Saturday, November 15, 2008

गुलजार....क्या हैं.....!!

......गुलजार.....क्या....हैं...??...गुलजार....बस...और क्या...!!....क्या वो गुलजार नाम के इस छोटे-से शब्द में समा भी पाते है......बल्लीमारान की वो छोटी-छोटी पोशीदा-सी गलियाँ......गुल्जार को सुनना भी एक गजब-सा अहसास है....जो उनके गले से निकल कर...हमारे दिमाग के तंतुओं से होता हुआ...हमारे दिल को साँस-सी देता हुआ...हमारे जिस्म के पोर-पोर को सराबोर कर देता है......अपने अहसास को वो जिन शब्दों में व्यक्त करते हैं....वे शब्द आम-से होते हुए भी करामात की हद तक मिश्री से भरे हो जाते हैं....गरम चाशनी की कडाही से अभी-अभी ताज़ा-ताज़ा-से निकलते हुए से.....जभी तो...गुलजार....गुलजार हैं....इस शब्द की तो जैसे अब कोई उपमा ही नहीं...हे गुलजार भाई.....खुदा ने जिन-जिन शब्दों में "सान कर" इस धरती पे भेजा है.....उसे यदि हम आत्मसात कर लें तो....तो यह धरती किसी फूलों की बगिया-सी महक उठे....आसमान के सारे सितारे उस बगिया के फूलों से खेलने आया करें....और खुदा....खुदा तो सृष्टि के अपनापे पर मद्दम-मद्दम-सा हंसता रहे...हंसता ही रहे.....और ब्रहमांड के सारे शैतान इस मेल-जोल को अवाक होकर ताकते रह जाएँ....मुहं खोले ही धरती से रुखसत हो जाए.....हम सबका जीवन....जीवन-सा सुंदर.....सुगन्धित...और मधुर हो जाए.....!!

1 comment:

chavannichap said...

http://chavannichap.blogspot.com/2008/08/blog-post_19.html
ek baar ise bhi padh ken...