गुलजार....क्या हैं.....!!

......
गुलजार.....
क्या....
हैं...??...
गुलजार....
बस...
और क्या...!!....
क्या वो गुलजार नाम के इस छोटे-
से शब्द में समा भी पाते है......
बल्लीमारान की वो छोटी-
छोटी पोशीदा-
सी गलियाँ......
गुल्जार को सुनना भी एक गजब-
सा अहसास है....
जो उनके गले से निकल कर...
हमारे दिमाग के तंतुओं से होता हुआ...
हमारे दिल को साँस-
सी देता हुआ...
हमारे जिस्म के पोर-
पोर को सराबोर कर देता है......
अपने अहसास को वो जिन शब्दों में व्यक्त करते हैं....
वे शब्द आम-
से होते हुए भी करामात की हद तक मिश्री से भरे हो जाते हैं....
गरम चाशनी की कडाही से अभी-
अभी ताज़ा-
ताज़ा-
से निकलते हुए से.....
जभी तो...
गुलजार....
गुलजार हैं....
इस शब्द की तो जैसे अब कोई उपमा ही नहीं...
हे गुलजार भाई.....
खुदा ने जिन-
जिन शब्दों में "
सान कर"
इस धरती पे भेजा है.....
उसे यदि हम आत्मसात कर लें तो....
तो यह धरती किसी फूलों की बगिया-
सी महक उठे....
आसमान के सारे सितारे उस बगिया के फूलों से खेलने आया करें....
और खुदा....
खुदा तो सृष्टि के अपनापे पर मद्दम-
मद्दम-
सा हंसता रहे...
हंसता ही रहे.....
और ब्रहमांड के सारे शैतान इस मेल-
जोल को अवाक होकर ताकते रह जाएँ....
मुहं खोले ही धरती से रुखसत हो जाए.....
हम सबका जीवन....
जीवन-
सा सुंदर.....
सुगन्धित...
और मधुर हो जाए.....!!
1 comment:
http://chavannichap.blogspot.com/2008/08/blog-post_19.html
ek baar ise bhi padh ken...
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