नौ दिनों से देश भर में दुर्गा पूजा का सांस्कृतिक महोत्सव चल रहा है . हम सब ने दुर्गा पूजा के पंडाल घूमें हैं . आपने नोटिस किया ? ज्यादातर पंडालों में सजावट के नाम पर बिजली की चकाचौंध ही है . डीजे का शोर है . थर्मो कूल की कलाकारी है . आंकड़े बताते हैं कि हर शहर कस्बे गाँव में ढ़ेरों दुर्गा उत्सव आयोजन समितियां है , खूब बिजली जल रही है , पर इस सजावट के लिये अस्थाई विद्युत कनेक्शन कितने लिये गये हैँ ? मतलब साफ है बिजली चोरी को हम सबने सामाजिक मान्यता दे रखी है ... ? ...? पुराना समय याद कीजीये , दादा जी या नाना जी से पूछिये .. पहले जब इतनी बिजली की जगमगाहट नही होती थी ..तब भी दुर्गा पूजा तो होती ही थी . तब कैसे सजाये जाते थे पंडाल ? शायद तब पूजा के विधि विधान , श्रद्धा आस्था अधिक थी . आम के पत्तों की तोरण , पतंग के कागज से सजावट होती थी .सांस्कृतिक आयोजन , कविसम्मेलन , नृत्य आदि उत्सव होते थे .
बिजली की कमी को देखते हुये क्या हमें हमारे समाज और सरकार को एक बार फिर दुर्गा पूजा , मोहर्रम , क्रिसमस, न्यूइयर , गणेशोत्सव आदि आयोजनों में बिजली के फिजूल उपयोग पर , तथा आयोजन में सजावट व आयोजन के स्वरूप पर विचार मंथन नहीं करना चाहिये?
1 comment:
फिजूल खर्ची ग़लत है, इसे त्यौहार या पारिवारिक उत्सव का नाम ले कर उचित ठहराना और भी ज्यादा ग़लत है. पूजा मन से होती है, फिजूलखर्ची से नहीं. आज कल दशहरा और दुर्गा पूजा और गणेश पूजा के नाम पर बहुत कुछ ग़लत हो रहा है. कुछ लोग राजनीतक फायदे के लिए इन का इस्तेमाल करते हैं. कुछ लोगों ने इसे धंदा बना लिया है. मैं नहीं मानता कि इस तरह कि बातों से कोई देवी या देवता खुश होते होंगे.
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