोटे पाकिस्तानों को नष्ट करके उनमें और मुसलमानों में दहशत फैला सके।
यानी हिंदू जन जागृति समिति और सनातन संस्था वाले कितना ही कहें कि वे शांति और संवैधानिक तौर-तरीकों में विश्वास करते हैं और पकड़े गए बम बनाने और फोड़ने वालों की करतूतों से उनका कोई लेना-देना नहीं है, शिवसेना चाहती है कि वे बड़ा आतंक मचा देने वाले संगठन हो जाएँ। सामना को शर्म है तो इस बात की कि इन मूखरे ने क्या तो घामड़ बम बनाए और कहां ले जाकर उन्हें फोड़ा। सामना चाहता है कि आतंक मचाने और हिंसा करने में इन हिंदू संगठनों को इस्लामी आतंकवादी संगठनों से भी ज्यादा चतुर, चुस्त और चाक चौबंद होना चाहिए। हम सब सभी किस्म के आतंकवाद को खत्म करना चाहते हैं, लेकिन शिवसेना हिंदुओं को आतंकवाद में अव्वल और सक्षम बनाना चाहती है। अब बेचारे वेंकैया नायडू कह रहें हैं कि हमें अपने राज्य को मजबूत करना चाहिए ताकि वह आतंकवाद से निपट सके। सामना कहता है किसका राज्य ? हिंदुओं को वीर और हिंसक होना चाहिए ताकि इस्लामी आतंकवाद से निपट सकें।
वेंकैया नायडू को संघ से पूछना चाहिए। क्या वह भी हिंदुओं को वीर और हिंसक नहीं बनाना चाहता ? सावरकर और हेडगेवार और गोलवलकर क्या कह गए हैं ? संघ क्या सिखाता है?
8 comments:
मैं यह लेख पहले भी पढ़ चुका हूं, लेकिन एक बार फिर पढ़ा। मुझे इस लेख में उठाये गये मुद्दे काफी अच्छे लगे। खासकर इस लेख का वह हिस्सा, जिसमें उन्होंने लिखा - "क्रांतिकारी सावरकर ने हमेशा दूसरों के हाथ पिस्तौल थमाई और खुद दूर खड़े छल कपट से बचते रहे। और आखिर अस्सी पार करने के बाद बिस्तर पर बुढ़ापे से मरे।" यह बेहिचक स्वीकार कर लेना चाहिए सावरकर के वंशजों को कि उनके देशप्रेम की कहानियां कितनी सच्ची हैं। वैसे धन्यवाद एक अच्छा लेख पढ़ाने के लिए...
बुड्ढा सठिया गया है। ऊं नमः शिवाय...
हिन्दुत्व भारतीय एकात्मकता का मुल श्रोत है। राज ठाकरे के क्षेत्रियता से हिन्दुत्व का कोई लेना देना नही है। एक हिन्दु सम्पुर्ण भारत (आर्यावर्त) को अपनी पुण्य भुमि मानता है। प्रभास जोशी राज ठाकरे के उपर बन्दुक रख कर हिन्दुत्व पर निशाना साध रहे है। जोशी जी की नियत ठीक नही है। छद्म रुप से क्षेत्रियता और जातियता के पोषण का काम जोशी जी के नस्ल के लोग हीं करते है।
मां प्रज्ञा को अभी गुनहगार नही माना जा सकता। प्रभास जोशी की नस्ल के लोग चाहते है की हिन्दु भी हिंसा का सहारा लें, इस्के लिए वे हिन्दुत्व पर निरंतर आक्रमण कर चिढाते रहते है। जबकी अपने विरुद्ध लगातार आतंकी हिंसा के बावजुद हिन्दुओ ने अब तक जिस संयम का परिचय दिया है उसकी प्रशंशा की जानी चाहिए।
बम के बदले बम और हिंसा के बदले हिंसा से कभी भी आतंकवाद या नक्सलवाद को ख़त्म नहीं किया जा सकता...
तमाम हिंदू-हितैषियों को यह बात जान लेनी चाहिए कि हर हाल में उग्रपंथियों की समस्याओं का विश्लेषण करना ही होगा और वे लोग संके भी हुए हैं तो किसी भी तरह उन्हें बातों से ही समझाना होगा...किसी भी तरह की बदले की कारर्वाई एक अलग किस्म के गृह-युद्द को ही जन्म देगी....फ़िर कुछ भी लौटाया ना जा सकेगा....!!!
नदीम साहब, आपने ब्लाग 'मोहल्ला' पर जो टिपण्णी दी है उस में मेरा नाम ग़लत सन्दर्भ में प्रयोग किया है. मैं इस पर आपत्ति दर्ज करता हूँ, और आप से निवेदन करता हूँ कि मेरे किसी लेख या टिपण्णी जिस पर आपको ऐतराज है बताएं. मैं आपके ऐतराज को दूर करने की कोशिश करूंगा. लेकिन अगर आपने यह सब बिना सोचे कर दिया है तो आपको अपनी इस टिपण्णी से मेरा नाम हटाना चाहिए.
