Tuesday, November 4, 2008

जीवन की मंजिल का पता कैसे पायें !!

जीवन की मंजिल का पता हम कैसे पायें ,
इस मंजिल के पीछे जान निकल न जाए !!
आपस में भागा-दौडी,कितनी भागा-भागी,
डरते हैं कि हम रब को कहीं भूल न जाएँ !!
करता हूँ सबसे मुहब्बत,ये है सच्चा सौदा ,
मुहब्बत ही तो रब है,रब से क्या शर्मायें !!
भूखे हैं पेट जिनके,जो रहते हैं बे ठिकाने ,
सोचूं हूँ तो अक्सर ये आँखे हैं भर आयें !!
सोना-जागना-खाना-खेलना-बतियाना ,
जीवन गर यही है,जीवन से बाज आयें !!
जीने की खातिर करनी पड़े अगर बेईमानी ,
इससे तो बेहतर है कि आदम ही मर जाए !!
आदम के बारे में सोचूं,आदम की बातें करूँ,
जाना कहाँ आदम को,आदम जान ना पाए !!
जीवन की खातिर हैं हम,क्या है जीवन हमारा,
उम्र इक घुन है"gafil",उम्र भर खाती ही जाए !!

4 comments:

Anonymous said...

भावपूर्ण रचना। बधाई।

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया.लिखते रहें.

seema gupta said...

भूखे हैं पेट जिनके,जो रहते हैं बे ठिकाने ,
सोचूं हूँ तो अक्सर ये आँखे हैं भर आयें
" very emotional expression"

Regards

admin said...

करता हूँ सबसे मुहब्बत,ये है सच्चा सौदा ,
मुहब्बत ही तो रब है,रब से क्या शर्मायें !!

बहुत प्‍यारा शेर है, बधाई।