नदीम साहब अपने मोहल्ला ब्लॉग पर कुछ लोगों के नाम लिए जिससे उन्हें कुछ आपत्ति हुई. उसी के ऊपर किसी अनाम व्यक्ति ने भी किसी का नाम लेने को संकीर्ण मानसिकता घोषित कर दिया है. आपने वह लिखा है की हिंदुओं को बम बना के फोड़ने की सीख देने वालों की निंदा आप जैसे लोग क्यों नहीं करते। मेरा कहना है
१. आप एक भी उदाहरण दिखाइए, जब किसी हिंदू ने या किसी हिंदू संगठन ने खुलेआम बम दागकर और सैकडो इंसानों के मर जाने पर उसकी जिमेदारी हसी खुशी स्वीकार की हो?
२. एक भी ऐसा उदाहरण दिखाइए जब किसी भी हिंदू या हिंदू संगठन के द्वारा कोई हिंसक घटना की गई है और किसी बुधजिवी हिंदू या मुस्लिम ने उसका समर्थन किया हो बशर्ते वोह आज के समय को द्रिस्तिगत रखते हुए न हो. सबसे ताजा उदाहरण है साध्वी प्रज्ञा का, उसने एक बम दागा, उसे तुंरत गिरफ्तार कर लिया गया किसी भी हिंदू ने उसका विरोध नही किया. आपने ख़ुद ही अपनी पोस्ट पर उसके फोटो लगा रखी है गिरफ्तार दिखाके. दूसरा उदाहरण राज ठाकरे का सर्व-विदित है. कुछ भी लिखने कहने की आवश्यकता नही है. कौन बुध्हिजीवी इन लोगो के सपोर्ट में दिख रहा है आपको?
३. एक भी ऐसा उदाहरण दिखाइए जब किसी हिंदू ने इस तरह का आपराधिक काम किया हो और ये बोला हो की ये हमारे भगवान् की मर्जी है. मैंने अपने मालिक(भगवान्) की मर्जी से ऐसा किया है.
४. अपने जो भी हिन्दुओं के बारे में लिखा है वो सब बातें मैंने आपसे पहले अपने ब्लॉग पर लिख दी हैं और आप जैसे सुधिजनो के विचार चाहे है. यदि सच में लगता है की उन बातो में सच्चाई है. तो उसे बताइए, और अगर लगता है की मैंने कुछ गलत लिखा है तो मुझे भी अवगत करिए. आपका स्वागत है. आप समझते हैं की लडाई हिंदू-मुस्लिम की नही, लडाई ग़लत और सही की होनी चाहिए.
मनीष साहब मैं बातों को गलत दिशा में नहीं ले जाना चाहता। आपने जो प्रश्न किये हैं, निश्र्चित रूप से वह बहस का केंद्र नहीं। यह सिर्फ हठधर्मिता ही है। मैंने जो कुछ लिखा था, वह ब्लॉग के टिप्पणिकारों के संदर्भ में था, जिसमें काफी घटिया स्तर की प्रतिक्रियाएं आ रही थीं और लोग उनका मौन समर्थन करते भी देखे गये। और तो और कुछ लोगों ने तो अविनाश और उनके ब्लॉग लेखकों को गालियां भी दीं, हिंसक बातें लिखी गयीं एक धर्म विशेष के खिलाफ। और आप जिस हिंसा की बात कर रहे हैं, उसमें एक दो नाम हो तो गिनवाऊं... दारा सिंह ने ग्राह्म स्टेन्स और उनके दो मासूम बच्चों को ज़िंदा जला दिया। बाबू बजरंगी ने गुजरात में कहर बरपा दिया, आडवाणी, साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती जैसे भड़काऊ नेताओं ने "एक धक्का और दो" कह कर देश को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी और कुप सी सुदर्शन का उन्हें आशीर्वाद मिलता रहा, सार्वजनिक तौर पर। क्या ये आतंक की श्रेणी में नहीं आता। गुजरात के मुख्यमंत्री सीना तान के कहते हैं कि क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया होती ही है, तो क्या हर क्रिया के विपरीत प्रतिक्रियावादी समाज का निर्माण करने के लिए ही लोकतंत्र की स्थापना की गयी है। नरेंद्र मोदी लोगों को उन्मादी बनाते हैं, तो न्यूयॉर्क में उनके मौसेरे भाई उनकी तारीफ के पुल बांधते हैं। मैं पूछता हूं कि आखिर यह कौन सी महानता है कि जिस देश का एक मुख्यमंत्री कत्लेआम में लिप्त हो, कत्ल की राजनीति करे, उसे देश का नंबर वन सीएम के रूप में सामने पेश किया जाये। कातिल की फितरत कत्ल, कातिल की जमात ज़ालिम...
मैं पूछता हूं कि आप ही कह रहे हैं कि साध्वी प्रज्ञा गिरफ्तार हुई है, उसे कानून सजा देगा, लेकिन आपको मालूम है कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्श श्री राजनाथ सिंह और मध्य प्रदश के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान खुद कथित साध्वी प्रज्ञा के यहां आते-जाते रहे हैं। क्या हिंसक मानसिकता का ही यह द्योतक नहीं है कि आज जब हिंदू आतंकवाद शब्द का प्रयोग हो रहा है (मैं इसके खिलाफ हूं), तो भाजपा के नेता रविशंकर प्रसाद बेशर्मी के साथ कहते हैं कि आतंकवाद के साथ हिंदू शब्द मत जोड़ो। कोई पूछे इनसे कि इन्होंने आतंकवादी को मुसलमान का दर्जा क्यों, कैसे और कब दिया। अफजल को फांसी नहीं हो रही है, तो इसमें मुसलमानों का क्या कुसूर? आडवाणी एक लाख बार अपनी सभाओं में बोल चुके हैं कि अफजल को केंद्र सरकार इसलिए फांसी नहीं दे रही है, क्योंकि वह मुसलमानों की राजनीति कर रही है। अरे आप ये क्यों सिद्ध करना चाहते कि अफजल मुसलमान है। उसे आतंकवादी की तरह क्यों नहीं ट्रीट करते? मुझे बस इतना ही कहना है कि आतंकवाद को आज हम और आप भले ही एक दूसरे के धर्म के साथ जोड़ कर देख लें, लेकिन अगर हमें यही मानसिकता एक दिन गुलाम न बना दी, तो मेरे नाम पर एक डॉगी पाल लीजिएगा। सब लोग एक दूसरे के साथ सौहार्द्र रखें और विचारों में बहुत ज़्यादा बल लायें। लचर विचार व्यक्ति के साथ-साथ कमज़ोर देश का भी द्योतक है। जय हिंद...
वाह नदीम साहब. मोहल्ला पर आपकी टिप्पणी देखी. आपकी बाकी बातों के बारे में तो मै आज ही अपने ब्लॉग पर काफी कुछ लिखने वाला हूँ. वहा से आपको विवरण मिल जाएगा. पर आपके आखरी के दो शब्द "जय हिंद" पर तो दिल खुश हो गया. आज सच में देश को इसी तरह की जरुरत है मेरे भाई. अगर आज कोई मंत्री साध्वी प्रज्ञा अथवा राज ठाकरे का समर्थन करे रहा है तो चाहे वोह मंत्री हो या कोई महत्वपूर्ण पोस्ट होल्ड करे रहा हो, वो ग़लत है और एक हिंदू बाद में पहले एक इंसान होने के नाते मे इसका विरोध करता हूँ. परन्तु एक बात मैं अवश्य कहना चाहता हूँ की मेरा साध्वी या राज ठाकरे का समर्थन करने वालो के नाम जानने का उद्देश्य उन लोगो के नाम जानने से था जो आम नागरिक की जिंदगी जी रहे है, जिनका राजनीति से कोई मतलब नही है. मैं आज अपने ब्लॉग पर आपको उन लोगो के कुछ नाम बताता हूँ जो दिरेक्ट्ली राजनीति से नही जुड़े हुए हैं और उनके विचार देखियेगा..... रही बात किसी मंत्री जी के साध्वी जी के घर आने जाने की बात तो आप ख़ुद सोचिये, क्या सिर्फ़ वो मंत्री जी साध्वी के घर आते जाते थे. साध्वी भी किसी मोहल्ले में रहती थी. उसके घर के अगल बगल में लोग रहते थे हमारे आप की तरह के लोग. हम उन्हें साध्वी का समर्थक क्यों नही मानते. कल आपके या हमारे घर के बगल वाला कोई व्यक्ति ऐसे अपराध में संलिप्त पाया जाता है और आपको उसके साथ जोड़ते हुए देखा जाता है तो क्या यह उचित होगा. वोह एक मिनिस्टर हैं. मै और आप दोनों नही जानते की वोक किस किस के घर जाते है फिर आज कौन ये नही जानता की इस सारे फसाद के पेड़ की जड़ राजनीति रुपी जमीन में ही गाड़ी हुई है. और सारे मंत्री नेता ही इसे पानी देने में लगे हुए हैं. हमारा आपका काम है की सामान्य नागरिको में उन बातों का न फैलाए, जिससे की एक दूसरे के धर्म, उनके आंतरिक भावना उनकी आस्था को ठेस पहुचे. रही बात टिप्पणीकारों की तो यह ठीक उसी तरह है जय हमारा आम समाज. हर तरह के लोग मौजूद हैं यहाँ पर. कोई भी कुच्छ भी बोलता रहता है. हमारा कम है हंस की तरह अपने काम की बातें देखें और बाकि बातो को इग्नोर करे.
नदीम जी आप हमारे अगले लेखों पर अपनी दूरदृष्टि अवश्य डालियेगा.
अंत में आपकी आवाज में आवाज मिला के बोलता हूँ. "जय हिंद" |
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